For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-13 (विषय: तमाशबीन)

आदरणीय लघुकथा प्रेमिओ,

सादर नमन।
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के 13 वें अंक में आपका स्वागत हैI "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" के पहले बारह आयोजन बेहद सफल रहे। नए पुराने सभी लघुकथाकारों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक इनमें सम्मिलित होकर इन्हें सफल बनाया कई नए रचनाकारों की आमद ने आयोजन को चार चाँद लगाये I इस आयोजनों में न केवल उच्च स्तरीय लघुकथाओं से ही हमारा साक्षात्कार हुआ बल्कि एक एक लघुकथा पर भरपूर चर्चा भी हुईI  गुणीजनों ने न केवल रचनाकारों का भरपूर उत्साहवर्धन ही किया अपितु रचनाओं के गुण दोषों पर भी खुलकर अपने विचार प्रकट किए, जिससे कि यह गोष्ठियाँ एक वर्कशॉप का रूप धारण कर गईं। इन आयोजनों के विषय आसान नहीं थे, किन्तु हमारे रचनाकारों ने बड़ी संख्या में स्तरीय लघुकथाएं प्रस्तुत कर यह सिद्ध कर दिया कि ओबीओ लघुकथा स्कूल दिन प्रतिदिन तरक्की की नई मंजिलें छू रहा हैI तो साथिओ, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए प्रस्तुत है....
 
"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-13
विषय : "तमाशबीन"
अवधि : 29-04-2016 से 30-04-2016 
(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 29 अप्रैल 2016 दिन शुक्रवार से 30 अप्रैल 2016 दिन शनिवार की समाप्ति तक)
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो  29 अप्रैल दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा)
.
अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
२. सदस्यगण एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।
३. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
४. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
५. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
६. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
७. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
८. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है।
९. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें।
१०. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।
११. रचना/टिप्पणी सही थ्रेड में (रचना मेन थ्रेड में और टिप्पणी रचना के नीचे) ही पोस्ट करें, गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी बिना किसी सूचना के हटा दी जाएगी I
.
यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.
.
.
मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 23607

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

आपकी रचना के शब्द जैसे चित्र खींच रहे हैं आखों के आगे| इस बढ़िया रचना में गुरुजनों और सुधीजनों की सलाह के अनुसार बदलाव करने से रचना बेहतर हो जायेगी| इस लघुकथा के सृजन हेतु सादर बधाई स्वीकार करें, आदरणीय मोहन बेगोवाल जी |

"करतब" (यथार्थवादी लघुकथा)

शह्र के तिराहे की बायीं जगह का चयन किया । साईकिल पर लदी मैली कुचैली गठड़ी, पीतल की थाली,चार लंबे बाँस और रस्सी को ज़मीन पर पटका । साईकिल को एक तरफ़ खड़ा किया । बाँस को आमने सामने खड़ा करके गाड़ा । उस पर रस्सी तानी । मैले कपड़े, बाल बिखरे हुए बारह बर्षीय अपनी लड़की को रस्सी पर चढ़ाया । फिर उसके हाथों में रीम थमाया ।लड़की ने रस्सी पर संतुलन बना लिया था । अब वह रीम को पैरों के पंजों के सहारे रस्सी पर चलने लगी । बाप पीतल की थाली ज़ोर ज़ोर से बजाकर जनता का ध्यान आकर्षित करने लगा। भीड़ धीरे धीरे एकत्रित होने लगी ।लड़की रस्सी पर लगातार अपना हुनर दिखा रही थी । बाप ने झोली से कटोरा निकाला और लोगों के आगे करने लगा । लोग उसके कटोरे में रुपये पैसे डाल रहे थे । लेकिन ये क्या ! एल पागल नवयौवना ,बाल बिखरे हुए ,पूरी तरह से नंगी अपना सर खुजाती हुई,बड़बड़ाती हुई उस तमाशे के पास से गुज़री । फिर क्या था। सब तमाशबीन उस नंगी पागल नवयौवना को निहारने लगे । किसी की जीभ लपलपा रही थी,कोई आँखे फाड़-फाड़ कर देख रहा था तो कोई एक दूसरे को कोहनी मार कर इशारा कर रहा था । लड़की के करतब को कोई नहीं देख रहा था । बाप कटोरा लिये आवाक सा भीड़ को देख रहा था । भीड़ उस लड़की के पीछे चल दी । बाप ने लड़की को रस्सी से नीचे उतार लिया । सब से बड़ा करतब तो हो गया था ।

"मौलिक/अप्रकाशित"
बहुत ही शर्मनाक भावपूर्ण मंज़र को विषयांतर्गत बेहतरीन तरीके से शाब्दिक किया है आपने। तीखा कटाक्ष करती पेशकश के लिए तहे दिल से बहुत बहुत मुबारकबाद मोहतरम जनाब समर कबीर साहब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,रचना को अपना क़ीमती समय देने और उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

बहुत खूब सबसे बड़ा करतब तो हो गया था... इस पंच लाइन के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय कबीर साहब.

मोहतरमा सीमा सिंह जी आदाब,रचना को अपना क़ीमती समय देने और उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

janab jan jan ki kutsit manovarti aur tamashe ki pyas ko sahi se chitrit kiya hei is katha me sadar

जनाब राजेंद्र कुमार जी आदाब,रचना को अपना क़ीमती समय देने और उत्साहवर्धन प्रतिक्रिया के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

मोहतरम आली जनाब समर कबीर साहिब, अपनी ही लघुकथा का ये तरमीमशुद: रूप ज़रा मुलाहिज़ा फरमाएँ:

शह्र के तिराहे की बायीं जगह का चयन किया। साईकिल पर लदी मैली कुचैली गठड़ी, पीतल की थाली,चार लंबे बाँस और रस्सी को ज़मीन पर पटका। साईकिल को एक तरफ़ खड़ा किया। बांसों  को आमने सामने खड़ा करके गाड़ा और उस पर रस्सी तानी। मैले कपड़े, बाल बिखरे हुए बारह बर्षीय अपनी लड़की को रस्सी पर चढ़ाया और फिर उसके हाथों में रीम थमा दिया। लड़की ने रस्सी पर संतुलन बना लिया था। अब वह रीम को पैरों के पंजों के सहारे रस्सी पर चलने लगी। बाप पीतल की थाली ज़ोर ज़ोर से बजाकर जनता का ध्यान आकर्षित करने लगा। भीड़ धीरे धीरे एकत्रित होने लगी। लड़की रस्सी पर लगातार अपना हुनर दिखा रही थी। बाप ने झोली से कटोरा निकाला और लोगों के आगे करने लगा। लोग उसके कटोरे में रुपये पैसे डाल रहे थे। लेकिन ये क्या अचानक एक पूरी तरह से नग्न पागल नवयौवना, बाल बिखरे हुए बालों को खुजाती हुई और बड़बड़ाती हुई उस तमाशे के पास से गुज़री। फिर क्या था, देखते ही देखते पूरी भीड़ उस पागल नवयौवना के अंगों के नापतोल में व्यस्त हो गई। किसी की जीभ लपलपा रही थी, कोई आँखे फाड़-फाड़ कर देख रहा था तो कोई एक दूसरे को कोहनी मार कर इशारा कर रहा था। लड़की के करतब को कोई नहीं देख रहा था। बाप कटोरा लिये आवाक सा भीड़ को देख रहा था। भीड़ उस लड़की के पीछे चल दी । बाप ने लड़की को रस्सी से नीचे उतार लिया, क्योंकि सबसे बड़ा करतब तो हो गया था।

जनाब योगराज प्रभाकर जी आदाब,लघुकथा से ग़ैर ज़रूरी अल्फ़ाज़ हटाकर आपने अच्छी इस्लाह की है,जिसके लिये मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ ,लेकिन रचना के बारे में आपने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी ,क्या इस तरमीम के बाद आपकी कसोटी पर खरी उतरती है ? एक निवेदन यह है कि संकलन के वक़्त मेरी लघुकथा तरमीम के साथ ही रखें ,आपके मार्गदर्शन के लिये एक बार फिर तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।

मोहतरम समर कबीर साहिब, इसके बारे में मेरी प्रतिक्रिया कुछ यूँ है:

१. कोशिश बेहद उम्दा है, जिसके लिए आप बधाई के हक़दार हैं I

२. रचना विषय के साथ भी बखूबी इन्साफ कर रही है I

३. इस रचना में जो भी कहा गया है, वह खुद आपने कहा है I कुछ बातें पात्रों के लिए भी छोड़ी जाएँ I जैसे कि उस नग्न लड़की को देखकर कोई ये कहे कि "छोड़ यार ये तमाशा, असली तमाशा तो वो रहा I"  

४. रचना के अंत में पन्च लाइन का होना बहुत ज़रूरी होता है, जो इस लघुकथा से नादारारद है I तो अंत में जब पूरा हुजूम तमाशा छोड़ कर उस उरिआँ जिस्म नवयुवती के पीछे हो लिया, तो उस वक़्त तमाशा करने वाली लड़की भी उसी नग्न युवती को देखने लग जाती है I लेकिन उसका बाप उसकी आँखों पर हाथ रख कर कहे कि:

"बेटी हमे उधर नहीं देखना, क्योंकि हम गरीब ज़रूर हैं मगर तमाशबीन नहीं I"   

कबीर साहब आदाब , समकालीन विषय को सुंदरता से उभारा ।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह वाह ..  दूसरा प्रयास है ये, बढिया अभ्यास है ये, बिम्ब और साधना का सुन्दर बहाव…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रभाजी हार्दिक धन्यवाद प्रशंसा के लिए | "
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service