For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

राज़ नवादवी: एक अंजान शायर का कलाम- ८६

मिर्ज़ा ग़ालिब की ज़मीन पे लिखी ग़ज़ल 

 

१२२२ १२२२ १२२२ १२२२

न हो जब दिल में कोई ग़म तो फिर लब पे फुगाँ क्यों हो
जो चलता बिन कहे ही काम तो मुँह में ज़बाँ क्यों हो //१

जहाँ से लाख तू रह ले निगाहे नाज़ परदे में
तसव्वुर में तुझे देखूँ तो चिलमन दरमियाँ क्यों हो //२


यही इक बात पूछेंगे तुझे सब मेरे मरने पे
कि तेरे देख भर लेने से कोई कुश्तगाँ क्यों हो //३

बसर जब है बियाबाँ में, बुरी फिर क्या ख़बर होगी
जिसे लूटा करे रहज़न वो मेरा कारवाँ क्यों हो //४

वो शाहिद है मेरे हाथों शिकस्ता जामो पैमां का
कि मेरे मैक़दा आने से ख़ुश पीरे मुगाँ क्यों हो //५

तुम्हीं तरगीब देते हो, तुम्हीं करते शिकायत भी
रगों में गर न दौड़े खूँ तो आँखें खूँ फ़िशाँ क्यों हो //६

समा ख़ाना बदोशों पर गिराये क्यों नहीं बिजली
ज़मीं जब है नहीं उनकी तो फिर ये आस्माँ क्यों हो //७

किया अग़राज़ ने महदूद तुमको तो गिला कैसा
करे साहिल की जो सुहबत वो दरिया बेकराँ क्यों हो //८

करो उम्मीद क्यों मुझसे सफ़र का हाल मैं पूछूँ
हो जिसकी और ही मंज़िल वो मेरा हमरहाँ क्यों हो //९

कोई शिकवा नहीं मुझको तुम्हारी बदख़िसाली का
न हो जब परवरिश ऊँची तो लहज़ा शाएगाँ क्यों हो //१० 

तू पानी दे रहा है क्यों दिले अफ़्गार को अपने
जिसे नज़रों से तू मारे वो आशिक़ नीम जाँ क्यों हो //११ 

बना हुलिया फ़क़ीरों का सफ़र तय कर रहे हैं 'राज़'
ख़ुदा की हो जिसे रग़बत वो मुश्ताक़े जहाँ क्यों हो //१२  

~ राज़ नवादवी

"मौलिक एवं अप्रकाशित"

फुगाँ- आर्तनाद, पुकार, दुहाई: उज़्व- अंग; नक़ूशे संदली बाज़ू- संदली बाहों के चित्र; कुश्तगाँ- मृत, मार दिया गया; शाहिद- गवाह; पीरे मुगाँ- मदिरालय का प्रबंधक; तरगीब- लालच, उत्तेजना, प्रेरणा; खूँ फ़िशाँ- न खून बरसाने वाला; समा- आकाश; अग़राज़- ग़रज़ का बहुवचन; महदूद- सीमित; बेकराँ- असीम; हमरहाँ- हम सफ़र; बदख़िसाली- बुरी प्रकृति/ बुरा स्वभाव; शाएगाँ- उत्तम, बढ़िया; नीम जान- अधमरा; रग़बत- इच्छा, अभिलाषा, रूचि, चाह; मुश्ताक़े जहाँ- दुनिया की चाह रखने वाला;

Views: 1274

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज़ नवादवी on December 26, 2018 at 12:40pm

शुक्रिया जनाब समर कबीर साहब, सब आपकी इस्लाह और लिखने वालों के लिए आपकी मिहनत का नतीजा है. आपका ह्रदय से आभार. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 26, 2018 at 12:21pm

अच्छी तरमीम की आपने ।

Comment by राज़ नवादवी on December 26, 2018 at 8:33am

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. 

नक़ूशे संदली बाज़ू से करता हूँ गुमाँ तेरा 
शज़र-ए-जाफ़राँ न हो तो शाखे जाफ़राँ क्यों हो //२ 

इस शेर को बदल कर यूँ कर दिया है- 

जहाँ से लाख तू रह ले निगाहे नाज़ परदे में
तसव्वुर में तुझे देखूँ तो चिलमन दरमियाँ क्यों हो

इस शेर को 

बसर जब है बियाबाँ में, बुरी फिर क्या ख़बर होगी 
करे रहज़न जिसे ग़ारत वो मेरा कारवाँ क्यों हो //४ यूँ कर दिया है- 

बसर जब है बियाबाँ में, बुरी फिर क्या ख़बर होगी
जिसे लूटा करे रहज़न वो मेरा कारवाँ क्यों हो //४

मक़ते को 

बना हुलिया फ़क़ीरों का सरापा जी रहे हैं 'राज़'
ख़ुदा की हो जिसे रग़बत वो मुश्ताक़े जहाँ क्यों हो //१० यूँ कर दिया है- 

बना हुलिया फ़क़ीरों का सफ़र तय कर रहे हैं 'राज़'
ख़ुदा की हो जिसे रग़बत वो मुश्ताक़े जहाँ क्यों हो //१०

दो नए अशआर ऐड किये हैं- 

कोई शिकवा नहीं मुझको तुम्हारी बदख़िसाली का
न हो जब परवरिश ऊँची तो लहज़ा शाएगाँ क्यों हो

तू पानी दे रहा है क्यों दिले अफ़्गार को अपने
जिसे नज़रों से तू मारे वो आशिक़ नीम जाँ क्यों हो

आपकी अनुमति के बाद पोस्ट में बदलाव कर दूंगा. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on December 25, 2018 at 1:56pm

आदरणीय समर कबीर साहब, आदाब. आपकी इस्लाह का तहे दिल से शुक्रिया. सुझाए गए बदलाव के बाद रेपोस्ट करता हूँ. सादर. 

Comment by Samar kabeer on December 24, 2018 at 11:14pm

//  ज़ा'फ़राँ  का मतलब मैंने केसर या कुमकुम से किया है. अगर इस शेर में बात नहीं बन रही है तो कृपया मार्गदर्शन करें//

' शज़र-ए-जाफ़राँ न हो तो शाखे जाफ़राँ क्यों हो'

इस मिसरे के बारे में ये बताना चाहता हूँ कि "ज़ाफ़रान" का न तो शजर होता है न शाख़ें ।

Comment by राज़ नवादवी on December 23, 2018 at 1:02pm

आदरणीय मुहम्मद अनिस शेख़ साहब, आपकी ज़र्रा नवाज़ी और इज़्ज़त अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया. लिखना लिखाना तो सब ऊपर वाले का करम है. वही तौफ़ीक़ देता है, वही तर्गीब भी. मिर्ज़ा ग़ालिब का एक ख़ूबसूरत शेर है जिसे पेश करना चाहूंगा- 

आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में

'ग़ालिब' सरीर-ए-ख़ामा नवा-ए-सरोश है

सरीर-ए-ख़ामा- कलम की नोंक की आवाज़; नवा-ए-सरोश- दिव्य आवाज़ 

सादर 

Comment by राज़ नवादवी on December 23, 2018 at 12:21pm

आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी साहब, आपके ख्यालात जानकार अच्छा लगा. आपने बज़ा फ़रमाया है कि रचना की सम्प्रेषण शक्ति उसकी आत्मा है. और ये भी कि सरल शब्दों में भी अभिव्यक्ति की सभी संभावनाएं हैं. मेरा ख़याल तो ये है कि शब्दों की सरलता और क्लिष्टता शब्दों के चलन पर भी निर्भर है, शब्द सिक्कों की तरह हैं, जो चलते हैं उनकी क़ीमत है, बाक़ी संग्रह के तौर पे अच्छे हैं. मैं ग़ज़ल में हिंदी पदावलियों का इस्तेमाल कम से कम करना चाहता हूँ; मसलन अगर क़ाफिया इन्तेज़ार लिया है तो प्रतिकार या उपकार जैसे शब्दों का क़ाफिया नहीं लूँगा. मेरी एक कोशिश ये भी है कि अपनी ग़ज़लों के माध्यम से जो क्लासिकल उर्दू की ग़ज़लें रही हैं, उनके उस्लूब को निभाया जाए, सहल लफ़्ज़ों की जादूगरी का मैं एहतेराम तो करता हूँ, मगर लेखनी में मुझे अलफ़ाज़ की इश्वागरी से भी कुछ ख़ास मुहब्बत है. सब अपनी अपनी सोच पे मुनहसिर है. मुझ जैसे लोग महफ़िलों के शायर तो शायद कभी न बन पाएं, वक़्त निकल चुका है. मगर ये कोशिश तो है कि तारीख़ की किताबों में अगर अपना अदना सा नाम भी शुमार हुआ तो बहुत बड़ी बात होगी. बाक़ी अल्लाह की मर्जी है. सादर 

 

Comment by राज़ नवादवी on December 23, 2018 at 10:48am

आदरणीय समर कबीर साहब, ज़ा'फ़राँ  का मतलब मैंने केसर या कुमकुम से किया है. अगर इस शेर में बात नहीं बन रही है तो कृपया मार्गदर्शन करें. सादर, 

Comment by राज़ नवादवी on December 23, 2018 at 10:41am

मुहतरम समर कबीर साहब, आदाब. आपकी इस्लाह सर आँखों पे. उज़्वे ज़बाँ से मेरा मतलब जिह्वा रूपी अंग से था, जैसे ज़मीने दिल, दिल रुपी ज़मीन. आपने जो मिसरा बताया है, माशा अल्लाह बहुत ख़ूब है. मैंने भी कुछ ऐसा सोचा था, मगर फिर लगा कि वो ग़ालिब साहब के मिसरे से बहुत मिलता जुलता है, इसलिए कुछ नया लिखने की गरज़ से 'उज़्वे ज़बाँ' किया था. आप कहते हैं तो आपने जैसा सुझाया है, उसे वैसा ही कर देता हूँ. सादर 

Comment by राज़ नवादवी on December 23, 2018 at 10:33am

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज साहब, आपकी ज़र्रा नवाज़ी का ममनून हूँ, आपने जो इज़्ज़त बख्शी है उसका तहे दिल से शुक्रिया. सादर. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service