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चन्द्रयान-दो चल पड़ा, ले विक्रम को साथ।
दुखी हुआ  बेचैन भी,  छूट गया जब हाथ।।1

चन्द्रयान  का  हौसला,  विक्रम था  भरपूर।
क्रूर समय ने छीन कर, उसे किया मजबूर।।2

माँ की  ममता देखिए,  चन्द्रयान में डूब।
ढूँढ अँधेरों में लिया, जिसने विक्रम खूब।।3

चन्द्रयान दो का सफर, हुआ बहुत मशहूर।
सराहना कर  विश्व ने, दिया मान  भरपूर।।4

चन्द्रयान दो के लिए, विक्रम प्राण समान।
छीन लिया यमराज से, साध प्रेम-विज्ञान।।5

चन्दा मामा की बहन, वह माँ मेरी आज।
शुभाशीष दे पूँछती, भइया के सुख-काज।।6

चन्द्रयान  दो  है  अमर,  जैसे  गीता  -  ज्ञान।
सुख-दुख विक्रम को दिया, रहा नहीं अनजान।।7

केवल प्रसाद सत्यम

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2019 at 7:57pm

आ. लक्ष्मण भाई जी, आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 2, 2019 at 7:56pm
आ. समर साहब जी, आपका हार्दिक आभार. सादर
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 2, 2019 at 2:54pm

आ भाई केवल प्रसाद जी, दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है हार्दिक बधाई।

Comment by Samar kabeer on September 29, 2019 at 11:40am

जनाब केवल प्रसाद 'सत्यम' जी आदाब,बहुत समय बाद आपको ओबीओ पर देख कर प्रसन्नता हुई,कृपया अपनी सक्रियता बनाये रखियेगा ।

दोहों का अच्छा प्रयास हुआ है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'दुनियाँ भर के लोग जब, आए पास गुरूर'

इस पंक्ति का कथ्य कमज़ोर है,आप जो कहना चाहते हैं,शब्द उसका साथ नहीं दे रहे हैं,'दुनियाँ' को "दुनिया" कर लें ।

कुछ शब्दों में टंकण त्रुटियाँ देख लें ।

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on September 27, 2019 at 8:50pm

आ. छोटेलाल भाई जी, सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on September 27, 2019 at 6:46pm

आदरणीय केवल जी बढ़िया दोहे लिखा आपने बधाई हो 

कृपया ध्यान दे...

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