रेखागणित क्या है ?
मै नहीं जानता
रैखिक ज्ञान का पारावार है
मान लेता हूँ
मेरे लिए रेखा मात्र रेखा है
सरल या विरल
सरल यानि मिलन से दूर
मिलन के लिए सरलता नहीं
तरलता चाहिए
अकड़ नहीं विनम्रता चाहिए
इसीलिये सरल रेखा
मुड़ कर ही मिल पाती है
वह भी स्वयं से
उसका पोर-पोर ही है मिलन बिंदु
जिसका चरम रूप है वृत्त
वृत्त क्या ? महज एक शून्य
शून्य अर्थात शून्य
स्वयं से मिलन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 26, 2014 at 2:57pm — 14 Comments
अरे चाचा !
तुम तो बिलकुल ही बदल गये
मैंने कहा – ‘ तुम्हे याद है बिरजू
यहाँ मेरे घर के सामने
बड़ा सा मैदान था
और बीच में एक कुआं
जहाँ गाँव के लोग
पानी भरने आते थे
सामने जल से भरा ताल
और माता भवानी का चबूतरा
चबूतरे के बीच में विशाल बरगद
ताल की बगल में पगडंडी
पगडंडी के दूसरी ओर
घर की लम्बी चार दीवारी
आगे नान्हक चाचा का आफर
उसके एक सिरे पर
खजूर के दो पेड़
पेड़ो के पास से…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2014 at 12:14pm — 19 Comments
हिन्दी दिवस पर विशेष
माँ तुझको याद नहीं करते तू तो धमनी में है बहती I
तू ह्रदय नही इस काया की रोमावली प्रति में है रहती I
अपने ही पुत्रो से सुनकर भाषा विदेश की है सहती I
पर माते ! धन्य नहीं मुख से कोई भी अपने दुःख कहती I
होते कुपुत्र भी इस जग में पर माता उन्हें क्षमा करती I
सुंदरता और असुंदर को जैसे धारण करती धरती I
जो सेवा-रत अथवा …
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 13, 2014 at 8:44pm — 6 Comments
मौत का सघन साया
अनुभूति बनकर आया
मेरे अंतिम क्षणों में I
*
यह आत्मीयता प्रदर्शन
करुणा का कलित क्रंदन
चीत्कार आर्त्त रोदन
या नाट्य अभिनय मंचन
.
इसे देख जी में आया
छोडूं न अभी काया
मेरे अंतिम क्षणों में I
*
सर्वांग व्यथित परिजन
सूने उदास से मन
इतना असीम कम्पन
तब था न जब था जीवन
.
यह मोह है या माया
कुछ कुछ समझ में आया
मेरे अंतिम क्षणों में…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 10, 2014 at 1:30pm — 23 Comments
विधान : 7 सगण + 1 एक रगण (कुल 24 वर्ण )
घन राति अमावस पावस की तम तोम म बैठि गुजारा करूँ I
गुनिकै मन मे रतनाकर के जल नील क नक्श उतारा करूँ I
सुषमा नभ की अवलोकि सदा मन में यहु भाव विचारा करूँ I
जग माहि रचा व बसा प्रभु का वह रूप अनूप निहारा करूँ I
* * *
करि सम्पुट नैन भली विधि सों, प्रभु को धरि ध्यान निहारा करूँ I
कछु भक्ति करूँ, कछु ध्यान धरूँ,…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 5, 2014 at 8:00pm — 19 Comments
शिक्षक यदि तुम गुरु बन जाते
कोटि-कोटि छात्रो के मस्तक चरणों में झुक जाते I
तुम ही अपना गौरव भूले
लोभ -मोह झूले पर झूले
व्यर्थ दंभ पर फिरते फूले
थोडा सा पछताते I
धर्म तूम्ही ने अपना छोड़ा
अध्यापन से मुखड़ा मोड़ा
राजनीति से नाता जोड़ा
तब भी न शरमाते I
कितनी धवल तुम्हारी काया
तुमने उस पर मैल चढ़ाया
शिक्षा को व्यवसाय बनाया
फिरते हो इतराते I
पद्धति की भी बलिहारी…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 5, 2014 at 10:29am — 12 Comments
2021
2020
2019
2018
2017
2016
2015
2014
2013
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |