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"OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक-११(Now Close)

सम्मानित ओ बी ओ सदस्यों,

सादर प्रणाम !
इन दिनों कुछ व्यस्तताएं ऐसी हैं कि आप सबकी रचनाओं पर प्रतिक्रया भी नहीं दे पा रहा हूँ और पिछले दोनों आयोजनों में भी ठीक से हाजिरी नहीं लगा सका | आशा है आप सब क्षमा करेंगे | यह एक सुखद अनुभूति है कि "चित्र से काव्य तक" अंक-२  आयोजन में एक बार पुनः चार अंकों में टिप्पणियाँ पहुँची | यह सब आपके सहयोग और आयोजकों के सतत परिश्रम का ही फल रहा है | तरही के आयोजन में वैसे ही काफी विलम्ब हो चुका है और भगवान भुवन भास्कर भी अपनी पूर्ण तीव्रता पर जा पहुंचे हैं इसलिए इस बार ज्यादा पसीना ना बहवाते हुए एक आसान सा मिसरा दिया जा रहा है | पिछली तरही तो आप सबको याद ही होगी, इस बार भी मुनव्वर साहब की ही गज़ल से मिसरा लिया गया है और बह्र भी वही है | तो फिर आइये घोषणा करते है "OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११ की |
ज़रा सी जिद ने इस आँगन का बंटवारा कराया है 

मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन 
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
रदीफ : कराया है 
काफिया : आ की मात्रा (रुसवा, फाका, ज़िंदा, तनहा, मंदा .....आदि आदि) 
इस बह्र का नाम बहरे हज़ज़ है इसका स्थाई रुक्न मुफाईलुन(१२२२) होता है | ये इस मिसरे में चार बार और पूरे शेर में आठ बार आ रहा है इसलिए इसके आगे हम मुसम्मन लगाते हैं और चूँकि पूरा मिसरा मुफाईलुन से ही बना है इसलिए आगे हम सालिम लगाते हैं | इसलिए बह्र का नाम हुआ बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम | बह्र की अधिक जानकारी और अन्य उदाहरणों के लिए यहाँ पर क्लिक कीजिये|

विनम्र निवेदन: कृपया दिए गए रदीफ और काफिये पर ही अपनी गज़ल भेजें | यदि नए लोगों को रदीफ काफिये समझने में दिक्कत हो रही हो तो आदरणीय तिलक राज कपूर जी कि कक्षा में यहाँ पर क्लिक कर प्रवेश ले लें और पुराने पाठों को ठीक से पढ़ लें |


मुशायरे की शुरुआत दिनाकं २८ मई दिन शनिवार के लगते ही हो जाएगी और दिनांक ३० मई दिन सोमवार के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा |

नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश 
OBO लाइव तरही मुशायरा" अंक ११ के दौरान अपनी ग़ज़ल पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी ग़ज़ल एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर २८ मई से पहले भी भेज सकते है, योग्य ग़ज़ल को आपके नाम से ही "OBO लाइव तरही मुशायरा" प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |

फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |
"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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Replies to This Discussion

अब क्या कहूं इस प्रस्तुति के लिए...सब तो कहा ही हुआ है....वैसे बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने....या कहा जाये तो लाजवाब प्रस्तुति है....
# प्रीतम तिवारी जी ,
ऐसे क्या … कुछ तो कहते !;)
सब तो कहा ही हुआ है लेकिन आपने इतना कहा ये भी कम कृपा नहीं … :)

आदरणीय राजेंद्र जी सबसे बहले तो इस बेहतरीन गज़ल के लिए दिल खोलकर दाद कबूल फरमाएं|

 

वो जब हिस्से का अपने ले चुका , फिर पैंतरा बदला

मेरे हिस्से से उसने फिर नया टुकड़ा कराया है

 क्या बात है ...लाजवाब 

 

जिसे सच नागवारा हो , कोई कर के भी क्या कर ले

हज़ारों बार आगे उसके आईना कराया है

कमाल का शेर है...मज़ा आ गया 

आपकी हमेशा हे प्रतीक्षा रहती है ..इस बार आपका ख़ूबसूरत कलाम पढ़ने को मिला| आपका बहुत बहुत आभार|

 

 

Bahut Khoob rana Sahab,

ज़रा तारीख़ के पन्ने पलट कर पूछिए दिल से

कॅ किसने नामे-मज़हब पर यहां दंगा कराया है

 

Surinder Ratti,

Mumbai

 

 

बड़ी साज़िश थी ; पर्दा डालिए मत सच पे ये कह कर-

’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’

 

जिसे सच नागवारा हो , कोई कर के भी क्या कर ले

हज़ारों बार आगे उसके आईना कराया है

 

वाह.... लोगों की बेशर्मी की हद को कड़ी फटकार लगाता लाजवाब शेर

बहुत अच्छा लगा पढ़ कर

 

राजेंद्र स्वर्णकार जी,
बेमिसाल बात कह दी है आपने अपनी रचना में. तल्ख़ लहजा भले ही हो, पर ये भी कुछ फांस दिल की निकाल कर ही जाता है. मेरी और से बधाई स्वीकार करें.

ग़रीबी ने ग़रीबों से यहाँ क्या क्या कराया है
कभी भूखा सुलाया है कभी रोज़ा कराया है

मज़ा आता है अब आँखों के आँसू को भी पीने मे
इसे भी सच की शक्कर से थोडा मीठा कराया है

 

कोई तो ये बता दे हमको जिंदा क्यों है अफ़ज़ल भी
अरे संसद पे उसने ही तो वो हमला कराया है

ये जो पानी मेरी आँखों से गिरता है मेरे यारों
भरी महफ़िल मे इसने भी तो शर्मिंदा कराया है

खुदा ही जाने क्या होगा मेरे इस देश का अब तो
वहाँ दिल्ली मे कुछ चोरों से ही पहरा कराया है

महल वालों से उम्मीदें रखी हमने नहीं यारों
कराया जब भी इन्होने धोखा ही तो कराया है

बहुत झाँका है गैरों के तोशीशों मे मज़े लेकर
उसी ने मुँह अपना इस दफ़ा काला कराया है

 

कभी चाहा नही हमने बिछड़ना पर मेरे यारों
ज़रा सी ज़िद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है,


पल्लव पंचोली "मासूम"


//ग़रीबी ने ग़रीबों से यहाँ क्या क्या कराया है
कभी भूखा सुलाया है कभी रोज़ा कराया है//

 

मतला अच्छा कहा लेकिन, गरीबों ने गरीबों से वाली बात कुछ गले नहीं उतर रही है ! 



//मज़ा आता है अब आँखों के आँसू को भी पीने मे
इसे भी सच की शक्कर से थोडा मीठा कराया है//

 

यह ख्याल बिल्कुल नया है - वाह वाह !

 

कोई तो ये बता दे हमको जिंदा क्यों है अफ़ज़ल भी
अरे संसद पे उसने ही तो वो हमला कराया है

यह भी अब एक यक्ष प्रश्न ही हो चुका है - बढ़िया शेअर है यह भी !

//ये जो पानी मेरी आँखों से गिरता है मेरे यारों
भरी महफ़िल मे इसने भी तो शर्मिंदा कराया है//

बहुत खूब !

//खुदा ही जाने क्या होगा मेरे इस देश का अब तो
वहाँ दिल्ली मे कुछ चोरों से ही पहरा कराया है//

वाह !

//महल वालों से उम्मीदें रखी हमने नहीं यारों
कराया जब भी इन्होने धोखा ही तो कराया है //

बिल्कुल सही फ़रमाया !

बहुत झाँका है गैरों के तोशीशों मे मज़े लेकर
उसी ने मुँह अपना इस दफ़ा काला कराया है

क्या बात है पल्लव जी, बहुत खूब !

 

कुल मिलाकर बहुत अच्छे अशार हैं आपकी इस ग़ज़ल के पल्लव जी ! लेकिन आपने अपनी इस ग़ज़ल में तरही मिसरे "’ज़रा-सी जिद ने इस आंगन का बंटवारा कराया है’" का कहीं भी इस्तेमाल नहीं किया है, तरही मुशायरे में शामिल हर ग़ज़ल में वो मिसरा होना लाजिमी होता है !

प्रभाकर जी!
'गरीबों ने गरीबों से' नहीं है, 'गरीबी ने गरीबों से है'. कृपया, दोबारा गौर करें.
तरही मिसरा न होना तो इसे बाहर कर देगा. पल्लव जी एक तरही मिसरा एडमिन जी को भेज कर इसमें जोड़ने के लिए कहें ताकि यह यहाँ बनी रहे.
पढने में गलती हो गई थी, उस तरफ ध्यान दिलाने के लिए आभार आचार्य जी !
पल्लव जी,"गरीबों ने गरीबों से" वाला कमेन्ट कृपया इग्नोर कर दें - ध्यान से नहीं पढ़ पाने के कारण ऐसा लिखा गया था जिसके लिए खेद है ! 

ग़रीबी ने ग़रीबों से यहाँ क्या क्या कराया है
कभी भूखा सुलाया है कभी रोज़ा कराया है             - कड़वी सच्चाई.

मज़ा आता है अब आँखों के आँसू को भी पीने मे
इसे भी सच की शक्कर से थोडा मीठा कराया है     - सच की शक्कर.... उम्दा ख्याल मौलिक भी. अब तक तो सच को कडवा ही सुना था. सच ऐसा हो तो उससे नज़रें नहीं चुरानी पड़ेंगी.

 

कोई तो ये बता दे हमको जिंदा क्यों है अफ़ज़ल भी

अरे संसद पे उसने ही तो वो हमला कराया है        - मन जी! जवाब दीजिये. हर भारतीय को जवाब चाहिए.


ये जो पानी मेरी आँखों से गिरता है मेरे यारों
भरी महफ़िल मे इसने भी तो शर्मिंदा कराया है     - आँख से पानी गिरना तो गनीमत है आँख का पानी मरना नहीं चाहिए. अच्छा शे'र.

खुदा ही जाने क्या होगा मेरे इस देश का अब तो
वहाँ दिल्ली मे कुछ चोरों से ही पहरा कराया है     - सिर्फ दिल्ली में नहीं, तमाम मुल्क कें यही हो रहा है.

महल वालों से उम्मीदें रखी हमने नहीं यारों
कराया जब भी इन्होने धोखा ही तो कराया है      - धोखे की बुनियाद पर ही तो महल खड़ा होता है.

बहुत झाँका है गैरों के तोशीशों मे मज़े लेकर
उसी ने मुँह अपना इस दफ़ा काला कराया है         - झूठे का मुँह काला होना ही चाहिए.

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