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प्रियवर धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी
आपकी बधाई आभार सहित स्वीकार है … आपकी ग़ज़ल मैंने यहां ढूंढ़ी … लेकिन असफल रहा ।
अब कल जब तमाम ग़ज़लें एक साथ लग जाएंगी
तो वे सारी ख़ूबसूरत ग़ज़लें , जो पढ़ने से महरूम रहा हूं … ज़रूर पढ़ूंगा ।
/सारी दुनिया को ये तरकीब सिखाई जाये,
 आग नफरत की मोहब्बत से बुझाई जाये./
- जो दुनिया ये तरकीब सीख जाए, फिर तो धरती स्वर्ग बन जाए. सुन्दर सन्देश और बेहतरीन अश'आर के लिए हार्दिक बधाई.
 
 सभी को हक़ है ज़माने में मियां जीने का,
 किसी गर्दन पे छुरी अब ना चलाये जाये.
- एडमिन जी से अनुरोध है कि 'चलाये' की जगह 'चलाई' कर दें.
बहुत कमाल की ग़ज़ल कही है आदरणीय आलोक जी, मतले से मक्ते तक एक से बढ़कर एक शेअर कहे हैं, मुबारकबाद स्वीकार करें
//आज मुन्सित का तराजू भी झुकाए पैसा.
 कैसे इन्साफ की जंजीर हिलाई जाये.//
पहले मिसरे में शायद टाइपिंग मिस्टेक की वजह से "मुन्सिफ" की जगह "मुन्सित" लिखा गया है !
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