For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ससुराल की पहली होली(हास्य कविता)राहिला

करेंगें दम से खूब धमाल,
इक दिन आगे पहुंचे ससुराल।
पहली होली संग साली के,
सोच के हो गये गुलाबी गाल।।

हुयी रात जो घोड़े बेचे,
सो गये हम ,चादर को खेंचे।
ले कालौंच,खड़िया और गेरू,
बैठी चौकड़ी,खाट के नीचे।

हो गयी शुरू ,रात से होली ,
इधर अकेले ,उधर हुल्लड़ टोली,
गब्बर सिंह बन,देख के खुद को
भूल गये सब हंसी ठिठोली ।

खूब उड़ा फिर अबीर ,गुलाल
मुंह काला ,अंग पीला लाल,
पकड़ ,पकड़ के ऐसा पोता
उड़ गये तोते देख धमाल।।

कम ना निकला ,छोटा साला,
इक नंबर का खोटा साला।
तोड़ भरोसा ,मिल गया उनमें ,
बिन पैंदी का लोटा साला।।

मान ,मनौअल खिले पकवान,
सेवा में हाज़िर सब शैतान।
नमक मिर्च से भर गिलौरी,
दे गयी साली बना के पान।।

ज्यों ही हमने पान चबाया,
खाया पिया सब बाहर आया ।
थू थू करें,तो कहें साली जी,
कहो जीजाजी मज़ा तो आया।।

छुड़ाने बैठे जो रंग गुलाल,
घिस ,घिस अंग,हुये बेहाल।
ज्यौं शैम्पू बालों पर उढेला
भरा था रंग,फिर हो गये लाल।।

नहा कर जैसे ,बाहर को आये ,
दर्जन भर सालियाँ देख ,घबराये।
छोटी, बड़ी गाँव की पूरी,
ससुरी बैठीं घात लगाये।।

डामर,गोबर ,रंग ,पिचकरी,
लगा गयीं सब बारी,बारी
बना बिजुका ,लगा डिठूला
फिर सिक्कों से नजर उतारी।

धरी रह गयी सब होशियारी
साले ,साली पड़ गये भारी।
गाँव की होली बड़ी जबर
आपबीती ,जनहित में जारी।।


मौलिक एंव अप्रकाशित

Views: 1940

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:37pm
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी!बहुत आभार रचना को पसंद करने के लिए। सादर
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:36pm
आदरणीय बृजेश जी!बहुत आभार रचना को पसंद करने के लिए। सादर
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:35pm
आदरणीय सतविंदर जी !बहुत आभार रचना को पसंद करने के लिए। सादर
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:34pm
आदरणीया प्रतिभा दी!बहुत आभार रचना को पसंद करने के लिए। सादर
Comment by Rahila on March 28, 2017 at 10:33pm
आदरणीय मोहित जी!आपका सुझाव वाकई बहुत अच्छा है ।मुझे इतने उपयुक्त शब्द सूझे ही नहीं ।आपका बहुत शुक्रिया रचना को पसंद करने तथा दोवारा उपस्थित होने के लिए ।सादर
Comment by नाथ सोनांचली on March 24, 2017 at 5:39am
बढ़िया हास्य के लिए राहिला जी सादर बधाई निवेदित
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 23, 2017 at 5:13pm
हाहाहा वाह वाह आदरणीया बहुत ही शानदार चित्रण किया है..
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on March 22, 2017 at 2:22pm
आदरणीया राहिला जी,हार्दिक बधाई इस होली-ठिठोली के लिए!
Comment by pratibha pande on March 22, 2017 at 12:02pm

आपबीती ,जनहित में जारी।।//    हो ..हो .. ,होली के आठ दिन बाद फिर से भिगो दिया होली के रंग में आप की इस रचना ने ..मजा आ गया पढ़ कर   बधाई प्रिय राहिला जी 

Comment by Rahila on March 21, 2017 at 9:28pm
आदरनीय मिश्रा सर जी !रचना को पसंद करने के लिए बहुत ,बहुत शुक्रिया। सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको न/गर में गाँव/ खुला याद/ आ गयामानो स्व/यं का भूला/ पता याद/आ गया। आप शायद स्व का वज़्न 2 ले…"
10 minutes ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"बहुत शुक्रिया आदरणीय। देखता हूँ क्या बेहतर कर सकता हूँ। आपका बहुत-बहुत आभार।"
34 minutes ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय,  श्रद्धेय तिलक राज कपूर साहब, क्षमा करें किन्तु, " मानो स्वयं का भूला पता…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"समॉं शब्द प्रयोग ठीक नहीं है। "
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया  ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया यह शेर पाप का स्थान माने…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ गया लाजवाब शेर हुआ। गुज़रा हूँ…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शानदार शेर हुए। बस दो शेर पर कुछ कहने लायक दिखने से अपने विचार रख रहा हूँ। जो दे गया है मुझको दग़ा…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मिसरा दिया जा चुका है। इस कारण तरही मिसरा बाद में बदला गया था। स्वाभाविक है कि यह बात बहुत से…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। अच्छा शेर हुआ। वो शोख़ सी…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गया मानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१। अच्छा शेर हुआ। तम से घिरे थे…"
3 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"किस को बताऊँ दोस्त  मैं क्या याद आ गया ये   ज़िन्दगी  फ़ज़ूल …"
3 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"जी ज़रूर धन्यवाद! क़स्बा ए शाम ए धुँध को  "क़स्बा ए सुब्ह ए धुँध" कर लूँ तो कैसा हो…"
4 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service