आदरणीय साथिओ,
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मेरा देश - लघुकथा –
स्वर्ग के विशिष्ट कक्ष में बापू बेचैनी से चहल कदमी कर रहे थे। नेहरू और पटेल दौड़ते हुए पहुँचे।
"क्या हुआ बापू, आपका स्वास्थ्य तो ठीक है"?
"मुझे कुछ नहीं हुआ, मुझे मेरे प्यारे देश भारत की चिंता है? अभी कुछ लोग भारत से आये थे, उन्होंने मुझे वहाँ की दुर्दशा के बारे में बताया था”।
"बापू, क्या होगया है आपको? यहाँ स्वर्ग में भी । अब तो भूल जाओ, उस अतीत को। शाँति से जिओ और जीने दो"।
"तुम्हारी इसी सोच की वज़ह से आज भारत की यह दुर्दशा हो रही है"?
"बापू, कृपया करके अपनी नीतियों की असफ़लता का जिम्मेदार हमें मत बनाइये"?
"तुम दोनों के जिद्दीपन के कारण देश का विभाजन हुआ। ज़िन्ना को पी० एम० बन जाने देते, तो ना देश का विभाजन होता और ना आज ये समस्यायें होतीं"?
"बापू, जो होगया उसे भूल जाओ। अब कुछ नहीं हो सकता है? बापू जिस देश का जन्म ही विभाजन और झगड़ों से हुआ हो वहाँ शाँति और खुशहाली कैसे आयेगी"।
"मेरे हृदय में अब भी एक आशा की किरण प्रज्वलित हो रही है"?
"तो फिर कह दीजिये। विचार करते हैं"।
"मेरी रॉय है कि हम तीनों को पुनः भारत चलना चाहिये। और लोगों को नये सिरे से जागरूक और संगठित करना चाहिये"।
"बापू, आप किस मुगालते में जी रहे हो।अब जो मौज़ूदा भारत है, वह आपके सपनों वाला भारत नहीं है”|
“लेकिन एक प्रयास करने में तो कोई बुराई नहीं है”|
"यह विचार अविलंब मस्तिष्क से निकाल दीजिये| यह एक आत्मघाती कदम होगा। आवाम के मन में ज़हर भरा जा चुका है हमारे खिलाफ़"।
"मुझे पता था, तुम लोगों से नहीं होगा"? बापू अपनी लाठी उठाकर भारत की ओर चल पड़े।
मौलिक एवम अप्रकाशित
आ. तेजवीर जी,
कथानक और सन्देश जो हो लेकिन तथ्य ठीक नहीं हैं...
विभाजन का कारण सिर्फ जिन्ना को PM का पद से नकार देना नहीं था .... विभाजन के बीज 1937 में हिन्दू महासभा के अधिवेश ने किसी #वीर ने बोए थे .. और विभाजन  दो मुख्य कारण थे ..
१) जिन्ना द्वारा हिन्दू पुलिस/ मुस्लिम पुलिस व् सेना  इसी आधार पर वर्गीकरण किये जाने की  ज़िद थी और 
२) जिन्ना चाहते थे कि हिन्दू सिर्फ हिन्दुओं  प्रतिनिधि बनें और मुसलमान सिर्फ मुसलामानों  के .. यानी मुस्लिम बहुल क्षेत्रों से मुस्लिम और हिन्दू क्षेत्र से   सिर्फ हिन्दू संसद में जाएँ ..
DU के प्रोफेसर अपूर्वानंद  जी के कई व्याख्यान यू ट्यूब पर हैं..जिन से तथ्यों की पड़ताल की जा सकती है ..
ये दोनों बातें धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ थीं जिसके चलते विहाजं हुआ...
बापू अगर लौटे तो उनकी राह  पर चलता हुआ मुझे  पाएंगे... और मेरा विश्वास है कि जवाहर और सरदार भी बिना बापू के वहां नहीं  रुकेंगे ...
लघुकथा की समझ मुझ में नहीं है,, अत: कथा पर टिप्पणी नहीं कर पा रहा हूँ..उम्मीद है ..क्षमा करेंगे 
सादर  
हार्दिक आभार आदरणीय नीलेश जी।लघुकथा को समय देने हेतु। आपने खुद यह बात लिखी है कि देश के विभाजन के लिये जिन्ना को पी० एम० पद से नकार देना ही सिर्फ़ कारण नहीं था।यानी कि आप भी मानते हैं कि एक कारण यह भी था।अन्य जो बातें आपने कही हैं, हो सकता है वे सच हों, मगर मेरा उन पर कोई विवाद ही नहीं है।आपने जो जानकारी दी, उसके लिये आभारी हूँ।सादर।
यह आपने बिल्कुल सही कहा। लेखक महोदय ने एक बिंदु (कारण) लेते हुए बहुत ही समसामयिक उम्दा अपेक्षा शाब्दिक करते हुए अंतिम दोनों पंक्तियों में विचारोत्तेजक बात कही है। सादर हार्दिक बधाई आदरणीय तेज वीर सिंह साहिब।
हार्दिक आभार आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।
आदाब। तत्कालीन परिस्थितियों, फैसलों और ज़िद से सबक़ सीखने की कोशिश करें, न कि इस सदी में बदले की कार्रवाई। कुछ फैसले यदि ग़लत हो गये, तो इस सदी के लोगों को परेशान या हरेशमेंट नहीं किया जाना चाहिए न। पुस्तकों और इंटरनेट पर सब कुछ सही नहीं लिखा है/लिखवाया गया है! सादर!
आ० तेजवीर सिंह जी, प्रदत्त विषय को लेकर बिला-शुबा आपने एक सशक्त लघुकथा रची है. आपकी उत्कृष्ट कल्पनाशक्ति हेतु आपको हार्दिक बधाई देता हूँ. लेकिन जैसा कि मैं पहले कई बार अर्ज़ कर चुका हूँ कि जब तक 'कथ्य' को 'तथ्य' का कुशन नही मिलता, बात नहीं बनती. अत: मैं भाई निलेश नूर जी की बातों से पूरी तरह सहमत हूँ.
हार्दिक आभार आदरणीय योगराज प्रभाकर भाई जी।आपके मार्ग दर्शन का सदैव ही शुक्रगुजार रहता हूँ। उसके बिना तो एक कदम भी चलना दुश्वार है।मेरी लघुकथा पर आपकी उपस्थिति मेरे लिये प्रोत्साहन का संदेश लाती है।आदरणीय नीलेश जी की सलाह को मैंने दिल से स्वीकार किया है।सादर।
'चल पड़े दो पग मग में
चल पड़े कोटि पग उस ओर।'
बढ़िया अवधारणा !बधाई आपको।
हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार जी।
आ.जनाब तेजवीर साहिब ,प्रदत्त विषय पर सच्चाई बयान करती ज़बरदस्त लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
हार्दिक आभार आदरणीय तस्दीक अहमद खान साहब जी।
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