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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 29 (Now closed with 846 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर वन्दे.

 

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 29 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले 28 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 28 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है.

फागुन का महीना बसंत ऋतु के रंग-वैविध्य से अनुप्राणित हुआ नयनाभिराम रंगीनियों से संतृप्त होता है. तभी तो चित्त की उन्मुक्तता से भावोन्माद की पिनक-आवृति खेलने क्या लगती है, सारा वातावरण ही मानों मताया हुआ प्रक्रुति के विविध रंगों में नहा उठता है ! लोहित टेसू के वाचाल रंगों, पीत सरसों के मुखर रंगों, निरभ्र नील गगन के उद्दात रंगों से प्रमुग्ध धरा नव कोंपलों की अनिर्वचनीय हरीतिमा से स्वयं को सजाती-सँवारती हुई ऊषा की केसरिया संभावना तथा निशा की चटख उत्फुल्लता से आकंठ भरी सहसा सरस हो उठती है. 

इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होती है. ऐसे अद्भुत रंगीन समय में आयोजित हो रहे काव्य-महोत्सव का शीर्षक और क्या हो सकता है.. सिवा रंग होने के !!

इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक - 29

विषय - "रंग"

आयोजन की अवधि-  शुक्रवार 08 मार्च 2013  से रविवार 10 मार्च 2013 तक

ऋतुराज की यह रंगों पगी उद्विग्नता है कि यौवन की अपरिमित चंचलता मन्मथ की अनवरत थपकियों से उपजी जामुनी जलन को झेले नहीं झेल पाती.. अह्हाह ! बार-बार झंकृत होती रहती है !... .  तभी तो वसुधा के अंगों से धानी चुनर बार-बार ढलकती दिखती है... . तभी तो अरुणाभ अंचल में हरी-हरी पलकें खोल रही वसुधा की कमनीयता अगड़ाइयों पर अँगड़ाइयाँ लेती दुहरी हुई जाती है.. . तभी तो यौवना देह की रक्तिम गदराहट और-और गहराती हुई कमसिन दुधिया-दुधिया महुआ के फूट रहे अंगों की फेनिल सुगंध से आप्लावित हो उठती है... . तभी तो मत्त हुए कृष्ण भ्रमरों को आम्र-मंजरों के रस की ऐसी लत लगी होती है कि वे बौराये-बौराये डोलते फिरते हैं... तभी तो.. तभी तो.. चन्दन-चन्दन अनंग के पनियाये तीक्ष्ण अस्त्र-शस्त्र और-और मारक हुए मुग्धा को विवस्त्र किये जाते हैं !... .

तो आइए मित्रो,  उठायें हम अपनी-अपनी कलम और दिये गये विषय को केन्द्रित कर दे डालें अपने भावों को एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति !  बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है. साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना : OBO लाइव महा उत्सव अंक- 29 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 मार्च -13 दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय (Saurabh Pandey)
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

Views: 14477

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आदरणीय शरद जी इस मंच पर आपकी रचनाएँ प्रथम ही पढ़ रहा हूँ इस त्रिदिवसीय महोत्सव में अधिकतम तीन ही रचनाएं लिखी जा सकती हैं अवश्य ही ब्लॉग पर आपकी अधिक रचनाएं पढने का अवसर मिलेगा, छवि को यदि छंदों में उकेरें तो आगे यह अवसर भी मंच पर मौजूद है. सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकारें.

 

uttm vicharon se yukt prernadaayi rachna

आदरणीय शरदिन्दुजी, रंगों के नयनाभिराम विस्तार में भावनाएँ संसार पाती हैं. इसी संसार का मनोहारी शब्द-चित्र खींचा है आपने.

कितने ही रंग, कितनी बातें

उजले दिन, कजरारी रातें,

कितने सपने, कितने तारे

कुछ उज्ज्वल कुछ टूटे हारे,

महाशून्य की आपाधापी –

जीवन के सूक्ष्म तरंग हैं,

वाह वाह !  आपने अपनी दृश्यपरक अनुभूतियों को हम सभी से बखूबी साझा किया है.

बहुत-बहुत बधाइयाँ.. . और सादर शुभकामनाएँ

आदरणीय शरद जी सादर

बहुत ही सुंदर भावों को पिरोया है आपने इस रचना मे 

मुग्ध हूँ इस दृश्य से
बधाई आपको इस सुंदर रचना हेतु

कितने ही रंग, कितनी बातें

उजले दिन, कजरारी रातें,

कितने सपने, कितने तारे

कुछ उज्ज्वल कुछ टूटे हारे,..........बहुत सुन्दर शब्द 

रंग बिरंगी दुनिया को सुंदरता से अभिव्यक्त किया है आ. शरदिन्दु जी.

हार्दिक बधाई 

विचारों का प्रवाह प्रवाहित होता जा रहा है..वाह...

//कुछ लम्बे, कुछ ढीले वस्त्र,

कुछ मझले मचलते वस्त्र,

कुछ छोटे शरमाते वस्त्र –

चिपक तन से वे चिल्लाते

‘हम कितने नि:संग हैं’

यहाँ बहुतेरे रंग हैं.//

क्या कुछ नहीं समेटा है आदरणीय ,जीवन के कई सारे रंगों को एक साथ चित्रित की गई है, इस खुबसूरत रचना को चाहे जब जब पढों , हर बार आनंदविभोर करती है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय ।

सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई 

सादर 

फैली-फैली विस्तारित आंखें

ठण्डी नीली क्रूर आंखें,

भूरी, चंचल, कोमल आंखें

भीतर से कितनी बे-रंग हैं,

यहाँ बहुतेरे रंग हैं.

बहुत ही सुन्दर वर्णन है!

 

बधाई,

विजय निकोर

रंग कहाँ नही है बस देखने वाली आँखें होनी चाहिए बहुत अच्छी प्रस्तुति बधाई आपको |

जीवन के कई रंगों  की तरंग अभिभूत कर  गई ....सुदर रचना के लिए बधाई

सौरभ जी एवं गणेश, इस रंगोत्सव की सूचना के लिये बहुत धन्यबाद. ये वीकेंड इतना व्यस्त होने जा रहा है कि मन सोच कर कुंठित है. लेकिन इसमें भाग लेने का मन इतना है कि समय का दबाब होते हुये भी किसी तरह कुछ पंक्तियाँ प्रेषित जरूर करूँगी :) 

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