फूलों ने जब खिलना है तशीर मुताबिक
फेलेगी खुशबु भी तब समीर मुताबिक
कर ले, कह ले, कुछ भी ये हक है तेरा
कलम लिखेगी जब,अपनी जमीर मुताबिक
यूँ तो सपने हजारों तेरे मन में हें,
याद करेंगे लोग पर तदबीर मुताबिक
साथ निभाएँगे कब तक पंख जो मंगवें,
तुम कब उड़ोगे न खुद की जमीर मुताबिक
शख्स जिसका उम्र भर घर ना हुआ था अपना
ऐसा मिलेगा जब भी तो फकीर मुताबिक
चाल ढाल मेरी भी मुझ को समझ ना आई
चलता रहाँ…
Added by मोहन बेगोवाल on March 31, 2013 at 6:30pm — 10 Comments
फिलहाल कुछ ऐसा कीजिए
चुन के कांटे फूल धर दीजिए
और कुछ संभव हो या ना ,
छत को चोग से भर दीजिए
बहुत अंधेरो की बोई फसल
रौशनी की भी मगर बीजिए
तीसरा नेत्र खोल के रखिए
चाहे दोनों आंखे भर लीजिए
हर कोई फोटो फ्रेम लगाए,
दिल में जगह मगर दीजिए
Added by मोहन बेगोवाल on March 25, 2013 at 10:30pm — 6 Comments
चाहत के पंछी को जब उडाता हूँ
दर्दे -ए -दिल और करीब पाता हूँ
घूम कर जब तक वो घर नहीं आता
घर का दर हूँ कब चेन पाता हूँ
मैनें मुस्करा कर हाथ बढाया
उस के अहं से क्यूँ टकराता हूँ
तब मुझ को होने…
ContinueAdded by मोहन बेगोवाल on March 9, 2013 at 5:51pm — 6 Comments
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