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bahut bahut shukriya
sampadak sahab
ye sab aapka hukm hi hai ke mai hazir rehta hun aapke ishaare pe
magar mera matla bilkul hasb e haal hai
shukriya
shukriya bhai rajendra ji
ye aap logo ki muhabbat thi jo aaj ye filwadi sher ho gaye
उनकी आमद के चर्चे हैं
गुलशन गुलशन फूल खिले हैं
हिलाल भाई आप का कलाम पढ़ना हमेशा ही सुकून देता है
मेरी बस इतनी ख्वाहिश थी तेरे हाथो से मर जाता !
बड़ा ज़ालिम है तूने ग़ैर से हमला कराया है !!
लाजवाब..लाजवाब ...लाजवाब
जो शौके दीद देना था तो ताबे दीद भी देता !
की दीदावर को तेरी दीद ने अँधा कराया है !!
वाह ...लफ्जों के साथ गजब की कारीगरी| बेहतरीन शेर
और मकते के शेर ने तो पूरी गज़ल को ही उठा रखा है| अद्भुत |
इस गज़ल ने पूरे मुशायरे को बुलंदी पर पहुंचा दिया है| हिलाल भाई मुबारकबाद और बहुत बहुत शुक्रिया|
jaanleva ghazel.
Mubarak.
OBO सदस्य आदरणीय देवेन्द्र गौतम जी की ग़ज़ल
समंदर और सुनामी का कभी रिश्ता कराया है?
कभी सहरा ने गहराई का अंदाज़ा कराया है?
न जाने कौन है जिसने यहां बलवा कराया है.
हमारी मौत का खुद हमसे ही सौदा कराया है.
फकत इंसान का इंसान से झगड़ा कराया है.
बता देते हैं हम कि आपने क्या-क्या कराया है.
अभी मुमकिन नहीं था पाओं को लंबा करा पाना
हरेक रस्ते को हमने इसलिए छोटा कराया है.
मिली जब कामयाबी तो ख़ुशी अपने लिए रक्खी
मगर रुसवा हुए तो शह्र को रुसवा कराया है.
उसे शहनाइयों की गूंज में मदहोश रहने दो
अभी तो हाल में उस शख्स ने गौना कराया है.
तुम अपने दोस्तों और दुश्मनों को तौलकर देखो
हवाओं ने कभी आंधी से समझौता कराया है?
समझ से काम लेते तो सभी मिल-जुलके रह लेते
जरा सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है.
-----देवेंद्र गौतम
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