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गीत

पुलकित तन से पुलकित मन से, नाच रहे है जन जन सारे।
सदियों  का  वनवास  अंत  कर, सकल  राष्ट्र में राम पधारे।
**
राजनीति ने करवट  ली  तो, हर  सोया विश्वास जगा है।
सच है राजा रंक सभी के, मन में बस उल्लास दिखा है।।
घटघट वासी राम भले हों, घटघट उन में आज बसा है।
होकर एकाकार  सनातन, अद्भुत यह इतिहास रचा है।।
**
सिर्फ न देशी  लोग  विदेशी, दर्शन  को  निष्काम पधारे।
सदियों का वनवास अंत कर, सकल राष्ट्र में राम पधारे।।
**
सुख हो, दुख हो, या दुविधा हो, ज्यों मर्यादा में राम रहे।
त्यों मर्यादित जीवन  जीना, जन जन वाणी आज कहे।।
पराधीन थे पुरखे जब तक, नित सदियों चाहे कष्ट सहे।
रामराज्य सी  चहुँदिश  अब तो, हर  मर्यादित हवा बहे।।
***
महज नहीं अब मूर्ति रूप में, आत्मरूप हर धाम पधारे।
सदियों का वनवास अंत कर, सकल राष्ट्र में राम पधारे।।
***
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

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नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर गीत, हार्दिक बधाई l सादर

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