आदरणीय साथिओ,
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हार्दिक बधाई आदरणीय सीमा सिंह जी। बेहतरीन लघुकथा।मुझे आपकी लघुकथा का शीर्षक बहुत अच्छा लगा।
बहुत बढ़ीया लघुकथा ! विषय को सार्थकता से परिभाषित करती, सुन्दर वाक्य विन्यासो से सुसज्जित व धारा प्रवाह लघुकथा का शीर्षक चयन भी एकदम परफेक्ट । दृश्य चित्रण भी बाकमाल । / यह आवाज़ कानों में पड़ी तो निर्मला की नींद टूटी। सर्दियों की अलसाई सी सुबह, कुछ सफर की थकान और कुछ मायके की निश्चिन्तता! सबका मिला जुला प्रभाव कुछ ऐसा रहा कि निर्मला देर तक सोती रही थी।/ इस एक पंक्ति में जो दृश्य उभर कर आ रहा है वह प्रशंसनीय है। बुआ का मायके में निश्चिंत होकर सोना सरीखा सूक्ष्म प्वांइट बहुत शानदार है। और लघुकथा का अंत रजाई मे दुबकी बूढ़ी अम्मा का गहरा श्वास लेना व स्वयं को हल्का महसूस करना बहुत कुछ कह जाता है। साधारणता में से असाधारणता ढूंढना लघुकथा का वैशिष्ट्य है जो आपकी लघुकथा से बाखूबी उभर कर सामने आ रहा है। सादर शुभकामनाएं ।
सर्वप्रथम तो शीर्षक पर ही रुक गया, फिर अन्य प्रतिक्रियाओं से जाना कि वैशल्य का अर्थ क्या है? एक नये शब्द से परिचय कराने हेतु आपका आभार तो व्यक्त करना बनता ही है| इसके अलावा, एक सकारात्मक रचना जो कि विषय और शीर्षक दोनों ही को पूर्ण परिभाषित कर रही है, के सृजन पर बहुत-बहुत बधाई आपको आदरणीया सीमा सिंह जी|
किसी पुरानी भूल को यदि समय मिलने पर सुधार लिया जाये तो उसे समस्या का परिमार्जन माना जाना चाहिए. पूर्व में उस खानदान में बेटी/बहू के साथ ज्यादती हुई उसको सुधार कर वे लोग अवश्य एक बहुत भारी बोझ से मुक्त हुए होंगे. इस सधी हुई और कसी हुई लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें सीमा सिंह जी.
सच कहा है,एक ही जीवन मिलता हैI बच्चों को शुरू में हम ही पंख देते हैं और फिर हम ही कतरने भी लग जाते हैं ...सुन्दर कथा हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको प्रिय सीमा जी
गद्दार ( उजाला विषयाधारित)
आधी रात मोबाइल की घण्टी घनघना उठी । उसनें घड़ी देखी रात के दो बज चुके थे। उसनें बिना नम्बर देखे फ़ोन काट दिया और करवट बदल कर सोनें की कोशिश करनें लगा। दो मिनट के सन्नाटे के बाद फ़ोन फिर घनघना उठा। झुँझला कर उसनें फ़ोन उठाया अस्पताल के रिशेप्सनिस्ट का फोन था "डॉक्टर शहर में डेंगू फ़ैल गया है । एक के बाद एक मरीज़ आ रहे हैं , मैंने सबको फोन लगाया पर कोई उठा नही रहा । प्लीज़ आप आ जाइए । "
"ओह..! " उसनें माथे पर छलछला आये पसीनें को पोंछने के लिए ज्यूँ ही चेहरे पर हाथ फेरा कलाई पर बंधे उस काले फीते को देख उसे कुछ याद आ गया। ये काला धागा अस्पताल प्रशासन की नीतियों के विरुद्ध डॉक्टरों की हड़ताल में शामिल होनें का प्रतीक था ।
"हुँह अब पता चलेगा इन अस्पताल वालों को ..." उसनें तकिये से अपना मुँह छुपा लिया । वह पसीनें से नहा उठा था जिससे हाथ में बंधा काला फीता पसीने से भीग कर उसकी कलाई में कसनें लगा था । उलझन में थोड़ी देर करवट बदलनें के बाद जब उससे न रहा गया तो उसनें साथी डॉक्टर को फोन मिलाया "मयंक अस्पताल में मरीजों की हालत बहुत खराब हो रही है। हम ये हड़ताल कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दें तो ?"
"पागल हुआ है क्या ? सो जा.." मयंक नें उसे समझाते हुए कहा ।
"लेकिन.."
'लेकिन-वेकिन कुछ नही.. हम यूनियन से गद्दारी नही कर सकते । " मयंक नें अब फ़ोन काट दिया था ।
"मैं भी अपने पेशे से गद्दारी नही कर सकता ।" मेडिकल की पढाई के दौरान लिए हुए संकल्प को याद करते हुए उसने उस काले फीते को फौरन कलाई से अलग किया और एप्रेन पहन अस्पताल की ओर जाते-जाते उसनें कई दोस्तों के नम्बर मिला डाले । धीरे-धीरे कई एप्रेनों के एकजुट होते उजालों नें अस्पताल को जगमगा दिया था ।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
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