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आदरणीय मदनलाल श्रीमाली जी, आपकी इस लघु - कथा पर हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीय मदनलाल श्रीमाली जी, इस शानदार लघुकथा की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. //परिवार की बुनियाद हिल चुकी थी।// पंचलाइन में छूटा हुआ अनकहा गहरे तक प्रभावित कर रहा है. इस के बाद परिवार की सामाजिक परिस्थितियों की जो दिशा बदलती है जो उथल पुथल मचती है, जो भय आकर सामने खड़े होने लगते है. उसे पंचलाइन पूरी शिद्दत से अभिव्यक्त करती है. सादर
आदरणीय मदन लाल श्रीमाली जी, स्वागत है आपका ओबीओ पर । सार्थक प्रयास हेतु आपको बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय श्रीमाली जी और ओबीओ पर पहली लघुकथा के हिसाब से तो बारंबार दाद के काबिल है। दाद कुबूल कीजिए।
एक परिवार की बुनियाद भले ही हिल गयी हो लेकिन उसने अपने परिवार की बुनियाद मज़बूत कर ली | आपने एक पहलू दर्शाया विषय का , प्रदत्त विषय पर बढ़िया लघुकथा | बधाई आदरणीय मदनलाल श्रीमाली जी.
माता पिता और बच्चों के बीच जब सहज संवाद की स्थिति नहीं बन पाती तभी ऐसी परिस्थितियां उभरती हैं I, इस मंच पर अपनी प्रथम प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई आ० मदनलाल श्रीमाली जी
वाकई परिवार की बुनियाद कमजोर थी . अविश्वास की बुनियाद पर खड़े इस परिवार की चूलें तो हिलनी ही थीं .मालूम होता है बेटी -माँ-बाप सभी एक दुसरे पर अविश्वास रहते थे .बढ़िया प्रस्तुति हुई आदरणीय मदनलाल जी . पिताजी का नाम बता कर भी भी आपने बहुत कुछ अनकहे की गुंजाइश रख छोड़ी है .
सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए अभार रीता गुप्ता जी.
आदरणीय मदनलाल भाई
ऐसी लड़कियाँ दोनों पक्ष को नाराज कर देती हैं। माँ बाप भी दरवाजा बंद कर देते हैं सदा के लिए।
1.. ऐसी शादी में छोटी छोटी बातों पर तलाक की नौबत आ जाती है। 2.. लड़के प्रायः धोखा देते हैं . या पहले से शादी शुदा होते हैं या बाद में एक और शादी कर लेते हैं [ धर्म भी मान्यता देता है] । 3.. धर्म परिवर्तन के लिए दबाव बनाते हैं । 4.. जी भर जाने पर मारते पीटते हैं और नौकरानी बना कर रखते हैं । 4.. भगवान न करे कम उम्र कहीं विधवा हो गई तो बाकी का जीवन एकाकीपन में कटता है । माँ बाप से बगावत कर शादी करने के कारण उपरोक्त परिस्थितियों में लौटने की हिम्मत नहीं होती......... अन्य भाई बहन की शादी में भी अड़चन ।
यह तो कथा है लेकिन वास्तविक जीवन में सहज आकर्षण के चक्कर में अपनी ही बेवकूफी का शिकार लाखों शिक्षित हिंदू लड़कियाँ घुट रही हैं , गरीब भी और धनी भी । समाज भी क्या करे।
विषय को सार्थक करती इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई।
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