मौलिक एवं अप्रकाशित
मेरे पूर्वज भारत से आये थे इतना सुनकर
मारीच में सोना मिलता है पत्थर पलटकर
उन्नीसवीं सदी का दौर था,
अंग्रेज़ों का कठोर राज था,
हर दिशा हाहाकार मचा था,
बिहार से हर कोई भाग रहा था.
प्रथम पग रखे जब मारीच के रेतीले धरती पर
उन्हें क्या पता कि वे लाये गये ठगकर
बंद कोठरी में वे कितने दिन पड़े थे,
आदमी जानवर की तरह गिने जाते थे,
जिससे डर के इतने दूर भागे थे
उसी जाल में वे पुन: आ फँसे थे.
' न माया मिली न राम ' इतना वे जान गये थे देखकर
' हर तरफ़ अंग्रेज़ों का साम्राज्य है ' चुप थे बात समझकर
पत्थर पलटा सोना न मिला
तेज़ धूप और पीठ पर कोड़ा मिला
सोने के लिये सोना नसीब न हुआ,
कैसी विडम्बना कैसा धोखा हुआ.
दृष्टि जाती जहाँ तक, देखते क्षितिज सर उठाकर,
उस पार है देश अपना देख रह जाते मन मसोसकर
देश से जो साथी अपने थे आये
कुछ रुग्न थे, कुछ थे हट्टे-कट्टे
कुछ अल्ला को प्यारे हो गये
और कुछ खो गये सदा के लिये.
एक सदी बीत गयी घर छोड़े समुद्र पार कर
खून-पसीना बहाते रहे यहीं अपना घर बसाकर
इंसान हैं तो अपनी पहचान है
पहचान क्या है यही सवाल है
भारतीय हैं हम कि ग़ुलाम हैं
धर्म-संस्कृति पर लगा लगाम है.
हवा में ऐसी बातें उड़ती थीं अक्सर
जिन्हें सुनकर मन काँपता था थर-थर
फ्रेंचों के काले ज़माने में
हब्शियों को ग़ुलाम बनाया था
दिन-रात शोषण सरेआम होता था
क्रूरता से उन बेचारों को मिटाया गया था.
धर्म-संस्कृति से हुए जुदा वे अपनी जबान गँवाकर
मिट गये मालगासी स्वयम को भुलाकर
लेकिन -
महान देश के हम हैं संतान,
हम क्यों मिटायें अपनी पहचान,
यही भावना जागी, बदला मन,
पढ़ो पढ़ाओ घर-घर हो भजन.
जगाया था हीनभाव " कुली " " गिरमिटिया " कहकर
सत्य बहुत कड़वा था गोरे कहते थे ' ऐ मालबार '
लंगोट पहने कितने ही बुद्धिजीवी थे
गुणी पण्डित कितने ब्राह्मण श्रेष्ठ थे,
हिंदू-मुस्लिम रहते थे भाई-भाई की तरह
तभी एक दूसरे के नाम से जुड़े थे.
साथ लाये थे वे हिंदू धर्मग्रंथ और क़ुरान सहेजकर
पढ़ने-पढ़ाने लगे हर शाम अपनी कोठरी में बैठकर
पत्थर को देवी-देवता रूप पूजने लगे
गाँव-गाँव में मंदिर की स्थापना करने लगे
शिव औ' हनुमान आराध्य देवता बने
तांत्रिक ओझा जंतर-मंतर फूँकने लगे.
संस्कृति को बचाने का उपाय था व्रत-त्योहार
होली-दिवाली होने लगी, समुद्र बना गंगा-द्वार
कुछ लोग सामिष तो कुछ निरामिष थे
जिसकी जैसी भावना वैसी पूजा करते
कालीमाई के चौतरे पर बकरे चढ़ाते
कुल देवी को खीर-पूरी का भोग लगाते.
लाल चींटी सदृश अंग्रेज़ बढ़ रहे थे झण्डा फहराकर
रोके नहीं तो वे रह जाएँगे संसार को निगलकर
कैसा समय था हर कोई त्रस्त था
हिंद महासागर में अंधेर मचा था
अपने अस्तित्व की रक्षा करना था
हर हाल में सबको लड़ना था.
हिंदुस्तान में स्वाधीनता आंदोलन चल रहा था ज़ोरों पर
तभी मोहनदास आये अफ्रीका महाद्वीप से होकर
बीसवीं सदी का उदय था,
साल उन्नीस सौ एक था,
अट्ठारह दिन गांधी का वास था
अहा ! हमारा क्या अहोभाग्य था.
" आज़ादी है इंसान का जन्मसिद्ध अधिकार "
गांधी ने देशभक्ति को किया सोच्चार
महसूस किया हमारी लाचारी को
देखा कैसे फैले थे अंधविश्वास
भारत से भेजा मणिलाल को
कि आकर फैलाएँ ज्ञान का प्रकाश
सनातन धर्म की चर्चा होती ही थी घर-घर
आर्य समाज की शाखा खुली नारी प्रगति के पथ पर
स्त्री-पुरुष और बच्चे सभी शिक्षा पाने लगे
समाज सुधारकों ने लिया कठोर प्रण
स्वतंत्रता पानी है तो उच्च शिक्षा ज़रूरी है
संतान को भेजा विदेश, बदलने लगे जीवन पथ.
' भारत छोड़ो ' का नारा गूंज रहा था भारत भर
उद्बुद्ध हुए हमलोग भी हृदय में उत्साह भर
उन्नीस सौ सैंतालीस आया, भारत आज़ाद हुआ
मॉरीशस की जनता में भी स्वप्नों का संचार हुआ
आज़ादी का डंका घर-घर बजने लगा
अंतत: उन्नीस सौ अढ़सठ में देश हमारा स्वाधीन हुआ.
तिरंगा भारतीयों का मान है तो चौरंगा है हमारी शान,
नयी चुनौती और नयी उमंग के संग चल पड़ी देश की संतान.
बारह मार्च का पावन दिन सुनहरा
एक नया परिचय लेकर हुआ सवेरा.
गगन धरती को चूमती है जहाँ
पाई ऑं के का बसेरा है जहाँ
हिंद महासागर में है द्वीप तारा
सुंदरता की छवि मॉरीशस है देश हमारा.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online