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डूबा मिला है आज वो गहरे खयाल में ।

मिलता कहाँ सुकून है उलझे सवाल में ।।

बरबादियों का जश्न मनाते रहे वो खूब ।

फंसते गए जो लोग मुहब्बत के जाल में ।।

आनी थी हिज्र आ गयी शिकवा खुदा से क्या ।

रहते मियां हैं आप भी अब क्यों मलाल में ।।

करता है ऐश कोई बड़े धूम धाम से ।

डाका पड़ा है आज यहां फिर रिसाल में ।।

शेयर गिरा धड़ाम से सदमा लगा बहुत।

जिसने लिया था माल को बढ़ते उछाल में ।।

पोंछा था अश्क़ आप का उस दिन के बाद से ।

खुशबू बची है आपकी मेरी रुमाल में ।।

अक्सर वो मेरी जान के पीछे पड़ा है क्यूँ।

रहता जो एक तिल मेरी जानम के गाल में ।।

अक्सर वो मेरी जान के पीछे पड़ा है क्यूँ।

रहता जो एक तिल मेरी जानम के गाल में ।।

-- नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 26, 2018 at 8:07pm

आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 26, 2018 at 11:35am

आ0 श्याम नारायण जी सादर आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on February 26, 2018 at 11:34am

आ0 कबीर सर विशेष आभार के साथ नमन 

Comment by Samar kabeer on February 25, 2018 at 6:28pm

जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले का सानी मिसरा यूँ कर लें मफ़हूम साफ़ हो जायेगा :-

'जिसको सुकून मिलता था उलझे सवाल में'

'आनी थी हिज्र आ गई शिकवा ख़ुदा से क्या'

इस मिसरे में 'हिज्र' शब्द पुल्लिंग है, और ये आता नहीं मिलता है,इस मिसरे को यूँ कर लें :-

"मिलना था हिज्र मिल गया शिकवा ख़ुदा से क्या'

"पोछा था अश्क आपका उस दिन के बाद से

खुशबु बची है आपकी मेरी रुमाल में'

इस शैर को यूँ कर लें :-

'पोंछे थे अश्क आपके उस दिन के बाद से

ख़ुश्बू बसी है आपकी मेरे रुमाल में'

7वेब शैर में 'गाल में' सही नहीं 'गाल पर' होता है ।

Comment by Shyam Narain Verma on February 24, 2018 at 8:34pm
बहूत उम्दा हार्दिक बधाई l सादर

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