एक दुआ
साथ देने की गुजारिश के साथ
जाने अबकी बार खुदाया कैसी पूर्णमासी है
चाँद के पूरे दीदार की चाहत सुलग रही है माथे पर
और पैरों को हिला रहा है डर मंज़र खो देने का
सूनी आँखे ढूंढ रही हैं अपनी क्षमता से दूर
घुटने टेके, हाथ पसारे ,दुआ सहारे
हर दम
मर्यादा से बँधे खड़े हैं
और अम्बर का कैसा नज़ारा
इन नज़रों को सता रहा है
पेड़ों के पीछे चाँद के आने की आहट से
धड़ धड़ सीना धड़क रहा है
लेकिन
जो अंधियारे ,गहरे, काले बादल गरज रहे हैं
उनसे इन आँखों को डर लगता है
निगल न जायें ढककर वो अम्बर की छाती
चाँद का चेहरा
या बरस बरस का धुल न जाये उम्मीद हमारी
हाथ पसारे ,नैन झुकाएं, घुटने टेके
तुझसे दुआएं मांग रहे हैं मेरे मौला
चाँद का चेहरा
चाँद की रौनक
चाँद की आमद
एक झौका बस मधुर हवा ऐसा आये
जिसमे उड़ जाए मालिक ये
सारे चिंताओं के बादल
सारे दुविधाओं के बादल
और दरख्तों से ऊँचा होकर
चमक उठे उम्मीद का चाँद
मेरे मालिक .........
तेरी रहमत.......
तेरे इशारे की चाहत.......
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
अच्छी रचना हुई है हार्दिक बधाई ।
बहुत ही खूब भावरचना आदरणीय..
बहुत खूब ॥ आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥ |
कोई बात नहीं,शुक्रिया प्रिय ।
वो जल्दी में लिखा गया होगा आदरणीय समर कबीर साहब
आपको भूल जाना इतना आसान नही है
सादर
'समीर' नहीं भाई "समर",इतनी जल्दी भूल गए?
आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
आपके सभी सुझाव सर माथे
पूरा ध्यान दिया जाएगा
हार्दिक आभार
आदरणीय सुशील सरना जी
सादर
हार्दिक आभार
आदरणीया नीलम जी
सादर
बहुत बहुत आभार आदरणीय समीर कबीर साहब
सादर
आदरणीय मनोज जी अतुकांत में सुंदर और भावपूर्ण सृजन हुआ है। इसके लिए आपको हार्दिक बधाई।
सर क्षमा सहित मुझे इसमें कहीं कहीं भावों की टूटन प्रतीत होती है।
उर्दू शब्दों के बाहुल्य के कारण ये रचना उसी वातावरण की चाहत रखती है। जैसे :जाने अबकी बार खुदाया कैसी पूर्णमासी है ... यहां खुदाया के साथ यदि ईद का चाँद कह कर उसका समावेश कर दिया जाता तो पंक्ति का प्रभाव बढ़ जाता। ये पंक्ति :निगल न जायें ढककर वो अम्बर की छाती
चाँद का चेहरा .... भावों के साथ न्याय नहीं कर रही।
बरस बरस का धुल न जाये .... शायद यहां बरस बरस कर है
नैन झुकाएं ... नैन झुकाये होना चाहिए
एक झौका (झोंका ) बस मधुर हवा (का) ऐसा आये
जिसमे उड़ (जाएं) ..... मालिक ये (अनावशयक प्रयोग )
आदि-आदि ... बंधुवर ये मेरे विचार हैं हो सकता है आप ठीक हों। आप की रचना के बारे में आप अधिक समझते हैं। मुझे जो व्यक्तिगत रूप से ठीक लगा मैं आपसे साझा किया। ये सीखने और सिखाने का मंच है। कृपया मेरी किसी बात को अन्यथा न लेवें। कुछ गलत लगे तो क्षमा चाहूंगा। सादर ...
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