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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी क्रम में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-144

विषय - "उजाले की ओर"

आयोजन अवधि- 15 अक्टूबर 2022, दिन शनिवार से 16 अक्टूबर 2022, दिन रविवार की समाप्ति तक अर्थात कुल दो दिन.

ध्यान रहे : बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी मौलिक एवं अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता, अतुकांत आधुनिक कविता, हास्य कविता, गीत-नवगीत, ग़ज़ल, नज़्म, हाइकू, सॉनेट, व्यंग्य काव्य, मुक्तक, शास्त्रीय-छंद जैसे दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि.

अति आवश्यक सूचना :-

रचनाओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं है. किन्तु, एक से अधिक रचनाएँ प्रस्तुत करनी हों तो पद्य-साहित्य की अलग अलग विधाओं अथवा अलग अलग छंदों में रचनाएँ प्रस्तुत हों.
रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फॉण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर संकलन आने के बाद संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता अपेक्षित है.

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो - 15 अक्टूबर 2022, दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा।

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
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मंच संचालक

ई. गणेश जी बाग़ी 
(संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक)
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स्वागतम

दोहा-छंद 

तिमिर छोड़ अब दीजिए, चलें उजाले छोर । 

मित्रता न तम की भली, दीप जलें हर ओर ।।

जीत सत्य की झूठ पर, होती..........बारम्बार  ।

अंधकार सदैव क्षणिक, सच की जय जय कार।।

भ्रमित हुआ मानव जगत, मानस... होता द्वन्द  ।

माँ सीता ...रावण ...ठगा, साधू बन छल-छन्द ।।

श्रेय - प्रेय का ..द्वन्द.. सुन,  नाट्य कला मशहूर  ।

प्रिय हित वध या देश हित,  नायक मरण जरूर।।

सूर्य तिमिर अदृश्य ग्रहण, बिम्ब सदा यह छद्म  ।

जयद्रथ  सोचा दिन छिपा, माया थी वह ब्रह्म । ।

मौलिक व अप्रकाशित 

आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई.

गज़ल
मापनी: 1222 1222

अँधेरे को भगाना है
सुहानी भोर लाना है

करें हम काम कुछ ऐसा
गरीबी को मिटाना है

बुराई है बहुत फैली
अनपढ़ों को पढ़ाना है

नई राहें नई चाहें
सभी को अब बताना है

नहीं कोई रहे पीछे
सभी को साथ लाना है

सदा रौशन वतन अपना
नया सूरज उगाना है

नई मंजिल मिले हमको
नये सपने सजाना है


(मौलिक एवं अप्रकाशित)
- दयाराम मेठानी

आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुन्दर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।

आदरणीय लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’ जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।

चलो उजाले ओर

उषा अवस्थी

अविश्वास का घना अँधेरा
फैला चारों ओर
आपस का सौहार्द न टूटे
चलो उजाले ओर

जितने मुँह, उतनी ही बातें
भ्रम फैलाते नहीं अघाते
सत्य झूठ विलगा न पाएँ
बातों में उनकी आ जाएँ
भ्रम जीवी चँहु ओर
चलो उजाले ओर

इन्टरनेट का आज ज़माना
सच्चा झूठा लिखें फ़साना
आपा धापी, मारा मारी
कितने  दीख रहे व्यभिचारी
जिसका ओर न छोर
चलो उजाले ओर

कोई कुछ, कोई कुछ कहता
संशय का कोहरा नित बढ़ता
धुन्ध जल्द ही छँट जाएगी
हो समाप्त अज्ञान की 
रात्रि, खिलेगी भोर
चलो उजाले ओर

मौलिक एवं अप्रकाशित


चलो उजाले ओर

उषा अवस्थी

अविश्वास का घना अँधेरा
फैला चारों ओर
आपस का सौहार्द न टूटे
चलो उजाले ओर

जितने मुँह, उतनी ही बातें
भ्रम फैलाते नहीं अघाते
सत्य झूठ विलगा न पाएँ
बातों में उनकी आ जाएँ
भ्रम जीवी चँहु ओर
चलो उजाले ओर

इन्टरनेट का आज ज़माना
सच्चा झूठा लिखें फ़साना
आपा धापी, मारा मारी
कितने  दीख रहे व्यभिचारी
जिसका ओर न छोर
चलो उजाले ओर

कोई कुछ, कोई कुछ कहता
संशय का कोहरा नित बढ़ता
धुन्ध जल्द ही छँट जाएगी
हो समाप्त अज्ञान की 
रात्रि, खिलेगी भोर
चलो उजाले ओर

मौलिक एवं अप्रकाशित

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"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। गीत पर उपस्थिति, स्नेह एवं मनोहारी प्रतिक्रिया के लिए आभार। "
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, सादर आभार।"
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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सदस्य टीम प्रबंधन
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"सादर"
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
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सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य, आदरणीय."
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अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक 143 in the group चित्र से काव्य तक
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