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धरती  से  तो   आसमान   का,  हो   जाता   अनुमान।
किंतु न खुद की छत से दिखता,खुद का कभी मकान।।
जो   जमीन   पर   पैर  जमाकर, करे   लक्ष्य   संधान।
वही   बनाता   है   इस   जग  में, नये-नये    प्रतिमान।।

(मौलिक व अप्रकाशित)
-हरिओम श्रीवास्तव-

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Comment by Hariom Shrivastava on June 3, 2019 at 1:25pm

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय सुरेन्द्रनाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी।। 

Comment by नाथ सोनांचली on May 17, 2019 at 6:54pm

आद0 हरिओम श्रीवास्तव जी सादर अभिवादन। बढ़िया रचना प्रस्तुत की है आपने। इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार कीजिए

Comment by Hariom Shrivastava on May 15, 2019 at 8:41pm

उत्साहवर्धन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on May 15, 2019 at 7:43am

बहुत ख़ूब। हार्दिक बधाई जनाब हरिओम श्रीवास्तव साहिब।

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