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हिन्दी दिवस पर विशेष

           

माँ तुझको  याद  नहीं करते  तू तो धमनी  में है बहती I

तू ह्रदय नही इस काया की  रोमावली  प्रति में  है रहती I

अपने  ही पुत्रो से  सुनकर  भाषा  विदेश  की  है सहती I

पर माते ! धन्य नहीं मुख से कोई भी अपने दुःख कहती I

 

होते कुपुत्र  भी इस जग में  पर माता उन्हें  क्षमा करती I

सुंदरता  और  असुंदर  को  जैसे  धारण  करती  धरती I

जो सेवा-रत अथवा  विरक्त  वह श्रम सबका ही है हरती I 

गति से, लयसे,  मृदु भावो से, रस सरसाती मानस भरती I

 

हिन्दी है भाषा  मात्र नहीं यह  ऋतु है वाणी- सावन की I

है  देशवासियों  का गौरव अस्मिता  धरा इस पावन की I

यह राम-कृष्ण  की भाषा है  इसमें  मृदुता है भावन की I

इसकी बोली भी  है अनेक जिनमे है शक्ति लुभावन की I

 

अक्षर-अक्षर  है मंत्र  यहाँ शब्दों  से  श्लोक  छंद सजते I

कविता की धारा मध्य यहाँ रागावलि के मधु स्वर छजते I

मादल, मृदंग बंशी की  धुन कितने ही मदिर राग बजते I

तुलसी-कबीर  सूरादिक भी निज  रचना में भाषा भजते I

 

इसका मार्दव है शतदल सा  हिम शीतल है इसकी धारा I

श्रवणों में इसकी रुन-झुन से ढलमल ढलता है मधु पारा I

हिन्दी में ममता का परिमल  जननी  का वैभव है सारा I

इसकी भाषा  निर्झरिणी में  सोंधा  सा है  सौरभ प्यारा I  

 

भारत-माता के भाल-मध्य शोभित जो उस बिंदी की जय I

है  देव-नागरी  पर्णों  में  तो  पर्णों की  चिंदी की जय I

स्वर्गंगा अपनी  संस्कृत है  तो भाषा  कालिंदी  की जय I

शत-कोटि सपूतो के मुख से निर्झर बहती हिन्दी की जय I

 

हिन्दी की जय ! हिन्दी की जय !

हिन्दी की जय !हिन्दी की जय !

 

(अप्रकाशित व मौलिक )

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2014 at 11:25am

खुर्शीद जी

आपका आभार प्रकट करता हूँ .

Comment by khursheed khairadi on September 17, 2014 at 10:21am

आदरणीय गोपाल नारायण साहब ,सुन्दर और अनूठा गीत है ,सादर अभिनन्दन |उत्कृष्ट रचना के लिए कोटि बधाई स्वीकार करें |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 16, 2014 at 12:29pm

आदरणीय करुण जी

प्रथम तो आपको आभार  . धन्यवाद . अपरंच  चिंदी का शब्दकोष में अर्थ है - विचारणीय  या किसी  चीज  के टुकड़े . दोनों ही अर्थ यहाँ स्वीकृत हो सकते हैं  . पर आपको  अखर गये  है तो कोई वजह होगी . कृपया मार्ग दर्शन हेतु स्पष्ट करना चाहें  . आपने इतना ध्यान दिया . इस हेतु कृतज्ञ हूँ .सादर .

Comment by Santlal Karun on September 15, 2014 at 9:44pm

आदरणीय श्रीवास्तव जी ,

सात बंधों का यह राष्ट्रभाषा की महिमा गीत अनूठा है | हिन्दी से जुड़े गौरव को इसमें अच्छी तररह उभारा गया है --

"भारत-माता के भाल-मध्य शोभित जो उस बिंदी की जय I

है  देव-नागरी  पर्णों  में  तो  पर्णों की  चिंदी की जय I

स्वर्गंगा अपनी  संस्कृत है  तो भाषा  कालिंदी  की जय I

शत-कोटि सपूतो के मुख से निर्झर बहती हिन्दी की जय I"

...सहृदय साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! हाँ, क्षमापूर्वक यह कि 'चिंदी' शब्द पूरे गीत में मुझे अखर गया |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 15, 2014 at 6:22pm

अखिलेश जी

आपका शत-शत आभार i

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 15, 2014 at 3:52pm

आदरणीय गोपाल भाईजी,

हिंदी की महिमा हृदय से गाई, स्वीकार करें हार्दिक मेरी बधाई ,,,, 

उपेक्षा से कमजोर हो गई, बन के रह गई दासी।

न जाने कितने साल जिएगी, हिंदी भूखी प्यासी॥

अँग्रेजी पीकर युवा मस्त हैं, क्या है उनका इरादा।

सेवा गोरी पड़ोसन की सब, करते माँ से ज़्यादा॥

सादर 

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