For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हम के अस्तित्व से ....

हम के अस्तित्व से ....

बड़ा लम्बा सफर
तय करना पड़ता है
अंतस की व्यथा को
अधरों तक आने में
स्मृतिकोष के
पृष्ठों से किसी की
याद को मिटाने में

अनकहा
कुछ नहीं रहता
अवसाद के पलों में
अभिव्यक्ति
पलकों के पालने से
कपोलों पर
हौले हौले सरकती
किसी स्पर्श के इंतज़ार में
ठहर जाती है

शायद कोई
अपनत्व का परिधान ओढ़ कर
इक बूंद में समाये
विछोह के लावे को
अपनी उंगली के पोरों से उठा ले
और चुपके से मेरे कानों में
अपनी सांसों से कह दे
मैं
तुम्हें
हम के अस्तित्व से
अलग न होने दूंगा

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 386

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2016 at 1:21pm

अादरणीय डॉ विजय शंकर जी प्रस्तुति के भावों को मान देने का दिल से अाभार।

Comment by Sushil Sarna on June 22, 2016 at 1:21pm

अादरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी अपकी मधुर प्रशंसा का दिल से अाभार।

Comment by Dr. Vijai Shanker on June 21, 2016 at 7:01pm
अपनत्व का एहसास भी बहुत कुछ होता है , इसे बताती इस रचना पर बधाई , आदरणीय सुशील सरना जी , सादर।
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on June 21, 2016 at 5:29pm
वाह वाह वाह आदरणीय श्री सुशील सरना जी बहुत ही सुन्दर रचना है । बधाई हो ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई संजय जी, अभिवादन एवं हार्दिक धन्यवाद।"
33 seconds ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई दयाराम जी, हार्दिक धन्यवाद।"
1 minute ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई आज़ी तमाम जी, गजल पर उपस्थिति व प्रशंसा के लिए आभार।"
2 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई दिनेश जी, अभिवादन एवं आभार।"
3 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रिचा जी, अभिवादन। प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
6 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन के लिए आभार।"
7 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"अच्छा उदाहरण दिया आपने मगर इस शेर में कर्ता स्पष्ट है आपके शे'र में नहीं  मैं …"
18 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय दयाराम मेथानी जी"
38 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय आज़ी  तमाम जी"
39 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  DINESH KUMAR VISHWAKARMA जी"
39 minutes ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शह ले सकते हैं शाह का लघु होता है यकींनन भी हटाएँ"
52 minutes ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ"
1 hour ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service