उसका मुझसे दूर जाके मेरे पास आना ज़रूरी तो नही
जो भुला हो मुझे उसे मेरा याद आना ज़रूरी तो नही
आ जाती हैं इस चेहर पे खामोशियाँ कभी कभी
हर वक़्त, बेवजह मेरा मुस्कुराना ज़रूरी तो नही
आकर गले मिलते हैं यूँ तो मुझसे कई हर रोज़
हर शख्स का दिल मे उतर जाना ज़रूरी तो नहीं
कभी पीने पड़ते हैं गम तो कभी मिलते है आँसू
हर रात मेय से भरा हो पैमाना ज़रूरी तो नही
कुछ को मिलते हैं पत्थर,कुछ खुद पत्थर हो जाते हैं
ताजमहल बनवाए यहाँ हर दीवाना…
Continue
Added by Pallav Pancholi on June 29, 2010 at 6:13pm —
2 Comments
चारुलता सी पुष्प सुसज्जित, चंद्रमुखी तन ज्योत्स्ना.
खंजन- दृग औ मृग- चंचलता, मानों कवि की कल्पना.
उन्नत भाल -चाल गजगामिनी, विधि की सुन्दर रचना है.
मंद समीर अधीर छुवन को, सच या सुंदर सपना है.
निष्कलंक -निष्पाप ह्रदय में, पिया-मिलन की कामना.
खंजन-दृग औ मृग-चंचलता, मानों कवि की कल्पना.
तना-ओट से प्रिय को निहारा, नयन उठे और झुक भी गए.
प्रिय- प्रणय की आस ह्रदय में, कदम उठे और रुक भी गए.
थरथर कांपे होंठ हुआ जब, प्रिय से उसका सामना.
खंजन-दृग औ मृग-चंचलता,…
Continue
Added by satish mapatpuri on June 29, 2010 at 1:44pm —
2 Comments
वो पीपल का पेड़ था । सड़क के किनारे - फुटपाथ से लगा - सालो से खड़ा । उस सड़क के इस पार बस स्टैण्ड है । सुबह दफ्तर जाने के लिए इसी बस स्टैण्ड से बस लेती रही हूँ । दफ्तर ही क्यों शहर के किसी भी हिस्से में जाना हो तो बस लेने के लिए यही सबसे नजदीक का बस स्टैण्ड है । पिछले तेइस वर्षों से यही रुटीन है - सुबह साढ़े आठ बजे से पौने नौ बजे के बीच यहाँ पहुँचना होता है ताकि ठीक समय पर बस लेकर ठीक समय पर दफ्तर पहुँचा जा सके । मेरी ही तरह और भी हैं जो उसी समय पर उसी बस में सवार होते हैं । जब तक बस आए,…
Continue
Added by Neelam Upadhyaya on June 28, 2010 at 2:46pm —
2 Comments
अपने देश
भारत में .......
जूते पहनने वाले
नंगे पैरों का दर्द सुनाते है ॥
अंगूठा छाप मंत्री
शिक्छा का अलख जागते है ॥
जिनके नौ - दस बच्चे है
परिवार नियोजन का पाठ पढ़ते है ॥
जिन्होनें जंगल साफ़ कर दिए
वही वृक्छारोपन कार्य चलाते है ॥
दिखाते है जो कानून को ठेंगा
वही नया कानून बनाते है ॥
जो पैसे लेते ,चोर से खुद
फिर कैसे चोर पकड़ ले आते है ॥
ऐ ० सी० में रहने वाले
गर्मी की कथा सुनाते है…
Continue
Added by baban pandey on June 27, 2010 at 11:05pm —
3 Comments
हाइकु गीत:
आँख का पानी
संजीव 'सलिल'
*
आँख का पानी,
मर गया तो कैसे
धरा हो धानी?...
*
तोड़ बंधन
आँख का पानी बहा.
रोके न रुका.
आसमान भी
हौसलों की ऊँचाई
के आगे झुका.
कहती नानी
सूखने मत देना
आँख का पानी....
*
रोक न पाये
जनक जैसे ज्ञानी
आँसू अपने.
मिट्टी में मिला
रावण जैसा ध्यानी
टूटे सपने.
आँख से पानी
न बहे, पर रहे
आँख का…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on June 27, 2010 at 10:50pm —
4 Comments
(एक मजदूर की सोच )
ना मैं कविता जानता हु ,ना ही ग़ज़ल जानता हु
जिस झोपड़ी में रहता हु उसे महल मानता हु ॥
ना मैं राम जानता हू ,ना मैं रहीम जानता हू
माँ -बाप ने जो फरमाया ,फरमान मानता हू ॥
जिस इंसान ने इंसान को सताया , उसे हैवान मानता हू
जो इंसान की कद्र करे , मैं उसे कद्रदान मानता हू ॥
आशाओ के खंडहर में ,कब तक रहोगे दिल थामके
चल कुदाल उठा ,मैं मेहनत को अपना ईमान मानता हू ॥
Added by baban pandey on June 27, 2010 at 5:49pm —
3 Comments
सुनाएये कोई शोक -गीत
आज मन उदास है ॥
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥
फूलों का रंग भी फीका
भौरे भी दहशतज़र्द है
सब जगह उजड़ा हुआ चमन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥
चलो ,खोलता हू वे सभी परतें
जो पूरी न सकी तुम्हारी हसरतें
किससे कहू , किससे वयां करूं
आज खोता हुआ हर बचपन है
भरिये कोई रंग
आज मन , बेमन है ॥
कुछ चंदे दे दो भाई
महंगाई की मार से
मरने वालों के लिए
खरीदना आज कफ़न है
भरिये…
Continue
Added by baban pandey on June 27, 2010 at 12:53pm —
3 Comments
इक तेरे तसव्वुर ने महबूब यूं संवार दी ज़िन्दगी
कि तेरे बगैर भी हमने हँस कर गुजार दी ज़िन्दगी
राहें -मुहब्बत में दर्दो -ग़म देने वाले बेदाद सुन
तेरी इस सौगात के बदले हमने निसार दी ज़िन्दगी
तमाम उम्र यूं रखा हमने अपनी साँसों का हिसाब
जैसे किसी सरफ़िरे ने ब्याज़ पर उधार दी ज़िन्दगी
बात मुक़दर की जब आये शिकवा -गिला बेमानी है
जिसने तुझे गुल बनाया उसी ने मुझे ख़ार दी ज़िन्दगी
तूं ही बता ऐ ख़ुदा उसकी आतिश -अफ़सानी…
Continue
Added by asha pandey ojha on June 27, 2010 at 10:16am —
9 Comments
गीत लिखने का दुः साहस किया हू ,आप ही लोग बताएं कैसा लगा । पति -मिलन के पहले की स्त्रियोचित कल्पना , मगर उनके लिए नहीं जिनका लव -आफेयर चल रहा है
गीत -1
आज सजने की बेला है , सज लू सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥
आ रही है , ये ख़ुशबू कहां से कहुं
गा रही है , ये लज्जा कहां से कहुं
गर जानते हो तुम तो , बताओ सजन
मन के साथ झूमे है, धरा और गगन ॥
पलकों की छावं में हू , कबसे बिठाये तुम्हें
जुल्फों की छाया भी ,कबसे निहारे…
Continue
Added by baban pandey on June 27, 2010 at 7:52am —
1 Comment
मेरे पास
एक महगाई यन्त्र है
यन्त्र क्या , मन्त्र है ॥
बहू-बेटियों से कहें
भारतीय संस्कृति को धयान में रखें
सोमबार /मंगलवार /रविबार को
उपवास करे
भगवन भी खुश
पति भी खुश
और होनेवाले समधी भी खुश
स्लिम बॉडी की बहू मिलेगी ॥
फिर ,
महंगाई, हमलोगों की क्या
हमलोग महगांई की कमर तोड़ देंगे ॥
कुछ दिनों तक ऐसा करेगें
हमलोग
सोमालिया देश के वासी जैसे दिखेगें
संयुक्त राष्ट्र का ध्यान टूटेगा
मुफ्त का गेहू…
Continue
Added by baban pandey on June 26, 2010 at 9:04pm —
1 Comment
जाने क्या हो गया है
आजकल के इंसान को .
पेड काट के आता है
बिल्डिंग बना जाता है|
मार्बल मकराना पत्थर
खूब अच्छे से पहचानता है
बस बुढे बाप की
बढ़ती पथरी नहीं देख पता |
स्वार्थ जलन मोह धन वासना
लक्ष बन जाता है
गौर से देखो यारो इंसान
जानवर से भी पीछे नज़र आता है |
लेखक :- आनंद वत्स .
सह्रदय आभार- आदरणीय बब्बन पाण्डेय जी ..आपसे प्रेरणा मिली है |
Added by Anand Vats on June 26, 2010 at 3:00pm —
4 Comments
(महानगरों की आवास समस्या पर ...)
पहले
घर के आँगन में भी
बना लेती थी
गोरैया अपना घोसला ॥
दाने की खोज में
भूलकर/भटककर
पहुँच गयी एक गोरैया
महानगर में ॥
पेड़ नहीं थे वहां
कहां बनाती अपना घोसला ॥
बिजली का खम्भा ही
एकमात्र विकल्प था
तिनका -तिनका जोड़ कर
बनाया अपना घोसला ॥
फिर एक दिन
बिजली कर्मियों ने
नष्ट कर दिया उसका घोसला ....
अंडे फूट गए ॥
अब गोरैया कहां जायेगी…
Continue
Added by baban pandey on June 25, 2010 at 11:00pm —
5 Comments
यादों के समंदर में जब और जितनी बार डूबकी लगाया हूँ उतनी ही बार ईश्वर की असीम कृपा से कुछ न कुछ मिलता ही रहा है . यादें कुछ तो माँ के आँचल के समान ठंडक देने वाली होती हैं, कुछ यादें तो मन का मानों सन्धिविचेद कर देती रही हो भला इस मनोदशा को ईश्वर के अलावे कौन जान पाया है ! अगर कोई फरिश्ता उस मनोदशा को जानने की कोशिश भी करता है तो शायद इस संसार में उनकी गिनती एक अपवाद ही बन कर रही गयी हो . बचपन में माँ -बाप ,गुरुजनों से जो प्यार और शिक्षा मिली वो तो गंगाजल के सामान पवित्र था .आज भी सोचता हूँ तो…
Continue
Added by Devesh Mishra on June 25, 2010 at 8:00pm —
3 Comments
दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,
दिल में उतर जाओगे ,
हर कदम पर साथ में पाओगे ,
मगर इसके लिए कुछ करना होगा ,
दो शब्द प्यार के बोलना होगा ,
भूलना होगा वो सब नफरत भरे शब्द ,
भूलने के बाद सोचने की जरुरत नहीं ,
कारण, नफ़रत सोचने के लिए नहीं होती,
सोचने के लिए तो बस प्यार होता हैं ,
मेरी बातो पे विश्वास ना हो तो ,
दो शब्द प्यार के बोल कर देखो ,
दिल में उतर जाओगे,
( राणा जी के सुझाव के अनुसार यह पोस्ट प्रबंधन स्तर से एडिट कर वर्तनी और…
Continue
Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 7:30pm —
9 Comments
मुस्कुराहट का राज़
मैं मुस्कुरा कर स्वागत करती हूँ ,
और वो हरदम पूछते हैं ,
इस मुस्कुराहट का राज़ ,
और मैं कहती हूँ ,
मैं हर दम खुश रहती हूँ ,
कारण गम मेरा हमदम नहीं हैं ,
खुशियों से हमने दोस्ती की हैं ,
अगर आप रोता हुआ चेहरा देखेंगे ,
और फिर करेंगे आप सवाल ,
क्या दुःख हैं हमें बतायो,
और मैं अपने दोस्तों को ,
अपने दुःख से दुखी न करूंगी ,
इसलिए आप को इस सवाल का ,
मौका नहीं दूंगी ,
हरदम खुश रहूंगी ,
अब समझ गए…
Continue
Added by Neet Giri on June 25, 2010 at 6:30pm —
4 Comments
बनते -बिगड़ते
संबंधों की आपा-धापी में
मैं खो जाता हू ॥
हड़बड़ी के चक्कर में
प्रेम खोजने के बदले
नफरत खोज लेता हू ॥
रिंग पहनाने को
शादी में बदल पाता
उससे पहले तलाक खोज लेता हू ॥
इसलिए .....
मैं अब
जिंदगी के रेस में
खरगोश नहीं ,
कछुआ बन कर ही
मंजिल तक जाना चाहता हू ॥
Added by baban pandey on June 25, 2010 at 9:20am —
5 Comments
तुम्हारी बातें
एक -एक शब्द जैसे ॥
श्वासों का आना -जाना
किताब के पन्ने
पलटने जैसा ॥
तुम्हारी मुस्कराहट
कविता पढने जैसी ॥
तुम्हारी हँसी
ग़ज़ल की पंग्तिया ॥
तुम्हारी उम्र का
हर गुजरा वक़्त
एक अध्याय समाप्त होने जैसा ॥
तुम्हें समझना
एक समझ न आने वाली
रहस्यमई कहानी जैसा ॥
सचमुच, तुम्हें पढना
एक किताब पढने जैसा ॥
हे ! प्रिय !!!
मैं पढ़ूंगा तुम्हें जीवन…
Continue
Added by baban pandey on June 25, 2010 at 7:45am —
4 Comments
आज की रचना : मुक्तिका:
:संजीव 'सलिल'
ज़िन्दगी हँस के गुजारोगे तो कट जाएगी.
कोशिशें आस को चाहेंगी तो पट जाएगी..
जो भी करना है उसे कल पे न टालो वरना
आयेगा कल न कभी, साँस ही घट जाएगी..
वायदे करना ही फितरत रही सियासत की.
फिर से जो पूछोगे, हर बात से नट जाएगी..
रख के कुछ फासला मिलना, तो खलिश कम होगी.
किसी अपने की छुरी पीठ से सट जाएगी..
दूरियाँ हद से न ज्यादा हों 'सलिल'…
Continue
Added by sanjiv verma 'salil' on June 24, 2010 at 10:58pm —
1 Comment
अपना दुःख किससे कहू मैं ,
यहा कौन हैं सुनने वाला ,
हर तरफ फैला अन्धियारा ,
धधक रही दहेज की ज्वाला ,
बेटी के बाप तो हमभी हैं ,
बड़ी मुश्किल से पढ़ा पाए ,
हम खाय आधपेट मगर ,
बेटी को हम बी कॉम कराए ,
लड़का बढ़िया खोज रहा हु ,
दहेज़ के बिना हैं परेशानी ,
अब सोचता हु क्यों पढ़ाया ,
जन्मते क्यों नहीं नमक खिलाया ,
मर गई होती ये तब ,
परेशानी ये ना आती अब ,
ये लड़का वालो जरा समझो ,
हम भी पढाये ये तो समझो…
Continue
Added by Rash Bihari Ravi on June 24, 2010 at 4:00pm —
5 Comments
मेरे पापा ने
माँ का गर्भ जांच कराया
सांप सूंघ गया उन्हें
शुक्र हो डाक्टर का
उन्होंने कहा ...
"एक ही बार माँ बन सकती है
आपकी पत्नी "
भूर्ण -हत्या से बच गयी मैं ॥
मेरी माँ ने
सिल्क साडी पहननी छोड़ दी
शौक -मौज फुर्र्र
मेरे विवाह की चिंता में
जन्म से ही ॥
पढाई के दौरान
प्यार हो गया एक लड़के से
शादी का लालच दिया उसने
माँ -पिता को खेत न बेचना पड़े
दहेज़ के लिए
यह सोच , भाग गयी उसके साथ…
Continue
Added by baban pandey on June 24, 2010 at 4:00pm —
3 Comments