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तन्हा....

बहुत डरता हूँ
हर आने वाली

सहर से 

शायद इसलिए कि
शाम ने सौंपी थी
जो रात
मेरे ख़्वाबों को
जीने के लिए
ढक देगी उसे सहर
अपने पैरहन से
हमेशा के लिए
और मैं
रह जाऊंगा
सहर की शरर से
छलनी हुए
ख्वाबों के साथ
तन्हा

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 629

Comment

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Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 27, 2017 at 10:42pm
Dhanyawad aadarniya Sushil ji , adarniya samar bhai ji .
Comment by Samar kabeer on July 27, 2017 at 9:52pm
"शरर" का अर्थ है 'चिंगारी' ।
Comment by Sushil Sarna on July 27, 2017 at 9:29pm
Aadrneeya kalpna ji srijan ko maan dene ka haardik àabhaar. Shrar ka arth Kiran hai
Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 27, 2017 at 4:24pm

सुंदर रचना आदरणीय शरर का मतलब क्या है आदरणीय | सादर 

Comment by Sushil Sarna on July 27, 2017 at 12:41pm

आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन के भावों को मान एवं सुझाव देने का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on July 27, 2017 at 12:41pm

आदरणीय नरेंद्र सिंह चौहान जी सृजन की प्रशंसा के लिए आपका हार्दिक आभार।

Comment by Samar kabeer on July 25, 2017 at 6:50pm
जनाब सुशील सरना जी आदाब,कविता कुछ और कसावट चाहती है,'ढक देगी उसे सहर अपने पैरहन से हमेशा के लिये'इन पंक्तियों पर थोड़ा ग़ौर कीजिये, भाव जो आप लेना चाहते थे वो नहीं आ सके,बहरहाल इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by narendrasinh chauhan on July 25, 2017 at 4:56pm

खूब सुन्दर रचना 

Comment by Sushil Sarna on July 24, 2017 at 4:04pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब  , सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का हार्दिक आभार। 

Comment by Mohammed Arif on July 24, 2017 at 12:10pm
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब ,फिर एक और सुंदर भावाभिव्यक्ति की प्रस्तुति । बधाई स्वीकार करें ।

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