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//तकनीक नई हो गयी पर ख़याल वे हीं पुराने//
बहुत खूब भाई सतविन्द्र राणा जीl प्रदत्त विषय पर बेहद प्रभावशाली लघुकथा कही है, हार्दिक बधाईl
आदरणीय योगराज प्रभाकर सर, सादर नमन। अनुमोदन एवं उत्साहवर्धन के लिए सादर हार्दिक आभार।
आदरणीय सतविन्द्र कुमार राणा जी, आपकी लघुकथा सोचने पर मजबूर कर रही है, क्या हम वाक़ई तरक़्क़ी कर रहे हैं? आपको इस मा'नीख़ेज़ अफ़साने के लिए दिली मुबारक़बाद!
सादर नमस्कार। समय गतिमान है ...तकनीकी विकास भी.. लेकिन यदि मति का ठहराव है... विवेक का ठहराव है... तो सुख शांति का समय.बाधित है। प्रवाहमय संवादात्मक रचना अंत में जाकर आज के सत्य का राज़ खोलती और शीर्षक को सार्थक कर पाठक को झकझोर कर सोचने को, आत्ममूल्यांकन करने को प्रेरित करती है। हार्दिक बधाई इस बेहतरीन सृजन के लिए जनाब सतविंद्र कुमार राणा साहिब।
इस आयोजन को सफल बनाने के लिए सभी प्रतिभागियों का ह्रदयतल से धन्यवादl
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