For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत (सार छंद)/सतविन्द्र कुमार

गीत(सार छ्न्द)प्रयास
-------–
आज पड़े सावन के झूले,सबके मन हर्षाते
भूल गए मुझको तो साजन,याद बहुत हैं आते

बूँद पड़े जब तन पर मेरे तन शीतल हो जाता
आग लगी अंतस में जो है उसको कौन बुझाता
प्रेम पर्व पर प्रियतम सबको,जानूँ खूब सुहाते
भूल गए मुझको तो साजन याद बहुत हैं आते।1।

सोहे सभी सिंगार सहेली जब, साजन हो संगी
बिन साजन के सजना भी तो, लगता है बेढंगी
सारे हार सिंगार सजन जी ,तुझे रिझाने लाते
भूल गए मुझको तो साजन याद बहुत हैं आते।2।

हर त्यौहार मने खुशियों से,जब प्रियतम तुम साथी
दोनों मिलकर ख़ुशी मनाएँ, चलते हम सह पाथी
प्रियतम तेरा साथ हुआ तो, दुख भी सब कट जाते
भूल गए मुझको तो साजन याद बहुत हैं आते।3।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 639

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 10, 2016 at 5:25pm
आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी सादर हार्दिक आभार,संग नमन
Comment by Shyam Narain Verma on August 8, 2016 at 2:50pm
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 7, 2016 at 10:20pm
गीत को पसंद करने और हौंसलाफ़ज़ाई के लिए तहेदिल शुक्रिया आदरणीया राहिल जी।सादर
Comment by Rahila on August 7, 2016 at 9:39pm
सावन के गीत तो हमेशा से मन हर्षाते हैं।आपका गीत भी अनुपम बन पड़ा।बहुत बधाई आपको इस सुंदर प्रस्तुति के लिए।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 7, 2016 at 5:15pm
आभार आदरणीय बृजेश ब्रज जी।सादर
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on August 6, 2016 at 9:53pm

अति सुन्दर भाव रचना.....हार्दिक बधाई 

Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on August 6, 2016 at 8:06pm
अनुमोदन कर प्रयास की सराहना करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक आभार आदरणीय सुशील सरना जी।सादर नमन
Comment by Sushil Sarna on August 6, 2016 at 7:51pm

हर त्यौहार मने खुशियों से,जब प्रियतम तुम साथी
दोनों मिलकर ख़ुशी मनाएँ, चलते हम सह पाथी
प्रियतम तेरा साथ हुआ तो, दुख भी सब कट जाते
भूल गए मुझको तो साजन याद बहुत हैं आते।3।

बहुत खूब आदरणीय सतविंदर जी .... बहुत ही मनभावन भावों का सृजन हुआ है। इस सुंदर कृति के लिए हार्दिक बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
7 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
14 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service