For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s Blog – January 2020 Archive (9)

जे पी सरीखे नेता - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' (गजल)

२२१/२१२२/२२१/ २१२२

किस काम के हैं नेता किस काम का ये शासन

इनके रहे  वतन  में  जब  नित्य  होनी अनबन।१।

**

किस बात से हैं  सेवक  कहते  पहन के खादी

निर्धन के घर  अगर  ये  डलवा  न पाये राशन।२।

**

अंग्रेज  थे  बुरे  या   चम्बल   के   चोर   डाकू

गर जो हो लूट खाना भर  देश का ही जनधन।३।

**

किस बात की हो चिन्ता  किस बात से परेशाँ

मथकर के दे रही  है  जनता इन्हें तो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 30, 2020 at 4:38am — 2 Comments

बारूदों की जिस ढेरी पर-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



विकसित होकर  हम ने  कैसी  ये  तस्वीर उकेरी है

आदमयुग थी यार न दुनिया जितनी आज अँधेरी है।१।

**

बारूदों की जिस ढेरी  पर  नफरत आग लिए बैठी

उससे सब कुछ ध्वंस में बोलो लगनी कितनी देरी है।२।

**

जिसको देखो वही चोट को लाठी लेकर डोल रहा

कहने को पर  सब के  मन  में  सुनते  पीर घनेरी है।३।

**

मजहब पन्थों के हित  में  तो…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 27, 2020 at 6:19am — 8 Comments

लिए सुख की चाहतें हम - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

1121       2122         1121     2122

‌मेरे  साथ  चलने  वाले  तुझे  क्या  मिला  सफर में

‌बड़ा चैन था अमन था बड़ा सुख था तुझको घर में।१।

**

‌कहीं दुख भरी ज़मीं  तो  कहीं  गम का आसमाँ है

‌लिए सुख की चाहतें हम अभी लटके हैं अधर में।२।

**

‌जहाँ  देखता हूँ  दिखता  मुझे  सिर्फ  ये  धुआँ है

‌रह फर्क अब गया क्या  भला  गाँव और' नगर…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 22, 2020 at 8:09am — 6 Comments

मिट्टी की तासीरें जिस को ज्ञात नहीं -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२

‌जो दुनिया को  सबका  ही  घर कहता है

वो क्यों मुझ को  रहने  से  डर कहता है।१।

**

हद से बढ़कर निजता का अभिमान हुआ

अब हर क़तरा खुद को समन्दर कहता है।२।

**

मिट्टी  की  तासीरें  जिस  को  ज्ञात  नहीं

वो  लालच  में  धरती  बन्जर  कहता है।३।

**

ढोंगी  है  या  फिर  कोई  अवतार लखन

‌मालिक बनकर खुद को नौकर कहता है।४।

**

जिसके पास नहीं है दाना वो भी अब

मैं  दाता  हूँ, …

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2020 at 5:17am — 12 Comments

जिसके पुरखे भटकाने की - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'(गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



ये मत समझो मान के अपना गले लगाने आया है

जीवन में  खुशियाँ  कैसे  हैं  भेद  चुराने  आया है।१।

**

अनहोनी सी लगती मुझको अब कुछ होने वाली है

नदिया के तट आज समन्दर प्यास बुझाने आया है।२।

**

जिसके पुरखे भटकाने की रोटी खाया करते थे

वो कहता है आज देश को राह दिखाने आया है।३।

**

जिस बस्ती को दसकों पहले हमने खूब सदाएँ दी

उस बस्ती को सूरज  देखो  आज जगाने आया है।४।

**

अपने हिस्से तूफाँ तो थे माझी भी क्या खूब…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 14, 2020 at 7:28am — 10 Comments

तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२१/२१२१/२२२/१२१२

पर्दा सलीके से बहुत मकसद पे डाल कर

वो लाये सबको देखिए घर से निकाल कर।१।

कितना किया अहित है यूँ अपने ही देश का

लोगों ने उसके नाम  पर  पत्थर उछाल कर।२।

वंशज  उन्हीं  के  कर  रहे  जर्जर  इसे यहाँ

रखना जो कह गये थे ये कश्ती सँभाल कर।३।

कर्तब तेरे  किसी  को  यूँ  आते  समझ  नहीं

तू भी निजाम नित नया मत अब कमाल कर।४।

कर  ली  है  पाँच   साल  यूँ   नेतागरी  बहुत

बच्चों सरीखा…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 8, 2020 at 4:26pm — 11 Comments

माग रहे हैं तोड़ के घर को -लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल)

२२२२/२२२२/२२२२/२२२



छोड़ गये थे केवट जिन को तूफानी मझधारों पर

साहिल वालो उनसे पूछो क्या बीती दुखियारों पर।१।



हम  जैसों  की  मजबूरी  थी  हालातों  के  मारे थे

कहने वाले खुदा स्वयम् को नाचे खूब इशारों पर।२।



आग जलाकर मजहब की नित सबने जो तैयार किये

सच  में  हर  पल  देश  हमारा  बैठा  उन  अंगारों पर।३।



माग रहे हैं तोड़ के घर को नित…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 5, 2020 at 4:55am — 10 Comments

रखकर वतन को आपने काँटों की सेज पर - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'( गजल)

२२१/२१२१/२२२/१२१२



मिट्टी को जिसने देश की चन्दन बना लिया

जीवन को उसने हर तरह पावन बना लिया।१।



करते नमन हैं  उस को  नित छोटा भले सही

जिसने भी अपना सन्त सा यौवन बना लिया।२।



कहते  हैं  राह रच  के  ही  रहजन  हुए  मगर

अब तो वही है जिसने पथ भटकन बना लिया।३।



साधन हो साध्य से अधिक पावन ये रीत थी

पर अब फरेब  झूठ  को  साधन बना लिया।४।



जो उम्र पढ़ने लिखने की पत्थर हैं हाथ में

कैसा सुलगता देश का बचपन बना…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 3, 2020 at 6:32am — 4 Comments

भूख गरीबी जाति धर्म से लड़ना नूतन साल यहाँ - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

२२२२/२२२२/२२२२/२२२

बर्षों  से  जब  रहते  आये  दुख  से  मालामाल  यहाँ

सुख आकर भी कर पायेगा फिर कितना कंगाल यहाँ।।



तुम रख लेना शायद तुमको उम्मीदों का साल मिले

हमने तो हर पल  है  खोया  उम्मीदों का साल यहाँ।।



शीष झुकाये रहे सहिष्णुता जैसे सब की दोषी हो

खूब मजहबी झगड़े रहते ताने अब तो भाल यहाँ।।



साल नया कितनी उम्मीदें…

Continue

Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 1, 2020 at 5:51am — 10 Comments

Monthly Archives

2024

2023

2022

2021

2020

2019

2018

2017

2016

2015

2014

2013

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service