For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हैरान हो जाता हूँ, जब कभी

आँखों में अश्रु निकल आते है मेरे

इतिहास में जा, जब खोजता हूँ

नारी उत्पीडन की प्रथाओ की

कड़ी से कड़ी मै जोड़ता हूँ

हैरान हो जाता हूँ, जब कभी

इतिहास में जा, जब खोजता हूँ

 

कैसी नारी कुचली जाती

चुप होके क्यों, सब सहती थी

बालविवाह जैसी, कुरूतियों की खातिर

सूली क्यों चढ जाती थी

सती होने की कुप्रथा में क्यों

इतिहास नया लिख जाती थी

चुप होके क्यों, सब सहती थी

सूली क्यों चढ जाती थी ||

 

जब कभी में सोचता हूँ

इंसा नहीं क्या पशु थी वो

जो काम नरबलि में भी आती थी

रही सही जो कसर बची तो

देवदासी बन जाती थी

विधवा होने पर ना कभी

शादी वो कर पाती थी

ना,किसी को दया आती थी

शिकार नारी हो जाती थी  ||

 

यही-कहीं हर देश में  

नारी का शोषण होता है

परम्परा का का दामन ओढे

अशिक्षिता ने रोका है

परिवारवाद कहीं, कहीं भावात्मकता

रिश्ते ने नारी को सदा ही लूटा है

यही-कहीं हर देश में  

नारी का शोषण होता है

 

इन कुरूतियों उन्मूलन कर

जड़ से इन्हें मिटाना हो  

नारी का सम्मान बचाकर

जीना उन्हें सिखाना हो  

पढ़ा-लिखा शिक्षित करना

ये मानव धर्म हमारा हो

जड़ से इन्हें मिटाना हो ||

“ मौलिक व् अप्रकाशित”

Views: 377

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by PHOOL SINGH on April 22, 2019 at 9:44am

"भाई ब्रिजेश" हौसलाअफजाई के लिए आपका कोटि कोटि धन्यवाद|

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 19, 2019 at 3:36pm

उत्तम सन्देशप्रद रचना आदरणीय..बधाई

Comment by PHOOL SINGH on April 16, 2019 at 4:49pm

कबीर साहब, हौसलाअफजाई के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, मुझे खुशी है कि आप मेरी रचना को पढ़ते है और कुछ अच्छा लिखने के लिए प्ररित भी|

Comment by Samar kabeer on April 16, 2019 at 3:01pm

जनाब फूल सिंह जी आदाब,अच्छी रचना हुई है,बधाई स्वीकार करें ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service