For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Nilesh Shevgaonkar's Blog – May 2018 Archive (6)

ग़ज़ल-ग़ालिब की ज़मीन पर

था उन को पता अब है हवाओं की ज़ुबाँ और

उस पर भी रखे अपने चिराग़ों ने गुमाँ और. 

.

रखता हूँ छुपा कर जिसे, होता है अयाँ और 

शोले को बुझाता हूँ तो उठता है धुआँ और

.

ले फिर तेरी चौखट पे रगड़ता हूँ जबीं मैं  

उठकर तेरे दर से मैं भला जाऊँ कहाँ और?

.

इस बात पे फिर इश्क़ को होना ही था नाकाम    

दुनिया थी अलग उन की तो अपना था जहाँ और.

.

आँखों की तलाशी कभी धडकन की गवाही 

होगी तो अयाँ होगा कि क्या क्या है निहाँ और.

.

करते हैं…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 13, 2018 at 9:12am — 13 Comments

ग़ज़ल नूर की -कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?

कब है फ़ुर्सत कि तेरी राहनुमाई देखूँ?

मुझ को भेजा है जहाँ में कि सचाई देखूँ.

.

ये अजब ख़ब्त है मज़हब की दुकानों में यहाँ

चाहती हैं कि मैं ग़ैरों में बुराई देखूँ.

.

उन की कोशिश है कि मानूँ मैं सभी को दुश्मन

ये मेरी सोच कि दुश्मन को भी भाई देखूँ.

.

इन किताबों पे भरोसा ही नहीं अब मुझ को,   

मुस्कुराहट में फ़क़त उस की लिखाई देखूँ.

.

दर्द ख़ुद के कभी गिनता ही नहीं पीर मेरा  

मुझ पे लाज़िम है फ़क़त पीर-पराई देखूँ.

.

अब कि बरसात में…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 10, 2018 at 8:43pm — 12 Comments

ग़ज़ल नूर की - याद आया है गुज़रा पल कोई

याद आया है गुज़रा पल कोई
लेगी अँगड़ाई फिर ग़ज़ल कोई.
.
कोशिशें और कोई करता है
और हो जाता है सफल कोई.
.
ज़िन्दगी एक ऐसी उलझन है
जिस का चारा नहीं न हल कोई.
.
इश्क़ में हम तो हो चुके रुसवा
वो करें तो करें पहल कोई.
.
हिज्र में आँसुओं का काम नहीं   
ये इबादत में है ख़लल कोई.
.
इक सिकंदर था और इक हिटलर
आज तू है तो होगा कल कोई.
.
निलेश "नूर"
मौलिक/ अप्रकाशित  

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 9, 2018 at 7:54am — 11 Comments

ग़ज़ल नूर की -तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना

तू जहाँ कह रहा है वहीं देखना

शर्त ये है तो फिर.. जा नहीं देखना.

.

जीतना हो अगर जंग तो सीखिये

हो निशाना कहीं औ कहीं देखना.

.

खो दिया गर मुझे तो झटक लेना दिल

धडकनों में मिलूँगा..... वहीँ देखना.

.

देखता ही रहा... इश्क़ भी ढीठ है

हुस्न कहता रहा अब नहीं देखना.

.

कितना आसाँ है कहना किया कुछ नहीं

मुश्किलें हमने क्या क्या सहीं देखना.

.

एक पल जा मिली “नूर” से जब नज़र

मुझ को आया नहीं फिर कहीं देखना.

.

निलेश…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 6, 2018 at 8:30pm — 11 Comments

तस्वीर (लघुकथा)

छोटे के मन में यह बात घर कर गयी थी कि अम्माँ और बाबूजी उसका नहीं बड़े का अधिक ख़याल रखते हैं.

दोनों भाइयों की शादी होने के बाद यह भावना और बलवती हो गयी क्यूँ कि छोटे की बीवी को अपने तरीक़े से जीवन जीने की चाह थी. ऐसे में घर का बँटवारा अवश्यम्भावी था. बाबूजी ने छोटे को समझाने की बहुत कोशिश की , बड़े का हक़ मारकर भी वो दोनों को एक देखने पर राज़ी थे. बड़ा भी कुछ कुर्बानियों के लिए तैयार था अपने भाई के लिये लेकिन छोटे की ज़िद के आगे सब बेकार रहा.

आख़िरकार घर दो हिस्सों में बँट गया और एक हिस्से…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 5, 2018 at 7:30am — 18 Comments

ग़ज़ल नूर की- पड़ गयी जब से आपकी आदत

पड़ गयी जब से आपकी आदत,

फिर लगी कब मुझे नई आदत. 

.

ज़ाया कर दी गयीं कई क़समें

ज्यूँ की त्यूं ही मगर रही आदत.

.

मुझ को तन्हा जो छोड़ जाती है

शाम की है बहुत बुरी आदत.

.

पैरहन और कितने बदलेगी? 

रूह को जिस्म की पड़ी आदत.   

.

चन्द साथी जो बेवफ़ा न हुए,  

अश्क, ग़म, याद, बेबसी, आदत.

.

ज़िन्दगी यूँ न तू लिपट मुझ से

पड़ न जाए तुझे मेरी आदत.

.

आदतन याद जब तेरी आई

रात भर आँखों से बही आदत.

.

ये…

Continue

Added by Nilesh Shevgaonkar on May 4, 2018 at 3:19pm — 16 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-173
"नमन मंच 2122 2122 2122 212 जो जहाँ होगा वहीं पर वो खड़ा रह जाएगा ज़श्न ऐसा होगा सबका मुँह खुला रह…"
10 minutes ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-116 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
3 hours ago
Sushil Sarna commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आदरणीय रामबली जी बहुत ही उत्तम और सार्थक कुंडलिया का सृजन हुआ है ।हार्दिक बधाई सर"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
" जी ! सही कहा है आपने. सादर प्रणाम. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक भाईजी, एक ही छंद में चित्र उभर कर शाब्दिक हुआ है। शिल्प और भाव का सुंदर संयोजन हुआ है।…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय अशोक भाई साहब।  31 वर्णों की व्यवस्था और पदांत का लघु-गुरू होना मनहरण की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय भाई लक्षमण धामी जी सादर, आपने रचना संशोधित कर पुनः पोस्ट की है, किन्तु आपने घनाक्षरी की…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   नन्हें-नन्हें बच्चों के न हाथों में किताब और, पीठ पर शाला वाले, झोले का न भार…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। रचना पर उपस्थिति व स्नेहाशीष के लिए आभार। जल्दबाजी में त्रुटिपूर्ण…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में सारस्वत सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी। शीत ऋतु की सुंदर…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161 in the group चित्र से काव्य तक
"शीत लहर ही चहुँदिश दिखती, है हुई तपन अतीत यहाँ।यौवन  जैसी  ठिठुरन  लेकर, आन …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service