For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्राय: तनाफुर को इतना महत्त्व दिया जाता रहा है जितने का यह हक़दार नहीं है.तनाफुर को ये नाम मौलाना हसरत मोहानी ने अपनी किताब ‘मआइबे सुखन’ में दिया था जो उर्दू में शायरी के ऐबों पर लिखी गई पहली किताब थी (बाद में इसे निकाते-सुखन का हिस्सा बना दिया गया). तनाफुर की मौलाना हसरत मोहानी की परिभाषा है :

 ‘जब शेर में दो अल्फाज(शब्द) मुत्तसिल(adjoining - एक साथ ) पास आ जाते हैं जिन में से पहले लफ्ज़ का हर्फे आखिर (आखिरी अक्षर) वही होता है जो दूसरे लफ्ज़ का हर्फे अव्वल (पहला अक्षर) होता है तो इन दोनों हर्फों के एक साथ तलफ़्फ़ुज(उच्चारण) में एक किस्म का सक़्ल (गुरुत्विकरण) और नागवारी पैदा हो जाती है – इसका नाम एबे-तनाफुर है.’ 

                                                                                                                  - निकाते सुखन, पृष्ठ 129

मौलाना हसरत मोहानी के अनुसार तनाफुर दो तरह के होते है :

१.तनाफुरे ज़ली(स्पष्ट) - यह वहाँ होता है जहाँ दो शब्दों में से पहले शब्द के आखिरी अक्षर पर कोई मात्रा नहीं होती. जैसे :

मत सहल हमें जानों फिरता है फलक बरसों

तब खाक के परदे से इंसान निकलते हैं

                                             मीर तकी मीर

यहाँ ‘खाक के’ में तनाफुरे ज़ली है.

२.तनाफुरे ख़फी(लुप्त) – यह वहाँ होता है जहाँ दो शब्दों में से पहले शब्द के आखिरी अक्षर पर मात्रा होती है लेकिन उच्चारण में दब जाती है. जैसे :

गुलों  में   रंग  भरे    वादे  -  नौ - बहार   चले

चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले

                                         फैज़ अहमद फैज़

बहर के हिसाब से यह शेर 'मुज्तस मुसम्मन मखबून महफूज मकतू' है (मुफाइलुन  फइलातुन मुफाइलुन फैलुन - 1212 11 22 1212 112) और बहर के हिसाब से उच्चारण में ‘का’ दबता है और तनाफुरे ख़फी की सूरत पैदा हो जाती है.

बहर का ख्याल न भी करें तो ‘का कारोबार’ को एक साथ पढ़ने पर में ‘का’ दबता है और उच्चारण में सक़्ल और नागवारी पैदा हो जाती है जो तनाफुर का मुख्य लक्षण है.

 

लेकिन तानाफुर दरअसल एक गलती है ऐब नहीं. इसे ऐब क्यों मान लिया गया इसपर टिप्पणी करते हुए शम्सुर्रहमान फारूकी ने अपनी किताब ‘अरूज़, आहंग और बयान’ में लिखा है :

 ‘’मौलाना हसरत मोहानी ने अपनी किताब मआइबे सुखन में गड़बड़ी ये की है कि वो ऐब और गलती को एक ही दर्जे में रख गए हैं , बल्कि उनका ज्यादातर जोर गलतियाँ दिखाने पर सर्फ़ हुआ है ऐब की तरफ उनहोंने कम तवज्जः की है.’’

   

एबे तानाफुर, तक़ाबुल-ए-रदीफ़ेन, तश्दीदे लफ्जी वगैरह ऐसी ही गलतियां हैं जिन्हें ऐब में शुमार कर लिया गया. अब सवाल ये है कि ऐब और गलती में फर्क क्या है? फारूकी साहब के शब्दों में :

 “गलती महज गलती है अगर न हो तो अच्छा लेकिन इसकी मौजूदगी में भी शेर अच्छा हो सकता है, इसके बरखिलाफ ऐब एक खराबी है और शेर की मुस्तकिल खराबी का बायस होता है. शेर में अगर ऐब है तो शेर अच्छा नहीं हो सकता गलती है तो मुमकिन है गलती के बाद भी शेर अच्छा हो

यह सब कुछ लिखने का मक़सद ये नहीं है कि हम जितनी चाहे गलतियाँ करनी शुरू कर दें. गलतियाँ अनिवार्य स्थितियों में ही स्वीकार्य होती हैं. हाँ लेकिन शेर अच्छा हो तो किसी छोटी-मोटी गलती के चक्कर में उसका क़त्ल नहीं करना चाहिए.

शेर में कोई भी सुधार शेर को और बेहतर बनाने के लिए होता है. अगर गलती को ठीक करने के बाद शेर पहले से कमजोर हो रहा हो तो ऐसा कोई भी सुधार अपने आप में गलती है.  

Views: 3518

Replies to This Discussion

आ. भाई अनुराग जी , इस नायाब जानकारी से परिचित कराने के लिए हार्दिक आभार ।

आदरणीय अनुराग जी, तथ्य को सोदाहरण तर्क के साथ प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक धन्यवाद. गलती और ऐब के बीच का अंतर भी स्पष्ट होना आवश्यक था. जनाब शमसुर्रहमान फ़ारुक़ी साहब उर्दू भाषा और ग़ज़ल विधा के अंतरराष्ट्रीय विद्वान हैं. उनके अकाट्य कई तर्क बोहेमियन किस्म के हैं जिनको ले कर परंपरागत अनुमन्यता संभव नहीं है. अक़्ल लगानी ही पड़ेगी.

उनके सान्निध्य में उनको सुनने का सौभाग्य हम इलाहाबदियों को मिलता रहा है. 

शुभ-शुभ

आदरणीय अनुराग जी, आपने जानकारी को बहुत ही सटीक और सार्थक ढंग से रखी, इसके लिए मैं हृदय से धन्यवाद देता हूँ. 

शुभ-शुभ

धन्यवाद आदरणीय अनुराग जी सादर प्रणाम ये बहुत सहायक जानकारी है

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service