For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : - राग मुझको सुहाता नहीं दोस्तो

ग़ज़ल : - राग  मुझको सुहाता नहीं दोस्तो !

राग  मुझको सुहाता नहीं दोस्तो ,

मैं कोई गीत गाता नहीं दोस्तो |

 

खूबसूरत ज़हन का तलबगार हूँ ,

रूप कोई भी भाता नहीं दोस्तो |

 

ये मकाँ मेरे पुरखों की जागीर है ,

अब इधर कोई आता नहीं दोस्तो |

 

धूप की मेरे आँगन में आमद नही ,

और मैं केक्टस उगाता नही दोस्तो |

 

राह की दूब शबनम से धोई हुई ,

पांव आगे बढाता नहीं दोस्तो |

 

छीनकर खाने वालों के इस दौर में ,

मांगकर भी मैं खाता नहीं दोस्तो |

 

टूटकर जिसने अपना बनाया हो घर ,

बस्तियां वो ढहाता नहीं दोस्तो |

 

गाँव के बच्चे पढ़ने को आतुर बहुत ,

कोई उनको पढाता नहीं दोस्तो |

 

(अभिनव अरुण की डायरी से बकलम खुद )

Views: 456

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on May 16, 2011 at 11:30am
बहुत शुक्रिया शील जी आपकी टिप्पणी मेरा हौसला बढ़ाएगी |
Comment by Abhinav Arun on May 16, 2011 at 11:30am

आभार कपूर साहब ! आपने जैसा कहा शेर वैसा ही होना चाहिये था ! चार चंद लग गये ग़ज़ल में !!

Comment by Tilak Raj Kapoor on May 15, 2011 at 11:50pm

वाह भाई वाह।

देखकर दूब शबनम से धोई हुई ,

पांव आगे बढाता नहीं दोस्तो |

Comment by Sheel Kumar on May 15, 2011 at 10:38pm
सुन्दर भाव संयोजन .....बधाई ..
Comment by Abhinav Arun on May 15, 2011 at 10:02pm
प्रिय बागी भाई आपकी इस विस्तृत समीक्षा ने मेरी ग़ज़ल को और भी खूबसूरती अता की है मैं आपके शब्दों के लिये आभारी हूँ | दरअसल समीक्षक और समालोचकों की बड़ी भूमिका होती है एक राईटर की मेकिंग में | थैंक्स अगेन !!

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 15, 2011 at 9:30pm

//राग  मुझको सुहाता नहीं दोस्तो ,

मैं कोई गीत गाता नहीं दोस्तो // बहुत ही गहरे भाव, खुबसूरत मतला,

 

//खूबसूरत ज़हन का तलबगार हूँ ,

रूप कोई भी भाता नहीं दोस्तो // true beauty ढूंढने वालों को रूप से क्या लेना, सुंदर शेर ,

 

//ये मकाँ मेरे पुरखों की जागीर है ,

अब इधर कोई आता नहीं दोस्तो // वोहो ! दिल में सीधे उतर जाने वाला शे'र , सच सबके बस की बात नहीं |

 

//धूप की मेरे आँगन में आमद नही ,

और मैं केक्टस उगाता नही दोस्तो // बहुत खूब अरुण भाई , फूलों की चाहत रखने वालों को काँटों से क्या काम ?

 

//राह की दूब शबनम से धोई हुई ,

पांव आगे बढाता नहीं दोस्तो //  खुद अपनी राह बनाने वाले कटीले और धुल धूसरित राह से परहेज कहा करते, उन्हें तो बस चलते जाना है | बेहतरीन ख्याल |

 

//छीनकर खाने वालों के इस दौर में ,

मांगकर भी मैं खाता नहीं दोस्तो //  वॉय होय , पुनः एक और दिल छूने वाला शे'र , बहुत खूब ,

 

//टूटकर जिसने अपना बनाया हो घर ,

बस्तियां वो ढहाता नहीं दोस्तो // सच बयानी , जिसने मर्म समझा है वाही जाने |

 

//गाँव के बच्चे पढ़ने को आतुर बहुत ,

कोई उनको पढाता नहीं दोस्तो // बदनसीबी है अरुण भाई, बच्चो को क पढने के लिए भी आज संघर्ष करना पड़ रहा |

 

कुल मिलाकर एक बेहतरीन ग़ज़ल , बधाई स्वीकार करे |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service