For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हरेक ज़ुल्म गुनाह-ओ- ख़ता से डरते हैं - सलीम रज़ा रीवा ( ग़ज़ल )

  • 1212 1122 1212 22
    -
    हरेक ज़ुल्‍म गुनाह-ओ- ख़ता से डरते हैं.
    जिन्हे है ख़ौफ़-ए-ख़ुदा वो ख़ुदा से डरते हैं 
    -
    न मुश्किलों से न जौर-ओ-जफ़ा से डरते हैं.
    ग़म-ए-हयात की  काली घटा से डरते हैं 
    -
    किसी ग़रीब की मुझको न आह लग जाए.
    इसीलिए तो हरिक बद्दुआ से डरते हैं
    -
    बड़ा सुकून  है चैन-ओ-क़रार है दिल को.
    बदलते दौर की आब-ओ-हवा से डरते हैं 
    -
    जिन्हे ख़बर ही नहीं इश्क़ भी इबादत है.
    वही तो प्यार- मुहब्बत वफ़ा से डरते हैं
    -
    ये छीन लेती है सब्र-ओ-क़रार का आलम.
    किसी हसीन की  काफ़िर-अदा से डरते हैं
    -
    ख़ता-मुआ'फ़ तो होती है जानते हैं रज़ा.
    किसी  गुनाह कि हम इंतिहा  से डरते है
    ............
    मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 910

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on November 16, 2017 at 12:02pm

आली जनाब तस्दीक़ साहिब ,
आपकी ग़ज़ल पे शिरकत और महब्बत के लिए शुक्रिया ,

Comment by SALIM RAZA REWA on November 16, 2017 at 12:01pm

दरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी ,
आपकी नवाजिश के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on November 16, 2017 at 10:54am

जनाब सलीम साहिब , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ 

Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 4:34pm
सुरेंद्र नाथ जी,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया,
Comment by नाथ सोनांचली on November 15, 2017 at 2:16pm
ख़ता-मुआ'फ़ तो होती है जानते हैं रज़ा.
मगर गुनाह कि हम इंतिहा से डरते है
आद0 सलीम रज़ा रीवा साहब सादर अभिवादन, बहुत बेहतरीन ग़ज़ल कही आपने, लगभग हरेक शैर कुछ न् कुछ बयानी करता है जो सीधे वाह वाह कहने पर मजबूर कर रहा है, उस ग़ज़ल पर शैर दर शैर मुबारकबाद और दाद कबूल करें।सादर
Comment by SALIM RAZA REWA on November 14, 2017 at 7:37pm
आली जनाब समर साहब,
ग़ज़ल में आपकी शिरकत से से हौसला मिलता है, लेकिन माफ़ी चाहूंगा पर शायद आप तबीयत के वज़ह या और कुछ वज़ह से मेरी ग़ज़लों को दिल से नहीं देख रहें है, मुझे अक़ीदा है कि आप के दिल से देखने के बाद कोई कमी छूटने नहीं पाती, पर अब आप कमिओं को नज़र अंदाज़ कर देते हैं... माफ़ी के साथ ये नाचीज़..
Comment by SALIM RAZA REWA on November 14, 2017 at 7:32pm
आ विजय जी, आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 14, 2017 at 7:30pm
आ. आशुतोष मिश्रा जी,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया, महब्बत सलामत रहे.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 14, 2017 at 7:28pm
आ. बृजेश जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, महब्बत सलामत रहे,
Comment by SALIM RAZA REWA on November 14, 2017 at 7:27pm
आ. दीदी राजेश कुमारी जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी महब्बत सलामत रहे.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service