For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आत्मीय स्वजन,
पिछले दिनों OBO लाइव महाइवेंट ने एक नया इतिहास रचा है और कई नए फनकारों को भी इस परिवार से जोड़ा है| यूँ तो पहले से नियत तिथियों के अनुसार तरही मुशायरे की घोषणा ११ तारीख को ही करनी थी परन्तु महा इवेंट की खुमारी ने जागने का मौका ही नहीं दिया और आज दबे पांव १५ तारीख आ गई| तो चलिए विलम्ब से ही सही १ बार फिर से महफ़िल जमाते है और तरही मुशायरा ५ के लिए मिसरे की घोषणा करते हैं|

"हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है"
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन
रद्दीफ़: "है"
बहर: बहरे हज़ज़ मुसमन सालिम

इस बहर को कौन नहीं जानता या ये कहूँ किसने "कोई दीवाना कहता है " नहीं सुना है| सबके दिलों में जगह बना चुके डा० कुमार विश्वास के कई मुक्तक इसी बहर पर हैं|


इतना अवश्य ध्यान रखें कि यह मिसरा पूरी ग़ज़ल में कहीं न कही ( मिसरा ए सानी या मिसरा ए ऊला में) ज़रूर आये|
मुशायरे की शुरुवात २०/११/१० से की जाएगी| एडमिन टीम से निवेदन है कि रोचकता को बनाये रखने के लिए फ़िलहाल कमेन्ट बॉक्स बंद कर दे जिसे २०/११/१० लगते ही खोला जाय| मुशायरे का समापन २३/११/१० को किया जायेगा| पिछले कई मुशायरों में लोगो को यह दिक्कत हो रही थी कि अपनी गज़लें कहा पर पोस्ट करे तो एक बार फिर से बता देता हूँ की Reply बॉक्स के खुलते ही आप अपनी ग़ज़लें मुख्य पोस्ट की Reply में पोस्ट करें|

Views: 9417

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

मोहतरमा मुमताज़ साहिबा,
सिवाए वाह वाह करने के मेरे पास और कोई अलफ़ाज़ नहीं है ! एक एक शेअर ऐसा जैसे कि लाल-ओ-गौहर-ओ-ज़मुर्रद ! मैं दिल की गहराईयों से आपको दाद पेश करता हूँ ! ओबीओ में आपकी आमद बतौर चीफ एडिटर हमेशा काबिल-ए-फखर होती है, बराए करम स्नेह बनाये रखें !
बर्फ की चादर बिछी है फैली हुई राहों में
हवा करती है सरगोशी बदन ये कांप जाता है!

मौसम का बदलना तय था तय थे ये मंजर
आने वाली हरियाली को ये मन भांप जाता है!

सूरज फिर से चमकेगा फिर से धूप खिलेगी
इन विम्बों का जीवन से बड़ा गहरा नाता है!

विश्वास के सहारे काट ली जाती है दुर्गम राहें
आस का खग अँधेरी बेला में भी गाता है!

चलते चलते ही तो सीखेंगे सलीका चलने का
राहों में गिरना और संभलना हमें खूब भाता है!

कितने ही भेद छुपे हैं मानव मन के भीतर
हृदय की गहराई कहाँ कभी कोई नाप पाता है!

अहर्निश चलते ही रहें यायावरी ही है जीवन
कैसी चिंता जब हमें राम नाम का जाप आता है!
अनुपमा जी रचना तो बहुत अच्छी है। भाव, बिंब सब बढ़िया है। थोड़ी सी कोशिश और कीजिए तो ये एक सुंदर ग़ज़ल में बदल सकती है। बधाई
बहूत बेहतरीन ग़ज़ल ...
उम्दा ग़ज़ल ......
bahut khoob anupama jee...

सूरज फिर से चमकेगा फिर से धूप खिलेगी
इन विम्बों का जीवन से बड़ा गहरा नाता है!

bahut badhiya likha hai aapne...aage bhi intezaar hai
aap sabhi ka dhanyavad!
hame gazal ka gyaan nahi hai, instructions ke aadhar par maatra koshish ki thi!!!
BAHUT ACHCHI KOSHISH KI HAI. MAN KE BHAAVON KA SAJEEV VARNAN KIA HAI AAPNE. GUZARISH HAI KI YUHI LIKHTI RAHEN. "ALLAAH KAREY ZOR-E-QALAM AUR ZYAADA !"
बहुत सुन्दर रचना|
आरम्भिका के दोनों पदों में समतुकांतता का प्रयास कर सकें तो रचना अधिक सराही जाएगी.
भाव अच्छे है, मतला न होने से काफिया का पता नहीं चल रहा, थोडा नजरेसानी की जरूरत है | मुशायरे मे पढ़ने हेतु बधाई |
अनुपमा जी,
यूँ तो आपका हर ख्याल ही अनुपम है, मगर इस शेअर की सादगी ने दिल जीत लिया !

//सूरज फिर से चमकेगा फिर से धूप खिलेगी
इन विम्बों का जीवन से बड़ा गहरा नाता है!//
bahut khoob. magar mafi chahunga tiwari ji, agar bura na maane to "KHUDA BHI HAI BADA FAANI" ko badal den.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
15 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service