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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला
  • जयपुर rajasthan
  • India
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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Discussions

ईश अंश अजर अमर है
1 Reply

ईश अंश ही अजर अमर है=================शास्वत सत्य सनातन जानो, ईश-अंश ही अजर-अमर है ।शेष सभी जीवों का निश्चित, होता आया जन्म-मरण है ।।जन्म-मरण की विधि नैसर्गिक, कोई रोक नहीं सकता है ।जीव-जगत का शास्वत…Continue

Started this discussion. Last reply by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला Sep 23, 2023.

 

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लक्ष्मण रामानुज लडीवाला posted a discussion

ईश अंश अजर अमर है

ईश अंश ही अजर अमर है=================शास्वत सत्य सनातन जानो, ईश-अंश ही अजर-अमर है ।शेष सभी जीवों का निश्चित, होता आया जन्म-मरण है ।।जन्म-मरण की विधि नैसर्गिक, कोई रोक नहीं सकता है ।जीव-जगत का शास्वत खेला, कर्मों पर निर्भर करता है ।।स्थूल शरीरा सब जीवों का, पञ्च-तत्व से निर्मित घर है ।शास्वत सत्य सनातन जानो, ईश-अंश ही अजर-अमर है ।।भटके मृग पाने कस्तूरी, रहती लेकिन प्यास अधूरी ।कर्म-प्रधान सभी ने माना, सद्कर्मो से क्यों फिर दूरी ।।आया जो भी जीव जगत में, सबका ही जीवन नश्वर है ।शास्वत सत्य सनातन…See More
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Profile Information

Gender
Male
City State
JAIPUR
Native Place
India
Profession
Retired Govt service
About me
Interest in writing poems,stories and articles

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About me

 Retired Accountant from Collectorate,Jaipur and Rajasthan Vidhan Sabha,Jaipur. I had been co-editor of "AGRAMMI" monthli magazine since 1975 to 1978, and Editor of "Nirala-Samaj" Quarterly both are social magazines of Agrawal community.Jaipur. Articles published in Rajasthan Patrika, and Rastradoot daily from JAIPUR between 1970 and 1980..

 

Published books - छंद काव्य संकलन -'करते शब्द प्रहार' ओक्टुबर,2016 और 'लक्ष्मण की कुण्डलियाँ'  साझा संकलन - 'कुंडलिया छंद के नए हस्ताक्षर', 'गीत गुनगुनाएं फेर से', और 'गीतिका संकलन'

लक्ष्मण रामानुज लडीवाला's Blog

ओ बी की आठवीं वर्षगाँठ पर कुछ दोहे - लक्ष्मण रामानुज

ओ बी ओ में हो रहा, उत्सव का आगाज |

आठ  वर्ष  तक का सफ़र,साक्ष्य बना है आज  ||

 

दूर दृष्टि बागी लिए, खूब बिछया साज |

योगराज के यत्न से, बना खूब सरताज | |

 

काव्य विधा को सीखते, विद्वजनों…

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Posted on April 2, 2018 at 2:30pm — 27 Comments

जग में करूँ प्रसार (गीत) - रामानुज लक्ष्मण

मुक्त हृदय से आज करूँ मैं, सबका ही सत्कार,

माँ वीणा सद्ज्ञान मुझे दो, जग में करूँ प्रसार ||

माँ-बापू के सद्कर्मों से, आया माँ की गोद।

मिला छत्र छाया में उनके,जीवन का आमोद।।

किये बहत्तर वर्ष पार ये, बिना किसी अवसाद 

स्वर्गलोक से मिलता मुझको,उनका आशीर्वाद।।

माँ-बापू से पाया मैंने,जीवन में संस्कार।

मिला सनातन धर्म रूप में, मुझको भारत वर्ष ।

ऋषि-मुनियों का देश यही है,इसका मुझको हर्ष ||

वन-उपवन में रोप सकूँ मै, कुछ सुन्दर से…

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Posted on November 19, 2017 at 7:30am — 14 Comments

जलकर करता उजियारा (गीत)

गीत - मुखड़ा -

करे तमस को दूर दीप ही, दूर भागता अँधियारा |

दीप निभाये धर्म सदा ही, जलकर करता उजियारा ||

सूर्य किरण उठ भोर झाँकती, नित्य सदा ही खिड़की से

दीन करे विश्राम डरे बिन, सदा मेघ की घुड़की से ।।

दीन-हीन के द्वार जहाँ भी, घिरने लगता अँधियारा

दीप निभाये धर्म सदा ही, जलकर करता उजियारा ।

दीप जलाएं द्वारें जाकर, छँटे दीन का अन्धेरा ।

सबको दे उजियार दीप ही,पर खुद का नही सवेरा ।।

दुख दर्दों की मार झेलता, दीन हीन सा…

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Posted on November 3, 2017 at 2:00pm — 9 Comments

फ़रिश्ता (लघु कथा)

 
चार-पांच वर्ष का बच्चा प्रकाश मकान की दूसरी मंजिल पर छत पर खेलते हुए कटकर आई एक पतंग को लूटने के लिए बालकनी से खिड़की में झुका, तभी पाँव फिसलने से खडकी के बाहर छज्जे से लुडककर सडक पर गिरने लगा तभी सड़क पर दूर से देख एक व्यक्ति चिल्लाया “अरे ये बच्चा गिरा” |
उसी समय उस गली से ससुराल के मकान के नीचे से रोज की तरह गुजर…
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Posted on November 1, 2017 at 7:51pm — 4 Comments

नई कमीज



माँ के निकाले हुए पुराने बर्तन बेचकर दीपावली त्योहार के लिए जरूरी सामान की सूची अनुसार पिताजी बाजार से पूजा का सामान, छोटे-छोटे पाँच फल, दो गन्ने, पाँव लड्डू-जलेबी, फूले-पतासे, लक्ष्मी जी का पाना, और रुई लाकर सामान माँ को देते हुए पूछा 21 की जगह 11 दीपक ही ले आता हूँ । इस पर माँ बोली -"मेरे पीहर के गांव कुंडा से कुम्हार आया था जो कल मना करने पर भी 21 दीपक रख गया है और पूछने पर भी रुपये नही बताये । अब उसे रुपये भाई-दूज के बाद दे आऊंगी । इस बार तो 21 दीपक ही…

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Posted on October 18, 2017 at 6:28pm — 18 Comments

दोहे

महिला दिवस पर रचित दोहे -



मही रूप देवी धरे, धैर्य गुणों की खान

साहस की प्रतिमूर्ति भी, नारी को ही मान | 



सृष्टि सृजनकर्ता यही,यही मही का अर्थ,

रणचण्डी भी बन सके, नारी सभी समर्थ ।



महिला से महके सदा,घर आँगन में फूल

वही सजाती घर सदा, मौसम के अनुकूल ।



जीवन के हर रूप में, नारी मन उपहार,

आलोकित जीवन करे, खुशियों के…

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Posted on March 9, 2017 at 4:30pm — 4 Comments

Comment Wall (59 comments)

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At 3:25pm on November 19, 2015, pratibha pande said…

 जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ आपको आदरणीय लडीवाला जी  

At 4:56pm on November 19, 2014, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव said…

आदरणीय लडीवाला जी

आपको जन्मदिवस के अवसर पर ढेरो शुभ कामनाये i आप चिरायु हो और स्वस्थ रहें i

At 11:03am on October 2, 2013,
सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी
said…

आदरणीय लक्ष्मण भाई , आपका बहुत्बहुत आभार !!

At 9:56pm on September 23, 2013, SANDEEP KUMAR PATEL said…

आदरणीय लक्षमण सर जी सादर धन्यवाद आपका स्नेह और आशीष यूँ ही बनाये रखिये

At 8:53am on September 2, 2013, अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव said…

लक्ष्मण भाई- सप्रेम राधे- राधे । सही सलाह एवं गीत को दिल से पसंद करने के लिए हार्दिक् धन्यवाद ॥

At 8:30am on August 15, 2013, D P Mathur said…

आदरणीय लडीवाला सर  प्रणाम , रचना पसंद करने के लिए आपका तहेदिल से आभार और धन्यवाद !

At 1:34pm on August 11, 2013, mrs manjari pandey said…

आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी हार्दिक आभार.

At 4:57pm on July 26, 2013, Dr Ashutosh Vajpeyee said…

abhar laxman ji

At 8:15pm on July 23, 2013, Albela Khatri said…

aapke prem ke liye aabhari hun bahut bahut aabhaar evm dhnyavaad आपका स्नेह, दुलार, आशीष एवं आत्मीयता की सुगंध का झोंका मेरे जीवन में नया उजाला लाएगा ...ऐसा मुझे भरोसा है ........आपकी कृपादृष्टि के लिए कृतज्ञ हूँ

सादर

At 12:30pm on July 18, 2013, राज़ नवादवी said…

आदरणीय लक्ष्मण जी, हांलाकि मुझे दोहों का कुछ ख़ास ज्ञान नहीं है मगर क्या खूब कहा है आपने-

'बहका बहका दिख रहा, खुद का ही व्यवहार

जैसे सब कुछ ख़त्म है, मन मेरा लाचार | '

बधाई हो!

 
 
 

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