मैं प्रेम हूँ
तुम भी तो प्रेम ही हो
प्रेम से हट कर
क्या नाम दूँ
तुम्हें भी और मुझे भी ...
कितनी सदियों से
और जन्मो से भी
हम साथ है
जुड़े हुए एक-दूसरे के
प्रेम में
हर जन्म में तुमसे
मिलना हुआ
लेकिन मिल के भी मेल
ना हो सका
प्रेम फिर भी रहा
तुम में और मुझ में भी
चलते जा रहें है
समानांतर रेखाओं की तरह
साथ हो कर भी साथ…
ContinueAdded by upasna siag on February 28, 2013 at 3:30pm — 17 Comments
साथियों बड़े हर्ष के साथ सूचित करना है कि ओ बी ओ सदस्य डॉ सूर्या बाली "सूरज" को विगत दिनों होटल ताज नई दिल्ली में भारत के उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी द्वारा पुरुस्कृत किया गया | यह पुरस्कार डॉ बाली की एक डाक्टर के तौर पर की गयी सामाजिक सेवाओं के लिए है जिसे आप…
ContinueAdded by Admin on February 25, 2013 at 4:30pm — 27 Comments
आँख जैसे लगी, ख़ाक घर हो गया
जुल्म का प्रेत कितना निडर हो गया ।
कुछ दरिन्दों ने ऐसी मचाई गदर
खौफ की जद में मेरा नगर हो गया ।
थी किसी की दुकाँ या किसी का महल
चन्द लम्हों में जो खण्डहर हो गया ।
है नजर में महज खून ही खून बस
आज श्मसान 'दिलसुखनगर' हो गया ।
थी ख़बर साजिशों की मगर, बेखबर !
ये रवैया बड़ा अब लचर हो गया ।
कौन सहलाये बच्चे का सर तब 'सलिल'
जब भरोसा बड़ा मुख़्तसर हो गया ।
------ आशीष 'सलिल'…
Added by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 22, 2013 at 10:00pm — 24 Comments
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
हृदयाश्रुओं का अर्घ्य दे
हर भाव को सामर्थ्य दे
विह्वल हृदय में गूँजती
मृदुनाद सी सुरधीत है....
मनमीत तेरी प्रीत की पदचाप मंगल-गीत है
निर्भीत मन, अभिनीत तन, जीवात्मा सुप्रणीत है...
सूर्यास्त नें चूमा उदय
दे हस्त…
ContinueAdded by Dr.Prachi Singh on February 15, 2013 at 8:00pm — 35 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 13, 2013 at 8:35am — 24 Comments
त्रिभंगी सलिला:
ऋतुराज मनोहर...
संजीव 'सलिल'
*
ऋतुराज मनोहर, प्रीत धरोहर, प्रकृति हँसी, बहु पुष्प खिले.
पंछी मिल झूमे, नभ को चूमे, कलरव कर भुज भेंट मिले..
लहरों से लहरें, मिलकर सिहरें, बिसरा शिकवे भुला गिले.
पंकज लख भँवरे, सजकर सँवरे, संयम के दृढ़ किले हिले..
*
ऋतुराज मनोहर, स्नेह सरोवर, कुसुम कली मकरंदमयी.
बौराये बौरा, निरखें गौरा, सर्प-सर्पिणी, प्रीत नयी..
सुरसरि सम पावन, जन मन भावन, बासंती नव कथा जयी.
दस दिशा तरंगित, भू-नभ…
Added by sanjiv verma 'salil' on February 12, 2013 at 8:30pm — 12 Comments
Added by SANDEEP KUMAR PATEL on February 5, 2013 at 4:30pm — 23 Comments
मित्रों, कई दिन के बाद एक ग़ज़ल के चंद अशआर हो सके हैं, आपकी मुहब्बतों के नाम पेश कर रहा हूँ
वो हर कश-म-कश से बचा चाहती है |
वो मुझसे है पूछे, वो क्या चाहती है |
यूँ तंग आ चुकी है इन आसानियों से,
हयात अब कोई मसअला चाहती है |…
ContinueAdded by वीनस केसरी on February 5, 2013 at 10:00am — 17 Comments
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