For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गरीब होने का सुख /लघुकथा

 ईंट का आखिरी खेप सिर से उतार कर पास रखे ड्रम से पानी ले हाथ-मुँह धो सीधे उसके पास आकर खड़ा हो गया ।

" सेठ , अब जल्दी से आज का हिसाब कर दो "

" कल ले लेना इकट्ठे दोनों दिन की मजूरी ।"

" नहीं सेठ , आज का हिसाब आज करो , कल को मै काम आता या नहीं , भरोसा नहीं "

" मतलब "

" इस हफ्ते पाँच दिन काम किया ना , बहुत कमा लिया ,इतना ही काफी है । अब अगले हफ्ते ही काम पर आऊँगा ।"

" बहुत कमा लिया , हूँ ह ! इतनी-सी कमाई में क्या - क्या करोगे ?"

" क्या-क्या नहीं करूँगा यह पूछो सेठ " आँख चौड़ी करते हुए वह कह उठा  ।

" हम तुम्हारे तरह हवेली में रहकर दुखी में नहीं रहते । हम खुशी से जीने के लिए कमाते है । तुम्हारी तरह धन कमा कर जमा करने के लिए रोते - रोते जिंदगी बसर नहीं करते है । " सुनते ही वह झल्ला पड़ा ।

" तुम्हारे घर में भी तो बीवी ,बच्चे और उनकी पढ़ाई- लिखाई का खर्च होगा "

" अरे सेठ , वो सब भी है । गरीब होने का सुख तुम नहीं समझोगे " कहते हुए वह हँस पड़ा  ।

 " चलो , अब तुम्हीं समझा जाओ मुझे गरीब होने का सुख " उसके सुख से वह अब अनमना उठा था ।

 " देखो सेठ , हम सरकारी जमीन पर बने झुग्गी में रहते है । जहाँ पानी और बिजली फ्री है । बच्चे लोग सरकारी स्कूल में पढ़ते है जहाँ किताब, काॅपी, कपड़े के साथ एक वक्त का खाना भी फ्री में । घर का खर्चा , गरीबी रेखा का कार्ड है । अरे लालकार्ड ! " आँखों में आँखें डालकर फिर तैश में कहने लगा " तो अनाज से लेकर दूसरी सुविधा भी लगभग फ्री में "

" लेकिन तुमको ऐसा लगता है कि सरकारी स्कूल में पढ़कर तुम्हारे बच्चे होनहार बनेंगे ? " उस फटीचर का सुख अब असहनीय हो उठा था ।

" ओह सेठ, तुमको मालूम कि हम गरीब होनहार ही पैदा होते है। मेरा बेटा भी बड़ा होकर मजूरी करें और मस्त जिंदगी जिये, यही मेरा सपना है ।

" ऐसा क्यों सोचते हो "

" क्योंकि अगर स्कूल पास कर गया और कहीं सरकारी नौकरी लग गई तो बेड़ा ही गर्क हो जायेगा हमारा ।"

" अरे , उसके नौकरी करने से तो तुम सबका विकास होगा " वह कल्पना ही नहीं कर सकता था कि कोई स्वेच्छा से गरीब रहना पसंद करेगा ।

" क्या खाक विकास होगा ! सरकारी नौकरी , सरकारी क्वार्टर , क्वार्टर में रहन - सहन का खर्चा । फिर हम भी तुम्हारी लाईन पर आ जायेंगे और तुम्हारे कथित विकास के साथ दिन - रात का चैन भी खो देंगे । फिर तो गया ना " गरीबी का सुख " पानी में ।

दोनों की  बातों को  चुपचाप सुनती  हुई तनी हुई हवेली अब धीरे -धीरे सिकुड़ती जा रही थी ।  

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 1218

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on June 19, 2016 at 11:06pm
मेरी अभ्यास टिप्पणी की सराहना कर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया कान्ता राय जी।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2016 at 8:18pm

बहुत ही खतरनाक मनोदशा को शब्द मिले हैं, आदरणीया कान्ताजी ! एक तरह से निठल्लेपन को सस्वर करती इस मनोदशा को शाब्दिक करना आपका लेखकीय सामाजिक दायित्वबोध भी है. प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, अबतक की सभी टिप्पणियों को देख गया हूँ.

कभी मौका मिलेगा तो तथाकथित समाजवादी ’रूस’ की एक कथा सुनाऊँगा. देखियेगा, देश-समाज को पंगू बनाने के कितने षडयंत्रकारी चोंचले कितनी कृपापूर्ण कारुण्यमयी प्रतीत होती पोटलियों में किस काइँयापन के साथ सौंपे जाते हैं ! खैर यह सब तो ’वाद’ के प्रतिवाद और बहस का विषय है. आपकी प्रस्तुति के कई पहलू शिल्प के अनुसार तनिक और कसावट चाहते हैं, जिनपर मैं कुछ कहने का तार्किक अधिकारी नहीं हूँ. आप प्रतीक्षा कीजिये.

शुभेच्छाएँ

Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 9:14am
आदरणीय शहज़ाद जी , आपका कथा पर उपस्थित होना और पंक्ति दर पंक्ति कथा को समझ कर तकनीकों व शब्दों के निर्वाह संबंधी संचेतना पर प्रतिक्रिया देना , रचना पर गहनता से आपके द्वारा की गई चिंतन को दर्शाता है जो रचनाकार के गम्भीर प्रवृत्ति को जाहिर करता है । मै आपके नजरिए से रचना पर जरूर चिंतन करूँगी व संभवतः संशोधन का प्रयास भी करूँगी । हमेशा ऐसे ही रहिये । आभार आपको हृदय से रचना पर उपस्थिति के लिए ।
Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 9:08am
// ईंट का आखिरी -- या -- ईंट की आखरी खेप
कल को मै काम आता या नहीं , भरोसा नहीं -- कल को मै काम पर आ पाया या नही , भरोसा नही ।//------- आपके द्वारा दिये गये दोनों ही सुझाव सटीक है । वाक्यों के सम्प्रेषण में यहाँ मै कमजोर हुई हूँ । आपके इस मार्गदर्शन के लिए मै ऋणी हूँ । हमारे वरिष्ठजनों के सानिध्य में हम पल - पल यहाँ सीखते है । आभार आपको रचना की सराहना और मार्गदर्शन के लिये आदरणीय गिरीराज जी ।
Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 9:01am
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी आपने बिलकुल सही कहा है कि पीसते हम मध्यमवर्ग वाले ही है । कथा के मर्म पर आपकी संवेदनशील प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ।
Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 8:58am
जी , सही कहा आपने आदरणीय राजेन्द्र जी , फ्री की सुविधाओं में इंसान कई बार गुमराही की ओर भी बढ़ जाता है । कथाा पसंदगी के लिए आभार आपको ।
Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 8:55am
कथा पसंदगी के लिए आभार आपको श्याम नारायण जी ।
Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 8:54am
रचना का मर्म समझने के लिये हृदय से आभार आपको आदरणीय मनन कुमार जी ।
Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 8:53am
रचना पर आपकी उपस्थिति मेरा हौसला बढ़ा जाती है । स्नेहपूर्ण अनुमोदन के लिये हृदय की गहराईयों से आभार आपको आदरणीया राजेश जी ।
Comment by kanta roy on June 16, 2016 at 8:51am
" कथित विकास "---- बिलकुल सही पकड़ी है आप आदरणीया प्रतिभा जी । लघुकथा लेखन में प्रस्तुत पात्रों के लिहाज़ से ही संवाद होना चाहिए । इस पंक्ति पर मै भी अटकी थी लेकिन फिर भी इसे रहने दिया था । कथा पसंद करने व शब्द निर्वाह पर मुझे सचेत करने के लिये आपका हृदय से आभारी हूँ । सादर ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह-मुकरी * प्रश्न नया नित जुड़ता जाए। एक नहीं वह हल कर पाए। थक-हार गया वह खेल जुआ। क्या सखि साजन?…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कभी इधर है कभी उधर है भाती कभी न एक डगर है इसने कब किसकी है मानी क्या सखि साजन? नहीं जवानी __ खींच-…"
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय तमाम जी, आपने भी सर्वथा उचित बातें कीं। मैं अवश्य ही साहित्य को और अच्छे ढंग से पढ़ने का…"
11 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय सौरभ जी सह सम्मान मैं यह कहना चाहूँगा की आपको साहित्य को और अच्छे से पढ़ने और समझने की…"
13 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"कह मुकरियाँ .... जीवन तो है अजब पहेली सपनों से ये हरदम खेली इसको कोई समझ न पाया ऐ सखि साजन? ना सखि…"
14 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"मुकरियाँ +++++++++ (१ ) जीवन में उलझन ही उलझन। दिखता नहीं कहीं अपनापन॥ गया तभी से है सूनापन। क्या…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"  कह मुकरियां :       (1) क्या बढ़िया सुकून मिलता था शायद  वो  मिजाज…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"रात दिवस केवल भरमाए। सपनों में भी खूब सताए। उसके कारण पीड़ित मन। क्या सखि साजन! नहीं उलझन। सोच समझ…"
yesterday
Aazi Tamaam posted blog posts
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' साहब! हार्दिक बधाई आपको !"
Thursday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय मिथिलेश भाई, रचनाओं पर आपकी आमद रचनाकर्म के प्रति आश्वस्त करती है.  लिखा-कहा समीचीन और…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय सौरभ सर, गाली की रदीफ और ये काफिया। क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस शानदार प्रस्तुति हेतु…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service