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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-93

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 93 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह जनाब जोश मलीहाबादी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

"दुनिया ये बदलने वाली है, किस चीज़ पे तू इतराता है "

221    1222    22   221   1222    22

मफ़ऊलु मफ़ाईलुन फेलुन मफ़ऊलु मफ़ाईलुन फेलुन 

(बह्र: हज़ज़ मुसद्दस अखरब महजूफ असलम मुदाएफ़ )

रदीफ़ :- है  
काफिया :- आता (इतराता, आता, जाता, घबराता, लहराता, शर्माता आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 23 मार्च दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 24 मार्च दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

 

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 23 मार्च दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

वाह बहुत ही खूब । ये वक़्त सगा किसका होता.... छू गया आदरणीय राजेश कुमारी जी । दाद ।

आपको ग़ज़ल पसंद आई आदरणीय हर्ष महजन जी  बहुत बहुत शुक्रिया .

आ. राजेश दी सादर अभिवादन । सुंदर गजल हुई है हार्दिक बधाई ।

आपको ग़ज़ल पसंद आई आदरणीय लक्ष्मण भैया  जी  बहुत बहुत शुक्रिया .

मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा ,अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें ।

आपको ग़ज़ल पसंद आई मोहतरम तस्दीक  जी  बहुत बहुत शुक्रिया .

आदरणीया राजेश कुमारी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है बधाई क़ुबूल करें 

आपको ग़ज़ल पसंद आई आदरणीय मुनीश तन्हा  जी  बहुत बहुत शुक्रिया .

गज़ल के सार्थक प्रयास हेतु बधाई आदरणीया  राजेश कुमारी जी 

यूँ सोच समझ का परवाना समझाने को ढब समझाता है

यादों का झरोखा खुलते ही क्यों रोज हिया भर आता है।१।


सूरज से सितारों  से यारो कब  प्यार हुआ है धरती को
बस देख के चंदा को दिल में सागर सा कहीं लहराता है।२।


वो दौर था कोई जब तन्हा कहने से भी मन शर्माता था
इजहारे मुहब्बत महफिल में अब कौन भला शर्माता है।३।


ये रूप की दौलत  झूठी  है  बस नूर खुदा का सच्चाई
"दुनिया ये बदलने वाली है किस चीज़ पे तू इतराता है "।४।


फिर लोग भला क्यों लड़ते हैं यूँ रब को ही लेके आपस में
हर धर्म कहा जब  करता  हैं रब  से  ही  सभी का नाता है।५।


सबके ही लगा दुख साथ यहाँ है कौन सुखी ढब दुनिया में
फिर बोल "मुसाफिर" क्यों इतना तू चोट लगे चिल्लाता है।६।

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

मौलिक अप्रकाशित

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                              ग़ज़ल का प्रयास बहुत ही अच्छा । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

आ. भाई आरिफ जी, स्नेह के लिए आभार ।

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आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

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