For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समीक्षा : 'न बहुरे लोक के दिन' (नवगीत संग्रह)

‘न बहुरे लोक के दिन’

रचनाकार – अनामिका सिंह

प्रकाशक – बोधि प्रकाशन, जयपुर (राज.)

ISBN : 978-93-5536-091-5

मूल्य -  रूपये 250/-

 

            वर्ष २०२२ का प्रथम मास और चर्चित नवगीतकार अनामिका सिंह की प्रथम पुस्तक ‘न बहुरे लोक के दिन’ का प्राप्त होना एक सुखद अनभूति कराता है. आदरणीया का छंद रचते-रचते कब गीतों की ओर झुकाव हुआ पता ही नहीं चला और आज उनका यह प्रथम नवगीत ग्रन्थ हाथ में है.

 

            पुस्तक की भूमिका लिखते हुए श्री वीरेंद्र आस्तिक लिखते हैं ‘संग्रह के नवगीत एक नए प्रकार के भाषा मुहावरे में गढ़े हुए हैं’ और  श्री मंज़र-उल वासै कहते हैं ‘ उन्होंने गीतों को पसीने से सींचा है, ममत्व का दुग्ध पिलाया है, लोकहित की भावना की खाद दी है’ वहीँ श्री भगवान् प्रसाद सिन्हा संग्रह में आये गीतों को लोकतंत्र पर आये संकट के सचेतक मानते हैं. तीनों वरिष्ठ और श्रेष्ठ नवगीतकारों को पढ़ने के पश्चात ग्रन्थ के गीतों को पढ़ने के लिए मन लालायित हो उठा.

 

            ग्रन्थ का प्रथम गीत ‘अम्मा की सुध आई’ यह प्रतीति कराने के लिए पर्याप्त है कि बेटियाँ विवाहोपरांत भी माँ और उसके कष्टों को कभी भूल नहीं पातीं ‘अपढ़ बाँचती मौन पढ़ी थी, जाने कौन पढ़ाई’...यह दो पंक्तियाँ किसी भी पाठक को साक्षात माँ के दर्शन करा देती हैं.

 

            गीत जब छंदबद्ध हों उनका प्रवाह निर्बाध हो और प्रयुक्त प्रतीक और बिम्ब पाठक के हृदय को स्पर्श करने वाले हों तो वह सहज ही पाठक के मन में अपनी जगह बना लेते हैं –

राजकोष तो भरा मगर,क्यों

रीता है कश्कोल ?

यहाँ कश्कोल क्या है ? वही हर नागरिक की आस का पात्र, जो उसकी शासक से अपेक्षा है.

 

साठ के दशक से आरम्भ नवगीतों को सुघढ़ भाषा, शिल्प और कथ्य के साथ विस्तार देता यह ग्रन्थ कुछ और अप्रयुक्त शब्दों के साथ नये प्रतिमान गढ़ रहा है.  

 अनाचार

की जड़ काटेंगी

उत्तरदायी थी संज्ञाएँ

मचवे पकड़े सिंहासन के

वे यश की

कह रहीं कथाएँ.

 या

मरघट सम

मातम जन-गण-मन

राजा बाँधे शगुन कलीरे.

 

            नवगीत सृजन एक संवेदनशील मन की तपस्या का परिणाम होता है. जिसे परम्परा और आधुनिक काल का पूर्ण बोध हो. सामयिक विसंगतियों पर क़लम चलाना आसान नहीं है. किन्तु कवयित्री की क़लम बहुत आशान्वित कर रही है.

 

ठकुरसुहाती करें चौधरी

दाल बुद्धि पर ताला.

लगा विवेकी चिन्तन में है

जातिवाद का जाला.

 

घायल बचपन हुआ, बिलोते

कट्टर धर्म मथानी में.

 

            अपने नवगीतों में कवयित्री ने जहाँ समाज के पिछड़े और शोषित वर्ग की पीड़ा को मुखर किया है वहीँ समाज की अंदरूनी विसंगतियों और रूढ़ियों पर भी जाग्रति लाने का प्रयास किया है.सत्ता या समाज दोनों के विरोध में यह क़लम ग्रन्थ की प्रत्येक रचना में बिना किसी समझौते के चली है, चाहे इनका गीत ‘छोडो जी सरकार’, आग लगा दी पानी में या ‘यह न होगा’ हो-

ओढ़कर  बैठे रहेंगे मौन,

यह न होगा.

हम करेंगे

जुल्म का प्रतिरोध.

            इस ग्रन्थ के सत्तर गीतों में किस-किस गीत पर रचनाकार को बधाई दूँ, प्रत्येक गीत का अपना तेवर है और सभी गीत श्रेष्ठ हैं.यह  160 पृष्ठों का ग्रन्थ ‘न बहुरे लोक के दिन’ साहित्य जगत में अपना विशेष मुक़ाम बनाएगा, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ मैं कवयित्री को इसके प्रकाशित होने पर बहुत-बहुत बधाई देता हूँ.

 

~ अशोक कुमार रक्ताले

40/54, राजस्व कॉलोनी,

उज्जैन -456010

चलभाष – 9827256343  

Views: 431

Replies to This Discussion

//नवगीत सृजन एक संवेदनशील मन की तपस्या का परिणाम होता है. जिसे परम्परा और आधुनिक काल का पूर्ण बोध हो. //

उपर्युक्त पंक्ति की पारिभाषिक क्षमता नवगीत के विधान को पूर्णरूप से सार्थक साबित करती है. 

आदरणीय अशोकजी, मुझे इस पाठकीय समीक्षा से नवगीत-संग्रह के स्तर का भान तो हो ही रहा है, आपकी सजग दृष्टि तथा आपका मनस आपके अवगाहन क्षमता को भी रेखांकित कर रहे हैं. अनामिका जी की काव्य प्रतिभा का संज्ञान है. उनकी इस कृति का सर्वथा स्वागत है.  

इस समीक्षा के लिए हार्दिक धन्यवाद तथा अशेष शुभकामनाएँ 

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुत समीक्षा पर आपका आशीर्वाद से मेरे कार्य का मूल्यांकन हुआ. यह उत्तम और पठनीय नवीत संग्रह है. आपका हृदय से आभार. सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
21 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
22 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
yesterday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
yesterday
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। अलग ही रदीफ़ पर शानदार मतले के साथ बेहतरीन गजल हुई है।  बधाई…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान देने तथा अपने अमूल्य सुझाव से मार्गदर्शन के लिए हार्दिक…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"गंगा-स्नान की मूल अवधारणा को सस्वर करती कुण्डलिया छंद में निबद्ध रचना के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service