For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय सुधीजनो,


15 नवम्बर 2013 को सम्पन्न हुए ओबीओ लाइव महा-उत्सव के अंक-37 की समस्त स्वीकृत रचनाएँ संकलित कर ली गयी हैं. सद्यः समाप्त हुए इस आयोजन हेतु आमंत्रित रचनाओं के लिए शीर्षक “हम आजाद हैं !!” था.

यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस पूर्णतः सफल आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश यदि किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव

 

चेहरे  बदले, रंग  बदला, पर वही  हालात हैं !

देश प्रेमी कैसे कह दे, आज हम आज़ाद हैं ??

सिर से पावों तक गुलामी, हर कहीं आती नज़र।

आत्मा गिरवी रखी है, फिर भी हम आज़ाद हैं !!!

 

घूसखोरी और सिफारिश, तब कहीं मिले नौकरी।

लाखों युवा  भटके  हुये हैं, ज़िन्दगी  बर्बाद है॥                               

 

हिंदी बोलो तो  सज़ा है, ऐसे  विद्यालय  खुले।  

मूक  दर्शक हम  बने हैं,  अपनी ये औकात है॥

 

शिक्षित भी हैं, विद्वान हैं, कुछ ऊँची पदवी वाले हैं।

पर है गुलामों जैसी आदत, नकल में उस्ताद हैं !!!

 

इस देश में अंग्रेजियत है, हर कहीं, देखो जहाँ !

मतिमंद हैं, नादान हैं, जो कहते हैं, आज़ाद हैं !!

 

भूख से, कभी  ठंड से, मर  जाते हैं  लाखों यहाँ !

जो भी हुआ तन से ज़ुदा, वह जीव ही आज़ाद है !!

लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला 

(१)

छोड़ गए जब अंग्रेज देश

हो गए हम आजाद

हम में से सरकार बने

माने हम सब है -अब आजाद |

मी-लार्ड अब भी कहे

सहते रहे

मानसिक 

गुलामी के ये अंश,

कैसे हम आजाद ?

वंश वाद आबाद रहे

कई दशक के बाद

झेलते आ रहे

जातिवाद का दंश,

कैसे फिर सब लोग कहे –

हम है आजाद ?

षड्यंत्रों के अश्व पर,

बाजीगर बढ़कर करे-

लोक तंत्र का खेल,

धन बल इनका ही बढ़ा

बढती जैसे बेल,

भरे लालसा- 

सत्ता सुख की 

मुट्ठीभर ये लोग ही-

फैलाते उन्माद ,

निरपराध फिर कैसे कहे

हम है अब आजाद ?

साधू वेश में लूट रहे

कलियुग के भगवान्,

स्वच्छन्द घूमते दुष्कर्मी

फैलाते उन्माद,

नारी अबला कैसे कहे

हम है अब आजाद ?

(२)"दोहे" 

 

काट भुजा इस देश की, किया हमें आजाद,

चुभते अंतस शूल से, कहे न मन आजाद | 

गांधी के इस देश में, हिंसा है आबाद,

निरपराध है जेल में, अपराधी आजाद |

 

भ्रष्टाचारी कर रहे, भारत को बर्बाद,

देश भक्त कैसे कहे,हम अब है आजाद  |

 

संत वेष में घूमते, दुष्कर्मी आजाद,

नारी पीड़ा सह रही, लिए हुए अवसाद |

 

फैलाते है गंदगी, करते खूब विवाद,

नेताओं की मसखरी, जन जन का अवसाद |

 

राजनीति के मंच पर, अपराधी है आम,

संसद है उनके लिए, जन्नत जैसा धाम |

 

न्याय-पालिका से करे, जनता ये फ़रियाद,

बची जहां कुछ शेष है, आजादी की खाद |

 

जनता के ही वोट से, लोकतंत्र आबाद,

भारत माँ को रख सके, जनता ही आजाद |

गिरिराज भंडारी

सच , जो ख़्वाब हुये ( एक गीत )

(संशोधित)

सच , जो ख़्वाब हुये

आज़ाद हुये आज़ाद हुये

अब हम अन्दर तक शाद हुये 

 

अब अपनी सरकार बनेगी

सबका पैरोकार बनेगी      

सरल करेगी सबका जीवन

दुश्मन को दुश्वार बनेगी

 

अब खुशियाँ, खुश हो पायेंगी

अब दुख सारे नाशाद हुये

अब हम अन्दर तक शाद हुये 

 

अब झोपड़ियाँ नही रहेंगी

सब के सर पर छतें तनेंगी

अजनासों से सभी बोरियाँ

सबके घर मे भरी रहेंगी

 

आज ख़्वाब मे जाने कितने

सुन्दर सपने आबाद हुये

अब हम अन्दर तक शाद हुये   

 

जो चाहे अखबार लिखेगा

तुम भ्री मुँह अब खोल सकोगे

अब सरकार बनाओंगे तुम

हाँ, ख़िलाफ भी बोल सकोगे

 

आज विचारों में मन ही मन

कितने दुश्मन बरबाद हुये 

अब हम अन्दर तक शाद हुये

 

पर आशा सब बनी निराशा

सब के अन्दर एक हताशा

ज़हर भरी इस राजनीति से

अमृत की अब किसको आशा

भूख, गरीबी, मज़बूरी  से

सब के घर अब बरबाद हुये

 

हम किस कारण आज़ाद हुये ?

क्या सच मे हम आज़ाद हुये ?

सिज्जू शकूर 

क्या हम आज़ाद, ये देश आज़ाद है? (कविता)

 

अनाज भले सड़ते रहें

लोग भूखे मरते रहें,

और हम ये सहते रहें

क्या सचमुच, लोकतंत्र जिंदाबाद है!

क्या हम आज़ाद, ये देश आज़ाद है?

 

न कानून का ही डर है,

अर्थव्यवस्था भी लचर है,

और जनता बेखबर है!

चहुँ ओर बस, सत्ता का उन्माद है,

क्या हम आज़ाद, ये देश आज़ाद है?

 

क्या हो रहा है ये आज,

विदेशी वस्तु करे राज,

सोये लोग, सोया समाज!

हावी हो रहा, विदेशी उत्पाद है

क्या हम आज़ाद, ये देश आज़ाद है?

राजेश कुमारी 

(अतुकांत )

तन से आजाद हो

क्या मन से भी ?

 तुम्हारी दशा उस

तोते जैसी  नहीं है?

जिसका पिंजरा खोल दिया

गया हो किन्तु वो बाहर नहीं

निकलता  क्योंकि 

वो मन से परतंत्र हो चुका

अपनी उड़ान का

भरोसा खो चुका

 अन्तःकैद मे

अभी तक  बंद है

तुम्हारा तुम तो

लोभ मोह स्वार्थ

ईर्ष्या,भ्रष्टाचार जैसी

ध्वंशात्मक प्रवृत्ति की

जंजीरों से जकडा है  

फिर कहाँ आजाद हो?

पहले मन को

इस वशीकरण से मुक्त करो

फिर पिंजरे से बाहर आकर कहो

हम आजाद हैं!!!  

सत्यनारायण सिंह 

( कविता )

कैसे कहें आज

हम आजाद है

दासता के रूप हैं

बदले हुए

चुप बोझ जीवन ढो रहे

सहमे हुए

सामंतियों के रूप भी विद्रूप हैं

कैसे कहें आज

हम आजाद है

कुल गोत्र में है आज हम

उलझे हुए

खाप के फतवे भी अब 

जारी हुए  

प्रेम भी अब हो गया अपवाद है.

कैसे कहें आज

हम आजाद है

उन्माद में हम उग्रवादी

हो गए

फाख्ता के पंख भी

कतरे गए

आजादी का कैसा अजब मजाक है

कैसे कहें आज

हम आजाद है

बृजेश नीरज

अतुकांत/ आज़ाद हैं

 

दिन व रात;  

पूरनमासी और अमावस;

 

कभी ठहरती 

कभी बहती हवा;

सागर की लहरें

उछलती-भिगोती

रेत का तन;  

 

पेड़ की फुनगी पर टंगे

खजूर;

उसकी परछाईं में

खेलते बच्चे;

 

सूखे खेत,

कराहती नदी,

बढ़ता बंजर; 

 

लोकतंत्र के गुम्बद के सामने

खम्भे पर मुँह लटकाए बल्ब;

 

अकेला बरगद

ख़ामोशी से निहारता

अर्ज़ियाँ थामें लोगों की कतार;

बढ़ता कोलाहल

पक्षी के झरते पर;  

 

गर्मी में पिघलता

सड़क का तारकोल

 

सब आज़ाद हैं!

उमेश कटारा

हम सब आजाद हैं (कविता)

आजादी का मतलब हमको
खूब समझ में आता है
एक लुटेरा जब जनता का
मुखिया तक बन जाता है

घोटालों पर घोटाले कर
खादी पहनें मुँह काले कर
भूख तडपती हो पेटों में
शर्म से सर झुक जाता है
आजादी का मतलब हमको....

सब रोटी अपनी सेक रहे
गाँधी तक को भी बेच रहे
लौहपुरुष की मानवता को
वोटों से तोला जाता है
आजादी का मतलब हमको 

भगतसिंह की वो कुर्वानी
भूल गये हम हिन्दोस्तानी
क्यों शहीदों की सूची में
भगतसिंह नहीं पाता है
आजादी का मतलब हमको


मनमानी मँहगायी कर के
मनमानी जेबों को भर के
पूँजीपतियों का सत्ता पर 
जब आधिपत्य हो जाता है
आजादी का मतलब हमको

जब अन्धा मूक बधिर राजा
चोरों से करता हो साझा
आग उगलता कोई लावा
इन आँखों में भर आता है 
आजादी का मतलब हमको.

रमेश कुमार चौहान 
चोका


कौन है सुखी ?
इस जगत बीच
कौन श्रेष्‍ठ है ?
करे विचार 
किसे पल्वित करे
सापेक्षवाद
परिणाम साधक
वह सुखी हैं
संतोष के सापेक्ष
वह दुखी है
आकांक्षा के सापेक्ष
अभाव पर
उसका महत्व है
भूखा इंसान
भोजन ढूंढता है
पेट भरा है
वह स्वाद ढूंढता
कैद में पक्षी
मन से उड़ता है
कैसा आश्‍चर्य
ऐसे है मानव भी
स्वतंत्र तन
मन परतंत्र है
कहते सभी
बंधनों से स्वतंत्र
हम आजाद है रे ।

सुशील जोशी

मनहरण घनाक्षरी : पीड़ा

(१६,१५ वर्ण पर यति एवं चरणान्त गुरू)

 

दर्द के शिरोमणि से माँगी है कलम मैंने,

थोड़ी देर के लिए उधार मेरे राम जी.

तब लिख पाई मैंने पीड़ा उस नारी की जो,

लुटती रही थी बार बार मेरे राम जी.

मंज़र वो ख़ौफनाक, चीख़ औ पुकार भरा,

सोचते ही बहे अश्रुधार मेरे राम जी.

हम हैं आज़ाद, कैसे कह दूँ मैं झूठ यहाँ,

नारी की तो साँसें भी उधार मेरे राम जी.

डॉ प्राची सिंह 

आज़ाद हम (नवगीत)

चिरमुक्ति का है बोध क्या ?

उन्मुक्ति में अवरोध क्या ?

हम जान लें 

पहचान लें 

क्यों हैं व्यथित ?.....आह्लाद हम !

आबद्ध क्यों ?...........आज़ाद हम !

मद क्रोध काम औ' लोभ में 

मोहित विषय,...घिर क्षोभ में 

मजबूर हो 

मद चूर हो 

भटके फिरें !...........दृढ़पाद हम !

आबद्ध क्यों ?.........आज़ाद हम !

कटु शब्द का दुर्दंश ले 

उर ग्रंथियों का अंश ले 

बस झींकते 

औ' खीझते 

अनवाद क्यों ?.........संवाद हम ! 

आबद्ध क्यों ?.........आज़ाद हम !

घट ब्रह्म से संसिक्त है 

पंछी मगर क्यों रिक्त है ?

डैने खुलें 

पंछी उड़ें 

उन्मुक्त   अंतर्नाद   हम ! 

आबद्ध क्यों? आज़ाद हम !

अखंड गहमरी

(१)

सोने की चिडियॉं भारत को,

गोरो ने जब लूट लिया,

भारत मॉं के दिवानेां ने,

जंगे आजादी छेड़ दिया।

 

हिंसा का कोई  लिया सहारा ,

किसी ने अहिंसा का दामन थाम लिया,

किसी ने छोड़ा घर परिवार तो,

किसे ने सपना अपना तोड़ दिया,

लूट रहे गोरे जब थे,

माता के श्रृगांर को,

तब आजादी के दिवानो ने

जंगे आजादी छेड़ दिया।


लाल लहू से कर दिया अपने,

धरती मॅा की मॉं केा,

चुन चुन मारा इन दिवानो ने,

अंग्रेजों के सरदारो को,

लिया बदला वीरो ने,

माता पर अत्‍याचार का,

भागे थे  गोरे समेट ये

अपना कारोबार तब,

जब आजादी के दिवानो ने,

जंगे आजादी छेड़ दिया।

 

आजादी के इन दिवानों ने,

अंग्रेजो के अत्‍याचार से,

भारत को मुक्‍त करा दिया,

मगर शहीदो की तकदीर देखीये,

भारत माता का ये हाल  देखीये,

क्‍या यही है उन शहीदो का भारत,

स्‍वच्‍छ,सबृध,सुखी,सलोना भारत,

जिसके लिये  वह जान लुटा दिये,

और भगाने गोरे अंग्रेज केा,

जंगे आजादी छेड दिया

 

कल भी यही था,आज भी यही है,

बस कहने में थोडा सा अंन्‍तर है,

कल हम गुलाम कहे जाते थे,

और आज हम आजाद है,

मगर हम अपने इस रवैये से,

भारत माता पर एक दाग है,

फिर कहॉं से  आयेगें वो,

शहीद इसे मिटाने को,

अपने देश के दुश्‍मनो से,

जंगे आजादी लड़ने केा ।


अब कैसे वह लड़ेगें,

अपने देश के लुटेरो से,

गैरों से लड़ना और बात है,

अपनो से ना लड़ पायेगें,

अपने भारत की दशा देख कर,

स्‍वर्ग में ही पचतायेगें,

कहाँ गया वह सपनो का भारत 

सोच कर  नीर बहायेगें

जिस मात्र भूमि की रक्षा खातिर

जंगें आजादी छेड़ दिया।

 

हालत देख अब मात्रभूमि की

रोकर अखंड बोल पड़ा

बुरा ना मनना यारो मेरे

बलिदान शहीद का व्‍यर्थ गया।

(२)

नफरत की ऐसी उठीं चिंगाँरी,

जल गया सब  का प्‍यार है।

हाथों में हथियार लिये वो,

फिरते है अब गली गली।

सुख दुख में कभी साथ थे वे,

आज एक दूजे के दुश्‍मन है।

एक दूसरे का खून बहाने का, 

खोज रहे बहाने है।

नफरत की इस चिंगांरी से,

कितने घरौंदे बिखरे गये।

दंगो की ये दुख भरी कहानी,

बेटी विधवा भरी जवानी,

लूट गयी अबला की इज्‍जत

जलता  घर संसार है।

किसका क्‍या जाता है यारो,

दंगो की इस आग में।

पागल तो वो हो जाता है,

लुटता जिसका संसार है। 

कोई ना जाना,कोई ना समझा,

बोया किसने नफरत के बीज।

हम सब  जब जूझ रहे है,

भूख गरीबी,भ्रष्‍टाचार से।

कहॅा समय  पास किसी का,

जाति धर्म पे टकरार का।

नफरत की चिगांरी से,

खंजर करने लाल का।

हमको लगता जाल बुना है,

नेताओं ने चाल का।

जनता ना करें शिकायत,

कुर्सी के अत्‍या‍चार का।

आते है ये मलहम देने,

दिल पर लगे इस घाव का।

देकर चंद कागज के टुकडों,

करते है बात भुलाने का।

कहते ये मेरे देशवासी तुम,

डरनाा मत हम साथ हैं।

चाल विदेशी ताकत का ये,

सोच रहे है वो अखंड कैसे  

हम आजाद है।

गुलाम बनाने की चाहत में,

खेल  रहे  ये चाल है।

मगर देश की जनता  तो,

समझ चुकी तेरी चाल है।

वोट बैकं की खातिर तू ही,

लगवाता दगों की आग है।

जल जाता जिसमें मेरा भारत

और भारत का सम्‍मान है।

अन्नपूर्णा बाजपेई 

अतुकांत कविता - हम आजाद हैं 

(संशोधित)

वो पंख फड़फड़ाते पंछी
उड़ते विस्तृत आकाश
सुंदर जगत विचरते
चुपके से कह गए
हम आजाद हैं ....


माँ का आंचल थामे
मचले अंगुली पकड़े
तेरा प्यार है मेरा संबल
तेरी ममता की छांव
बच्चा बोला हम आजाद है...


घुमड़ते बादल का टुकड़ा
भरे भीतर नीर
उड़ता जाए इधर उधर
गरज कर बोला
मन की करने को हम आजाद है...


देश मुरझाया सा
इंसान कुम्हलाया सा
सत्ता की उनींदी अँखिया
लो आ गया चुनावी मौसम
चुन लो नेता अपना
अब हम आजाद है...

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"

हम सब आज़ाद है 
फिर क्यूँ वो ?
तन पर केवल
कंकाल का ढांचा लिए 
भुखमरी नामक बीमारी से ग्रषित है

शायद !विवशता है 
दिवस के हर एक क्षण को 
व्यतीत करता है 
बजबजाती गन्दगी और कूड़े के ढेर में 
कुछ पाने कि लालसा में 
अंततः रात को 
घर लौटता है 
अनुत्तरित प्रश्नों में उलझा-उलझा 
सो जाता है 
आज फिर से उसने स्वयं को 
सपने में 
पेट भर कर खाते देखा 

अजित शर्मा आकाश 

हम आज़ाद हैं क्या ?

_________________

 

भूख   और   बेकारी   है

हर  जानिब लाचारी है 

मंहगाई  ने  तोड़   दिया

खुशियों ने दर छोड़ दिया

ताक़तवर का मान यहाँ 

निर्बल का अपमान यहाँ

          सोचो, हम आज़ाद हैं क्या ?

          बोलो , हम आज़ाद हैं क्या ?

 

बाहुबली   सत्ता  वाले

हर दिन करते घोटाले

घूम-घूम  कर चरते हैं

बस अपना घर भरते हैं

और इन्हें कुछ काम नहीं

देश-प्रेम  का  नाम  नहीं

         सोचो, हम आज़ाद हैं क्या ?

         बोलो , हम आज़ाद हैं क्या ?

 

सरकारी   हथकण्डों   ने

राजनीति के पण्डों  ने

हम सबको भरमाया है

सपनों से बहलाया है 

सत्ता की मनमर्ज़ी है

ये  आज़ादी  फ़र्ज़ी  है

         सोचो, हम आज़ाद हैं क्या ?

         बोलो , हम आज़ाद हैं क्या ?

अरुण कुमार निगम

कैसे  कहूँ  आजाद है

पसरा हुआ अवसाद है

कण-कण कसैला हो गया,पानी विषैला हो गया

शब्द आजादी का पावन,  अर्थ मैला हो गया.

नि:शब्द हर संवाद है

अपनी अकिंचित भूल है,कुम्हला रहा हर फूल है

सींचा जिसे निज रक्त से, अंतस चुभाता शूल है

अब मौन अंतर्नाद है

कुछ बँध गये जंजीर से, कुछ बिंध गये हैं तीर से

धृतराष्ट क्यों देखे भला, कितने कलपते पीर से

सत्ता मिली, उन्माद है

संकल्प हितोपदेश का,अनुमान लो परिवेश का

तेरा नहीं मेरा नहीं , यह प्रश्न पूरे देश का      

मन में छुपा प्रहलाद है

अब तो सम्हलना चाहिये,अंतस मचलना चाहिये

जागो युवा रण बाँकुरों,  मौसम बदलना चाहिये

अब विजय निर्विवाद है

 

अशोक कुमार रक्ताले 

आजाद हैं हम, तन-बदन सब !

परिवर्तन का दौरे जुनुं है

अब वतन आजाद है.

   १.

मन आजाद है,

उड़कर दूर तक जाता है,

कल्पना के क्षितिज पर

नीड बनाकर लौट आता है,

चैन पाने के लिए |

स्वप्न सजाने के लिए

जागता है रातभर,

बुनता है,

गुनता है,

लक्ष्य बड़े नित्य

शांत चित्त

नींद में जाकर

हर प्रहर

खर्राटों में

श्वांस छोड़ता है

मैली,

विषैली,

तब आराम पाता है |

प्रहरी सोया है,

सुबह दूर है,

लम्बी रात है,

अब वतन आजाद है!

   २.

एक पीढ़ी,

मंदिर की सीढ़ी,

आश्रम के सिरहाने

घर की चौखट पर

बिना बहाने सो गयी |

सत्य साथ लेकर

मदारी जोकर

खेल दिखाता है,

पट्टी बांधकर

आँखों में इंतज़ार

बरसों से

बरसों तक |

असत्य का घरबार,

फलता फूलता परिवार,

हैरत की बात है !

अब वतन आजाद है,

आजाद हैं हम, तन-बदन सब !

संजय मिश्रा 'हबीब'

दिनरात फैले हाथ हैं, अहसान लेता हूँ। 
आज़ाद हूँ! तुमने कहा तो मान लेता हूँ!!

कैसे बताऊँ दीप ही अब रोशनी हरते,
सपने सुनहरे आँख से आँसू सद्र्श झरते, 
उठते कदम हर बार ही पहले मेरे डरते,
दुसवारियों को मोल मैं नादान लेता हूँ, 
आजाद हूँ! तुमने कहा तो मान लेता हूँ!!

वीरों सपूतों की धरा, विश्वास की थाती,  
श्रद्धा लिए माथा झुका दुनिया यहां आती,
सुनकर शहीदों की कथायेँ फूलती छाती,
ये सम्पदायेँ तज वृथा अभिमान लेता हूँ,
आजाद हूँ! तुमने कहा तो मान लेता हूँ!!

वादा किया रक्षित करूंगा वृक्ष सब फलते, 
माटी जहां शतलक्ष जन सम्मान से पलते,
बेची वही गद्दार बन, निज लाभ के चलते,
पकड़ा गया तब हाथ में संविधान लेता हूँ,
आजाद हूँ! तुमने कहा तो मान लेता हूँ!!

वह भीड़ देखो चल रही भग्वद्भजन गाते,
सब नाम मेरा रट रहे, मेरी शरण आते, 
लज्जा मुझे आती नहीं भोलों को भटकाते,  
हर रोज ही तन में पृथक परिधान लेता हूँ, 
आज़ाद हूँ! तुमने कहा तो मान लेता हूँ!! 

आशीष नैथानी 'सलिल'

आजाद हैं हम 
उस परिंदे की तरह 
जो कुछ समय हवा में उड़कर 
लौट आता है वापस
पिंजरे में |

आजादी ऐसी कि
जिस वाहन में सवार हैं
उस पर अधिकार नहीं,
जिसका अधिकार है 
उस पर विश्वास नहीं |

आजादी सड़कों पर नारों के रूप में,
पोस्टरों की शक्ल में नजर आती है 
और मुँह चिढ़ाती है हमें 
कहकर कि, हाँ मैं हूँ |

आजादी अख़बारों की हेडलाइन में 
कि चित्रकार की 
अभिव्यक्ति की आजादी का हुआ है हनन, 
बिहार को मुम्बई तक फैलने की आजादी नहीं |

आज बँधा है इंसान 
मवेशी बनकर 
आजादी के खूंटे से |

आजादी मौजूद है अब भी
संविधान में, धर्म की किताबों में
हकीकत में बिलकुल नहीं |

ये आजादी बेहद मँहगी शै है दोस्तों !

गीतिका वेदिका 

गीत विधा

आई  घर के आँगन बन के तितली

कब  आज़ादी मिली!

रोकें मुझे बाबा, कहें मुझे मैया 

उड़ना जो उड़ेगा संग तेरा सैयां

वहीं तेरा डेरा, वहीं है बसेरा 

बाँध के सामान मै पिया-घर चली 

कब  आज़ादी मिली!

संग लिए अपने वे सपने समूचे

हर्षाती मुस्काती आई घर दूजे

उड़ न सकी थी  पर थे कटे 

खिली नही अधखिली हाये कली

कब  आज़ादी मिली!

मात बनी सुन सुत मेरे प्यारे

कर लूँगी सच सपने वो सारे

अब लालन का पालन जीवन

सपनों की तेरे उमर निकली 

कब  आज़ादी मिली!

Views: 2673

Reply to This

Replies to This Discussion

जय हो.. .

आयोजन की संचालिका आदरणीया प्राचीजी और मुख्य प्रबन्धक महोदय भाई गणेश बाग़ी जी को इस द्रुत गति से कार्यरत होने तथा संकलन को प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक बधाइयाँ.. .

शुभ-शुभ

आदरणीय सौरभ जी इस बार संकलन का महती कार्य आदरणीय मुख्य प्रबंधक महोदय नें ही सफलतापूर्वक संपन्न किया है 

अरे वाह ! तब तो गणेश भाई आपसे भी दो कदम आगे निकल गये, आदरणीया. ..!

इस रिकॉड-तोड़. या सही कहिये, रिकॉर्ड-बनाऊ प्रयास के लिए गणेश भाई को मैं फिर से बधाई दे रहा हूँ. .. :-)))))

वाह वाह !

आभार आदरणीय सौरभ भईया जी । 

जय हो..

इसे कहते हैं संलग्नता. बहुत तेज़ चैनल है आपका, गणेशभाई. हृदय से बधाई स्वीकार करिये और ढेर सारी शुभकामनाएँ लीजिये.

विश्वास है, अन्य सहकर्मी भी आपके किये का अनुकरण करेंगे.

बहुत-बहुत अच्छा.

12 बजे आयोजन खत्म और 12 बज के 1 मिनट पर नतीजे भी तैयार, वाह बहुत बढ़िया, मंच संचालिका आदरणीया डॉ.प्राची जी एवं आदरणीय गणेश जी बागी को बहुत बहुत बधाई 

धन्यवाद आदरणीय सहिज्जू शकूर जी ।  

आयोजन संचालिका आदरणीया प्राची जी और मुख्य प्रबन्धक आदरणीय ग़णेश भाई को इतनी तीव्र गति सेसभी रचनाओं को एक साथ प्रस्तुत करने के लिये बहुत बधाई और शुक्रिया !!!!! 

एक सवाल -- आदरणीया प्राची जी आपकी सलाह अनुसार अपनी रचना मे परिवर्तन का प्रयास किया हूँ , परिवर्तन जादा है इस लिये आयोजन के दर्मियान बदलाव कराना उचित नही लगा , क्या मै पूरी रचना या केवल परिवर्तन के लिये अभी प्रार्थना कर सकता हूँ ? सादर !!!!!

सराहना हेतु धन्यवाद आदरणीय भंडारी भाई साहब, आप रचना संशोधन हेतु यहाँ अनुरोध कर सकते हैं, आपकी संशोधित रचना संकलन में सम्म्लित कर दी जायेगी । 

आदरणीय गणेश भाई , सशोधित रचना को शामिल करने की अनुमति के लिये आपका आभार !!!! नीचे संशोधित रचना दे रहा हूँ , कृपा कर पिछली रचना की जगह इसे लगा दें !!!! सादर !!!!

सच , जो ख़्वाब हुये

आज़ाद हुये आज़ाद हुये

अब हम अन्दर तक शाद हुये 

 

अब अपनी सरकार बनेगी

सबका पैरोकार बनेगी      

सरल करेगी सबका जीवन

दुश्मन को दुश्वार बनेगी

 

अब खुशियाँ, खुश हो पायेंगी

अब दुख सारे नाशाद हुये

अब हम अन्दर तक शाद हुये 

 

अब झोपड़ियाँ नही रहेंगी

सब के सर पर छतें तनेंगी

अजनासों से सभी बोरियाँ

सबके घर मे भरी रहेंगी

 

आज ख़्वाब मे जाने कितने

सुन्दर सपने आबाद हुये

अब हम अन्दर तक शाद हुये   

 

जो चाहे अखबार लिखेगा

तुम भ्री मुँह अब खोल सकोगे

अब सरकार बनाओंगे तुम

हाँ, ख़िलाफ भी बोल सकोगे

 

आज विचारों में मन ही मन

कितने दुश्मन बरबाद हुये 

अब हम अन्दर तक शाद हुये

 

पर आशा सब बनी निराशा

सब के अन्दर एक हताशा

ज़हर भरी इस राजनीति से

अमृत की अब किसको आशा

भूख, गरीबी, मज़बूरी  से

सब के घर अब बरबाद हुये

 

हम किस कारण आज़ाद हुये ?

क्या सच मे हम आज़ाद हुये ?      -- आदरणीय पुनः धन्यवाद !!!

 

यथा संसोधित । 

एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां ...वाह मन मुग्ध है इस साहित्यिक अवसर की सफलता पर ...आदरणीया डॉ प्राची जी के उत्कृष्ट सञ्चालन - आ. श्री बागी जी के इस द्रुत  संचयन और रचनाकारों के सृजन पर हार्दिक बधाई !

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service