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हाँ !चुनाव तुम्हारा है

आते है गंदले कीचड़े उथले नारे नदी

मिलते है गंगा में और गंगा हो जाते हैं
पर गंगा बन मिलते है जब सागर में
गंगा के नामो निशाँ मिट जाते हैं .....

बरगद के नीचे जो उगोगे
तो बढ़ नहीं पाओगे
सुरक्षित तो रह लोगे
संवर नहीं पाओगे


आंधी तूफ़ान से भी बचोगे ज़रूर
पर फल फूल नहीं पाओगे
न शाखा को मिलेगा आसमान
न जड़ को ज़मीं दे पाओगे

अब चुनाव तुम्हारा है
या आंधी तूफानों को झेलो
अपनी ज़मीं अपना आसमान बनाओ
या केकड़े बन सिमटते रहो सहते रहो
जैसे हो तैसे बस चमड़ी बचाओ
चुनाव तुम्हारा है

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment

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Comment by amita tiwari on September 24, 2016 at 4:59pm

मान्य राजेश जी, श्री सुनील जी ,भंडारी जी .महिर्षि  त्रिपाठी जी ,प्रतिभा पांडे जी एवं श्री सुरेश कुमार कल्याण जी 

आपकी टिप्पणियों के लिए ह्रदय से आभार 

सादर 

अमिता 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 11, 2016 at 10:03pm

बरगद के नीचे जो उगोगे
तो बढ़ नहीं पाओगे
सुरक्षित तो रह लोगे
संवर नहीं पाओगे---बहुत  सार्थक  बात वाह  सुन्दर  रचना अमिता जी बहुत बहुत बधाई 

Comment by shree suneel on June 8, 2016 at 10:44am
व्वाहह! बहुत ख़ूब! इस सुन्दर समर्थ प्रस्तुति पर आपको हार्दिक बधाई आदरणीया अमिता तिवारी जी. सादर.

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 8:22am

आदरणीया अमिता जी , अच्छी सीख दे रही है आपकी रचना , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by maharshi tripathi on June 7, 2016 at 5:16pm
सभी को खुले आसमान में जीने का हक है,गुलामी का जीवन बेकार है,दूसरे के सहारे से अच्छा है हम खुद सहारा बने !!!
अच्छी कविता है आ.अमिताजी
Comment by pratibha pande on June 6, 2016 at 12:15pm

अब चुनाव तुम्हारा है
या आंधी तूफानों को झेलो
अपनी ज़मीं अपना आसमान बनाओ
या केकड़े बन सिमटते रहो सहते रहो
जैसे हो तैसे बस चमड़ी बचाओ
चुनाव तुम्हारा है .....   बहुत गंभीर बात कही है आप ने ,   बधाई प्रेषित है आपको इस सार्थक रचना पर आदरणीया अमिता जी  

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 6, 2016 at 10:15am
आदरणीया अमिता तिवारी जी बहुत ही सुन्दर सन्देश दिया है। बधाई हो।

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