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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 76 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह साक़ी फारुकी साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"सितारे ओढ़े हुए माहताब पहने हुए "

मुफाइलुन   फइलातुन    मुफाइलुन   फइलुन/फेलुन

1212      1122     1212     112

(बह्र: बह्र मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर)
रदीफ़ :- पहने हुए
काफिया :- आब (माहताब, गुलाब, सराब, हिजाब आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 28 अक्टूबर दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक २९ अक्टूबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 अक्टूबर दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय शिज़्ज़ु सादर अभिवादन। समुचित ध्यानाकर्षण के लिए आभार ।

मोहतरम जनाब पंकज कुमार साहिब , अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ---शेर 3 और 4 का सानी / ऊला मिसरा देख लीजियेगा
शेर 3 के सानी मिसरे को सही समझें तो कर लें " सवाल सबकी ज़बाँ लाजवाब पहने हुए "---शुक्रिया

आदरणीय तस्दीक सर सुझाव निश्चित ही मान लिए जाने योग्य है, संकलन में संशोधन की गुज़ारिश करूँगा, सादर प्रणाम

                         पलानी-भूख तके अस सराब पहने हुए  

                         सफेद कुरतन क बू नकाब पहने हुए 

                         बँटाइ क न फितरत कर इंसान मा, फितूर 

                        परनाम जोड़ल बाड़न आदाब पहने हुए 

                       अमन-चैन मुरतिया बसे भारत क अंगने 

                       सितारे ओढ़े हुए माहताब पहने हुए 

                      चपाती क सिंकाइ आजमाइस जोड़गाठन के 

                       चलल हुजूम वहसत क शहाब पहने हुए 

                      बहुत दिनन भइल की नीन सकूँन क अइले 

                      समीकरन बोट-कुर्सी क हिसाब पहने हुए 

                                  - प्रमोद श्रीवास्तव 

                                  मौलिक और अप्रकाशित 

ई का हौ भाई साहब

   भोजपुरी भाषा  मे है

ई त हमहूँ समझत हईं कि भोजपुरी में ही लिखला क कोशिश भईल बा, बकी राउर अइसन नइखे लागत कि पिज़्ज़ा में चन्ना के सत्तू मेरउले बानीं?

ओहूँ पे, कच्चे परोस देहले बानीं?

भाषा के साथ मज़ाक लागता
??? समझ में नहीं आ रहा है सब कुछ आदरणीय प्रमोद श्रीवास्तव जी! अंत में अपना नाम लिखना आवश्यक नहीं है नियम के अनुसार।

आपको प्रसंग एवं सन्दर्भ सहित इसका भावार्थ लिखना पड़ेगा.... तभी कुछ समझ में आ सकेगा प्रमोद भाई !!!

वाह
क्या में भी यहीं पर पोस्ट कर सकता हूँ मेरी ग़ज़ल ??
हमारे वास्ते फ़र्ज़ी नक़ाब पहने हुऐ।
भटकता फिरता है सहरा सराब पहने हुऐ।।

वो मेरे दिल की इसी कहकशां में रहता है।
सितारे ओढ़े हुवे माहताब पहने हुऐ।।

तेरे करम की हो बारिश तो गर्द छंट जाये।
कई दिनों से पड़े हैं तुराब पहने हुए।।

हर एक दौर में ज़ुल्मत का सर कुचलने को।
हमें निकलना पड़ा आफ़ताब पहने हुऐ।।

कोई भी आये , करे इश्क़ पे बहस मुझ से।
दीवाना घूम रहा है , जवाब पहने हुऐ।।

किसी नजूमी ने इक रोज़ था कहा हम से।
कटेगी उम्र तुम्हारी भी ख्वाब पहने हुऐ।।

अजीब बात है काँटों की शान में अशफ़ाक़।
किसी ने खूब लिखा है गुलाब पहने हुवे।।

______अशफ़ाक़ रशीद

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