For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ? ( गिरिराज भंडारी )

22  22  22  22  22  22   बहरे मीर

फोकट की ये बातें हमको मत गिनवाओ

नकली उख़ड़ी सांसें, हमको मत गिनवाओ

 

खंज़र वाले हाथ कभी काँपे क्या उनके ?

आज हुई प्रतिघातें, हमको मत गिनवाओ

 

वर्षों से सूरज का ख़्वाब दिखाते आये

अब तो काली रातें हमको मत गिनवाओ

 

शहर शहर को तोड़ तोड़ के गाँव करो तुम

बची खुची चौपालें हमको मत गिनवाओ

 

फुलवारी के बीच बनी थी हर पगडंडी

कोलतार की सड़कें हमको मत गिनवाओ 

 

क्षितिज छू रहीं बाहों का विस्तार कहाँ है

सिमटी लूली बाहें , हमको मत गिनवाओ  

 

कहीं शरारे दौड़ न जायें फिर नस नस में

इतिहासों की घातें ,हमको मत गिनवाओ

 

प्यासे को तो रोज़ चाहिये पानी यारो

मरु थल में सौगातें, हमको मत गिनवाओ

 

सरहद पार के झूठे रिश्ते आम हो गये

अब तो उनकी चाहें हमको मत गिनवाओ

***************************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

Views: 701

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2016 at 11:22am

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

इस बहर मे मुख्य बात है , लय ।  आप 22  को  112  , 121 , 211  लय को साधते हुये कर सकते हैं , कहीं कहीं 1212 ( अगर- मगर ) के उदाहरण भी मिलते हैं , बस लय टूटना नही चाहिये । मात्रा आप गिरा भी सकते हैं । मेरे खयाल से यही आप पूछना चाहते थे ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2016 at 11:16am

आदरनीया राजेश जी , गज़ल पर उपस्थिति और सराहना के लिये आपका ह्र्दय से आभार

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 4, 2016 at 2:46pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब बहरे मेरे पर एक से एक उम्दा  ग़ज़लें लिख रहे हैं आप ..भाई साब जिज्ञासा बश पूछ रहा हूँ २२  १२१ ११२ २११ के क्रम में क्या यह जरूरी है २२ की शर्त इन तीनो आप्शन से पूरी हो  शहर शहर २ १ २ १             २  २२  बात को पूरी तरह से व्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ   क्या  २२   २२ की शर्त हर जगह पूरी की जाना अनिवार्य है  या ओवर आल २२ २२ २२ मान लिया जाए ..मैं इस बिंदु पर बार बार खुद अटक जाता था इसलिए निवेदन के साथ पूछ रहा हूँ  इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई और सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 3, 2016 at 6:28pm

फुलवारी के बीच बनी थी हर पगडंडी

कोलतार की सड़कें हमको मत गिनवाओ ------वाह्ह्ह्हह 

बहुत  उम्दा ग़ज़ल हुई आद० गिरिराज जी बहुत बहुत बधाई |

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 3, 2016 at 11:41am

आदरणीय मनोज भाई , सराहना के लिये आपका आभार ।

Comment by मनोज अहसास on August 3, 2016 at 10:38am
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है आदरणीय
वाह वाह

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 3, 2016 at 9:31am

आदरनीया कल्पना जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on August 2, 2016 at 10:23pm
क्षितिज छू रहीं बाहों का विस्तार कहाँ है
सिमटी लूली बाहें , हमको मत गिनवाओ

कहीं शरारे दौड़ न जायें फिर नस नस में
इतिहासों की घातें ,हमको मत गिनवाओ

प्यासे को तो रोज़ चाहिये पानी यारो
मरु थल में सौगातें, हमको मत गिनवाओ वाह वाह खूब कहा है आदरणीय । हार्दिक बधाई ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 2, 2016 at 6:47pm

आदरणीय समर भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ।

आदरणीय आपने सही कहा , पिछली 8 -10 गज़लें बहरे मीर मे कही है मैने । दर अस्ल बात ये थी कि मुझसे बहरेमीर मे लय साधने मे कुछ न कुछ कमी रह जाती थी , इसलिये मैने आ. सौरभ भाई जी से इक तरफा वादा किया था , एक प्रतिक्रिया मे , कि आगे कुछ गज़लें लगातार बहरे मीर मे ही कहूँगा । बस इसीलिये इस बहर मे कह रहा हूँ । अभी 5 -7 और बाक़ी है पोस्ट करने के लिये ।

Comment by Samar kabeer on August 2, 2016 at 6:05pm
जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब,वाह वाह बहुत ख़ूब क्या शानदार ग़ज़ल हुई है मज़ा आ गया,आजकल आप मीर साहिब की बहरों में ज़ियादा ग़ज़लें कह रहे हैं ,ख़ेर इस ग़ज़ल के लिये शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
yesterday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service