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प्यार को साधो अगर तो जिंदगी हो जाएगी
गर रखो बैशाखियों सा बेबसी हो जाएगी /1
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बात कड़वी प्यार से कह दोस्ती हो जाएगी
तल्ख लहजे से कहेगा दुश्मनी हो जाएगी /2
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फिर घटा छाने लगी है दूर नभ में इसलिए
सूखती हर डाल यारो फिर हरी हो जाएगी /3
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मौत तय है तो न डर, लड़, हर मुसीबत से मनुज
भागना तो इक तरह से खुदकुशी हो जाएगी /4
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मन मिले तो पास में सब, हैं दरारें कुछ अगर
दो कदम की दूरियाँ भी इक सदी हो जाएगी /5
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कौन कहता है ‘मुसाफिर‘ तू सजाकर बात कह
प्यार के दो बोल कह दे शायरी हो जाएगी /6
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( रचना 28 फरवरी 2014 )
मौलिक और अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’
Comment
आ० सविता जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद .
मन मिले तो पास में सब, हैं दरारें कुछ अगर
दो कदम की दूरियाँ भी इक सदी हो जाएगी......बहुत सुंदर ....सभी
आदरणीय भाई गिरिराज जी गजल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई जितेंद्र जी आपकी उपस्थिति से गजल को जो मान मिला है उसके लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई गुमनाम जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई सन्तलाल जी, गजल की प्रशंसा और स्नेहाशीष के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आदरणीय भाई गोपालनरायन जी स्नेहाशीष के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई नरेंद्र जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार ।
आदरणीय भाई विजय जी , आपको गजल अच्छी लगी यह मेरे लिए हर्ष का विषय है । स्नेह बनाए रखें ।
आदरणीय भाई नीरज मिश्र्रा जी , गजल का अनुमोदन कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
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