221 1222 221 1222
तू यार बसा मन में दिलदार बसा मन में
हद छोड़ हुआ अनहद विस्तार सजा मन में
आकाश सितारों में जग ढूँढ रहा तुझको
तू मेघप्रिया बनकर है कौंध रहा मन में
झंकार रही पायल स्वर वेणु प्रवाहित है
आभास हृदय करता है रास रचा मन में
तू कृष्ण हुआ प्रियतम वृषभानु कुमारी मैं
तन काँप उठा मेरा अभिसार हुआ मन मे
आवेश भरा विद्युत है धार प्रखर उसकी
आलोक स्वतः बिखरा जब तार छुआ मन…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2016 at 8:00pm — 10 Comments
एक तू ही थी
जो बचपन में
अपने जोड़े पैसों से
मुझे खिलाती थी
मेरी मनपसंद चीज
और झूठ बोलकर मुझे
बचाती थी पिता के प्यार से
फिर एक दिन तू उड़ गयी
कही दूर किसी अजानी जगह
और फिर बनाया उसे
अपनी कर्म भूमि
आजीवन पूजती रही बट-वृक्ष
और सींचती रही अपने लगाये पौधे
बिताया अपना सारा जीवन
पत्रों से भेजती रही
मेरे लिए राखी
मैं बाँध लेता था उन्हें
आँखें नम हो जाती थे स्वतः
पर आज…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 18, 2016 at 3:32pm — 8 Comments
कुण्डलिया
हुलसी माँ की गोद में सुन्दर सुत अभिराम
जन्म समय जिसने किया उच्चारण श्री राम
उच्चारण श्री राम रामबोला कहलाया
सुख से था वैराग्य कष्ट जीवन भर पाया
कहते हैं ‘गोपाल’ बना तृण से वह तुलसी
जितना रहा अभाव भक्ति उतनी ही हुलसी
मनहर घनाक्षरी
किया रचना विचार भाषा में प्रथम बार
बह चली रस-धार भाव और भक्ति की
देख कविता का रंग विदुष समाज दंग
हुई…
ContinueAdded by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 14, 2016 at 3:26pm — 4 Comments
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