For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा

क्या पता था इश्क़ मे ये हादसा हो जाएगा

वो वफ़ा की बात करके बेवफ़ा हो जाएगा

 

रास्ता पुरख़ार है या मौसमे गुल से भरा

जब भी निकलोगे सफ़र में सब पता हो जाएगा

 

रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी भी बेवफ़ा हो जाएगी

रफ़्ता रफ़्ता इस जहां में सब फ़ना हो जाएगा

 

धड़कनें पूछेंगी ख़ुद से बेक़रारी का सबब

दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला हो जाएगा

 

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

 

अपने बारे मे सभी से पूछते रहते हो क्यूँ

अपना ही किरदार इक दिन आईना हो जाएगा

 

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ

ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

 

डॉ॰ सूर्या बाली 'सूरज'

"मौलिक व अप्रकाशित"

 

Views: 959

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 11, 2016 at 9:33pm

जयनित कुमार मेहता जी आपका बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ नवाज़िश आपकी 

Comment by जयनित कुमार मेहता on June 9, 2016 at 10:10pm
आदरणीय सूर्या बाली जी, ख़ूबसूरत शे'रों से सजी इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई आपको।

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर
शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

अपने बारे मे सभी से पूछते रहते हो क्यूँ
अपना ही किरदार इक दिन आईना हो जाएगा

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ
ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

बहुत उम्दा!
Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 9, 2016 at 12:27pm

अनुज  भाई और मदन मोहन जी आप दोनों का बहुत बहुत शुक्रिया । दुवाओं में याद रखिएगा । 

Comment by Anuj on June 8, 2016 at 4:06pm

आदरणीय सूर्या बाली जी, आपकी ग़ज़ल में जो सबसे पहले ध्यान खींचने वाली चीज है वो है रवानी . जबान को कहीं तोड़ने मरोड़ने की कोशिश नहीं की गयी है. यह किसी भी ग़ज़लकार के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है . बधाईयाँ !

Comment by Madan Mohan saxena on June 8, 2016 at 2:38pm

रफ़्ता रफ़्ता ज़िंदगी भी बेवफ़ा हो जाएगी
रफ़्ता रफ़्ता इस जहां में सब फ़ना हो जाएगा

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ
ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

बेहतरीन गज़ल

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 8, 2016 at 1:01pm

राजेश कुमारी जी और गिरिराज भण्डारी जी ग़ज़ल पर अपने विचार रखने के लिए आप दोनों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 8, 2016 at 12:20pm

आदरनीय सूर्या बाली भाई , इस बेहतरीन गज़ल से मंच को नवाजने के लिये आपका हार्दिक आभार ।

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा -- हासिले गज़ल शे र के लिये बधाई आपको ।

मक्ता भी बहुत खूब है -- वाह !!
कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ

ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2016 at 8:15am

धड़कनें पूछेंगी ख़ुद से बेक़रारी का सबब

दो दिलों के दरमियाँ जब फ़ासला हो जाएगा---वाह्ह्ह्हह 

 

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा---बहुत उम्दा 

इस शानदार ग़ज़ल के लिए दिल से बधाई लीजिये आ० डॉ ० सूर्या  बाली जी 

 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 7, 2016 at 9:48pm
सुशील जी , उस्मानी साहब,महर्षि जी, चौहान साहब,और सौरभ जी आप सभी अदीबों और क़द्रदानों का दिल से बहुत बहुत शुक्रिया

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2016 at 8:33pm

कौन किसका साथ देता है यहाँ पे उम्र भर

शाम तक तेरा ये साया भी जुदा हो जाएगा

  

कौन 'सूरज' है पराया कौन अपना है यहाँ

ओढ़ लो थोड़ा सा ग़म तो सब पता हो जाएगा

उपर्युक्त शेर और मक्ते के बरअक्स आपकी ग़ज़ल पर दिल से दाद, आदरणीय सूर्य बाली जी..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
7 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
23 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service