For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Coontee mukerji's Blog – March 2013 Archive (8)

क्या आप मुझसे कहकर जाती हैं ?



सरला का छोटा सा सुखी परिवार था. वह बहुत ही अनुशासप्रिय थी. उसके दो बच्चे थे. एक बेटा एक बेटी. बेटा पाँच साल का था और बेटी तीन की. दोनों को अपने काबू में रखती थी सरला.

जब भी कहीं बाहर जाती बच्चों को घर के अंदर रहने की हिदायत देकर बाहर से मुख्य द्वार में ताला लगा देती. बच्चे जब तक बोलने लायक न थे सबकुछ ठीक चलता रहा. एक दिन सरला कहीं बाहर से आयी तो देखा बेटा घर में नहीं है. वह सारा घर छान मारी, आस पास देखा. मगर

बेटा कहीं भी नहीं मिला. वह परेशान होकर अपने पति को जब फ़ोन करना चाही…

Continue

Added by coontee mukerji on March 31, 2013 at 2:00am — 9 Comments

ऐसी ही एक शाम थी

ऐसी ही एक शाम थी

कुछ गुलाबी थोड़ी सुनहरी

सूर्य किरणें जल में तैरती

तरल स्वर्ण सी चमकीली

फैली थी घनी लताएँ

हरित पत्तों बीच गहरी

बैगनी फूलों की छाया

हृदय में थी ठहरी सी

मन झील सा शांत

इच्छाएँ थीं चंचल , अकिंचन

पहेलियाँ कितनी अनबुझी

तैर रही थी मीन सी

गोद में खुला पड़ा था

पत्र एक , किसी अंजान का

उपेक्षित सा यूँ ही

बरसों पहले था पढ़ा

कितनी रातें बीती थी

सपनों में भटकती थी

उपवन में कभी , कभी –

निविड़…

Continue

Added by coontee mukerji on March 27, 2013 at 12:30am — 8 Comments

अकेली औरत





शोभना जितनी सुन्दर थी उतनी ही बेबाक और गर्वीली भी थी. वह अमरीका से उच्च शिक्षा प्राप्त थी. होम मिनिस्ट्री में बहुत ही ऊँचे पद पर आसीन थी. उसे शादी नाम से बहुत चिढ़ थी. जब वह पैंतीस साल की हो गयी तो एकदिन उसके पिता ने उससे कहा- “ शोभना ! अगर तुम्हें कोई पसंद हो तो बता देना मैं तुम्हारी शादी उसीसे कर दूँगा. ”

शोभना ने भी सोचा अब शादी कर ही लेनी चाहिये. अतः अपने पिता से बोली – “ठीक है पिता जी, लेकिन मुझे मेरे ही ग्रेड का वर चाहिये. ’’

शोभना स्वयं अपने वर की तलाश करने लगी.…

Continue

Added by coontee mukerji on March 25, 2013 at 9:00pm — 6 Comments

रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ

रंगों के बाज़ार में खड़ी हूँ सखि !

मेरा घर सूना , आंगन सूना ,

बाग बगीचे , पेड़ पात सूना

दिन रात सूना, सूना मेरा आंचल,

पिया परदेश , संसार मेरा सूना.

होली रंगों की थाल लिये

द्वार खड़ी हँस रही , क्या करूँ सखि !

उदासी मेरा रूप श्रृंगार, हाय !

नौकरी बनी सौतन मेरी.

बिन बादल बरसात होती नहीं,

डाल पर मैना अब गाती नहीं -

उ‌ड़ता है रंग हर कहीं,

कोई रंग मुझको भाता नहीं.

फूलों की बरसात हो रही,

मेरे जूड़े में फूल लगता नहीं -

अंतहीन…

Continue

Added by coontee mukerji on March 24, 2013 at 7:16pm — 5 Comments

उलझन

लुढ़क के वहीं आ खड़ी हुई ज़िंदगी

जहाँ थे कभी खड़े,

कदम थे कितने नपे तुले

किस राह पर , कहाँ फिसल के रह गये.

मुड़कर देखना क्या ?

सोच के पछ्ताना क्या ?

हवा भी कुछ ऐसी बही,

चट्टान ढलान में ठहरता क्या ?

दूर दूर तक था रेगिस्तान

नैनों में कितने रेत पड़े,

आँसू किसके बहकर रहे

अतीत के या आने वाले कल के.

फूलों पर चलते थे कभी -

कब पंखुड़ियाँ रह गये मुरझा के,

एक शुष्क पात भी नहीं रहा

देखूँ जिसे कभी नज़र भर के.

जिधर भी गये हाथ…

Continue

Added by coontee mukerji on March 20, 2013 at 9:50pm — 7 Comments

पिघलता क्षण



जब ढल जाती है रात

कृष्ण-पक्ष की काली गह्वर सी अकेली,

एक सितारा टिमटिमाता हुआ

उलटा लटका सा नज़र आता है.

शय्या पर बैठी उनींदी,

एक सांस खींचती गहरी सी,

खोलती हूँ जब आँखें पूरी

दूर कहीं निगाह भटक जाती है.

निःस्तब्ध रात्रि और मेरा अकेलापन

अपने विचारों को समेटती,

अनगिनत नक्षत्रों को गिनती

रहती हूँ शून्य में खोई सी.

दूर कहीं बादल भटकते,

कुछ यादें शूल से चुभते,

बाग में पत्रहीन वृक्ष भीड़ में…

Continue

Added by coontee mukerji on March 15, 2013 at 8:41pm — 4 Comments

नारी क्यों रोती है

सुंदर छवि पा,

नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?

 

मधुपों की प्रियतमा,

जग में जो अनुपमा,

शशि की किरणों की बाँहें थाम

कमलिनी निशा में खिलती है –

सुंदर छवि पा,

नयन भर आंसू , नारी क्यों रोती है ?

 

सागर की उत्ताल तरंगें,

चट्टानों से टकराती लहरें,

होती हैं क्यों छिन्न-भिन्न !

क्या है यह नज़रों का भ्रम

क्षितिज की मृगतृष्णा लिये,

धरा गगन को छूती है –

सुंदर छवि पा,

नयन भर आंसू ,…

Continue

Added by coontee mukerji on March 8, 2013 at 12:51am — 9 Comments

आज़ादी के नाम पर (मॉरीशस के 45 वें स्वतंत्रता दिवस 12 मार्च 2013 के अवसर पर)

मौलिक एवं अप्रकाशित

मेरे पूर्वज भारत से आये थे इतना सुनकर

मारीच में सोना मिलता है पत्थर पलटकर

उन्नीसवीं सदी का दौर था,

अंग्रेज़ों का कठोर राज था,

हर दिशा हाहाकार मचा था,

बिहार से हर कोई भाग रहा था.

प्रथम पग रखे जब मारीच के रेतीले धरती पर

उन्हें क्या पता  कि वे लाये गये ठगकर

बंद कोठरी में वे कितने दिन पड़े थे,

आदमी जानवर की तरह गिने जाते थे,

जिससे डर के इतने दूर भागे…

Continue

Added by coontee mukerji on March 4, 2013 at 2:18pm — No Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
Tuesday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service