For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काफि़या को लेकर अब कुछ विराम लेते हैं। जितना प्रस्‍तुत किया गया है उसपर हुई चर्चा को मिलाकर इतनी जानकारी तो उपलब्‍ध हो ही गयी है कि इस विषय में कोई चूक न हो। रदीफ़ को लेकर कहने को बहुत कुछ नहीं है फिर भी कोई प्रश्‍न हों तो इस पोस्‍ट पर चर्चा के माध्‍यम से उन्‍हें स्‍पष्‍ट किया जा सकता है। लेकिन रदीफ़ और काफि़या को लेकर कुछ महत्‍वपूर्ण है जिसपर चर्चा शेष है और वह है रदीफ़ और काफि़या के निर्धारण में सावधानी। यह तो अब तक स्‍पष्‍ट हो चुका है कि रदीफ़ की पुनरावृत्ति हर शेर में होती है और काफि़या का मात्रिक वज्‍़न भी स्‍थायी रहता है। ऐसे में यह ध्‍यान रखना आवश्‍यक हो जाता है कि मत्‍ले के शेर में इनका निर्धारण इस प्रकार हो कि ये बेबह्र न हों। इसे समझने के लिये पिछली तरही में दिये गये मिसरे को देखें।
'हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था'
जिसकी बह्र निर्धारित की गयी 'मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन' या '१२२२ १२२२ १२२२ १२२२' और कफिया निर्धारित किया गया: आना (याराना, दीवाना, बेगाना, मनमाना, पहचाना, जाना आदि आदि) तथा रदीफ: 'भी होता था'। अब इसमें 'आना भी होता था' का पालन हर शेर की दूसरी पंक्ति में होना है और वज्‍़न बनता है 222222 जिसे अपनाई गयी बह्र का पालन करने के लिये 'भी' को गिराकर 'भि' करते हुए 221222 किया गया। ऐसा करना अनुमत्‍य है लेकिन प्रश्‍न यह उठता है कि क्‍या इस प्रकार की छूट लेने की स्थिति से बचा नहीं जा सकता है।
मेरा मानना है कि अनुमत्‍य होते हुए भी यह एक कमज़ोरी तो है ही अत: इस प्रकार रदीफ़ और काफि़या के अंश में मात्रा गिराने की स्थिति से बचना चाहिये। अगर हमें लगता भी है कि हम कोई नायाब रदीफ़ काफि़या दे रहे हैं तो उसका सटीक हल यह भी हो सकता है कि हम बह्र ऐसी चुनें जिसमें रदीफ़ काफि़या सही फिट हो रहे हों। रदीफ़ काफि़या के अंश में किया गया कोई भी समझौता पूरी ग़ज़ल में समझौते की स्थिति निर्मित करता है और जहॉं समझौता हो वहॉं आपत्ति की संभावना को नकारा नहीं जा सकता है। संयोग से मुज़ाहिफ़ शक्‍लें मिलाकर हमारे पास इतने अरकान उपलब्‍ध हैं कि रदीफ़ काफि़या के अंश में बह्र से समझौते की स्थिति से बचा जा सकता है और अगर ऐसा करना बिल्‍कुल ही संभव न हो पा रहा हो तो हमारी शब्‍द सामर्थ्‍य कब काम आयेगी; उसका उपयोग करते हुए रदीफ़ काफि़या इस प्राकर पुर्ननिर्धारित करना चाहिये कि बह्र में फिट हो जाये।
यह तो हुई रदीफ़ और काफि़या के निर्धारण में सावधानी को लेकर एक बात; दूसरी बात यह है कि रदीफ़ की पुनरावृत्ति की स्थिति को देखते हुए यह ध्‍यान रखना आवश्‍यक होता है कि इसका चयन इस प्रकार किया जाये कि पालन सहज हो सके। यहॉं यह विशेष ध्‍यान रखना आवश्‍यक होता है कि रदीफ़ किसी परिस्थिति विशेष से बॉंध न रहा हो जैसा कि तरही के मिसरे में था। 'भी होता था' इंगित करता है एक परिस्थिति विशेष की ओर जहॉं मात्र दो विकल्‍प हो सकते हैं एक तो यह कि शायर कहे कि ऐसा होता था तो ऐसा भी होता था, दूसरा विकल्‍प यह बचता है कि शायर स्‍वतंत्र रूप से यह कहे कि उस समय ऐसा भी होता था (अप्रत्‍यक्ष रूप से इससे यह इंगित होता है कि अब ऐसा नहीं होता)। तरही की पूरी पंक्ति को देखें 'हर इक आबाद घर में एक वीराना भी होता था' से क्‍या ध्‍वनित होता है, क्‍या एक भाव विशेष या परिस्थिति विशेष की स्थिति निर्मित नहीं हो रही? रदीफ़ के इस प्रकार के बंधन कहन का दायरा सीमित कर देते हैं। इस बिन्‍दु को पढ़कर एक बार फिर आप तरही की ग़ज़लों को एक बार फिर पढ़ें तो पायेंगे कि जो अश'आर आपको पसंद आये उनमें तरही में दी गयी पंक्ति के भाव/ परिस्थिति विशेष का पालन हुआ है और अगर नहीं हुआ है तो अवश्‍य ही वाक्‍य रचना का कोई दोष दिख जायेगा।
अनुभव हो जाने पर तो इनका निर्वाह करने की क्षमता विकसित हो ही जाती है लेकिन इन बातों का ध्‍यान ग़ज़ल कहने के प्रारंभिक चरण में रखा जाना बहुत जरूरी है।
Facebook

Views: 2996

Replies to This Discussion

तिलकराज जी, मैं पूरी तरह सहमत हूँ आपकी इस बात से कि कम से कम काफ़िया और रदीफ़ में तो मात्रा गिराने से बचना चाहिए। एक बात और बताइए कि यदि किसी शे’र में शब्द की मात्रा गिराने से जो शब्द बन रहा हो वो बिल्कुल अलग अर्थ रखने वाला शब्द हो तो भी क्या मात्रा गिराई जा सकती है।
यहॉं यह समझना आवश्‍यक है कि मात्रा गिराना केवल मात्रा गिनवाने के लिये नहीं होता वरन् पढ़ते या गाते समय बेबह्र होने से बचने के लिये होता है। ऐसे में अगर मात्रा गिराने से कोई ऐसा सार्थक शब्‍द बन रहा है जो वाक्‍य रचनानुसार उस स्‍थान पर आ सकता है तो भ्रम की स्थिति बनेगी जो कि काव्‍य दोष होता है। इसलिये इस विषय में सावधानी आवश्‍यक होती है।
इस बार की तरही में 'भी' को गिराकर 'भि' करने से कोई समस्‍या नहीं आई तो उसका कारण यही था कि 'भि' कोई शब्‍द नहीं है।
आदरणीय तिलक जी
लाजवाब पोस्ट

मुझे लगता है कि रदीफ किसी गज़ल का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है| जितनी तगड़ी गाँठ रदीफ के साथ होगी, शेर उतना ही बढ़िया होगा|

इस लाजवाब रदीफ को उद्धृत करने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ


अंतरगति का चित्र बना दो कागज़ पर
मकड़ी के जाले तनवा दो कागज़ पर

गुमराही का नर्क न लादो कागज़ पर
लेखक हो तो स्वप्न सज़ा दो कागज़ पर

युक्ति करो अपना मन ठण्ढा करने की
शोलों के बाजार लगा दो कागज़ पर

होटल में नंगे जिस्मों को प्यार करो
बे शर्मी का नाम मिटा दो कागज़ पर

कोई तो साधन हो जी खुश रहने का
धरती को आकाशा बना दो कागज़ पर

यादों की तस्वीर बनाने बैठे हो
आंसू की बूँदें टपका दो कागज़ पर

अनपढ़ को जिस ओर कहोगे जाएगा
सभ्य सुशिक्षित को बहका दो कागज़ पर

अगर आपको शायर पसंद आये तो उनका नाम खुद ही पता लगाएं|

हर दिल अज़ीज़ एहतराम इस्लाम की यह ग़ज़ल कविता कोष पर भी है।

गुमराही का नर्क न लादो कागज़ पर में तहलीली रदीफ़ का उदाहरण भी है इसमें।

ग़ज़ल पर तो मैं कुछ नहीं क‍हूँगा लेकिन यह सबके देखने का विषय है कि 'दो कागज़ पर' का रदीफ़ कहन की स्‍पष्‍टता में बाधक तो नहीं हो रहा।

:)

 

यह भी गौरतलब है की एहतराम साहब की इस गज़ल में एक भी मात्रा गिराई नहीं गई है|

आप सही हैं।

'सभ्य सुशिक्षित को बहका दो कागज़ पर' को लेकर किसी को भ्रम हो तो क्ष की प्रकृति पर ध्‍यान दें यह वज्‍़न की दृष्टि से वस्‍तुत: क्‍श है इस प्रकार यह पंक्ति भी सही है।

पोस्ट से पूरी तरह से सहमत हू

परन्तु जब हम किसी शायर का मिसरा 'तरही' मुशायरे के लिए चुनते हैं तो  रदीफ़ काफिया और बहर भी वही रखते हैं जो शायर ने अपनी ग़ज़ल में रखी है 
यह बात ध्यान देने योग्य है की तरही मिसरा का चुनाव करते समय अतिरिक्त सावधानी बरती जाए

 


@ राणा भाई - रदीफ़ काफिया भी सरल दिया करिए, हम जैसों का भला होगा

 

@ O.B.O   -  पिछले दिनों व्यस्तता के कारण प्रतियोगिता और मुशायरे में हिस्सा न ले सका , क्षमा प्रार्थी हूँ

यह तो सही है कि तरही की पंक्ति वही रहेगी जो शायर की मूल पंक्ति होगी, ध्‍यान तो हमें रखना है जब हम अपनी ग़ज़ल का मत्‍ला निर्धारित कर रहे हों।

कविताएं तो लिखता रहा हूँ, पर गजल की जानकारी चाहता हूँ। आभार होगा यदि रदीफ़, काफिया, मिसरा, मतला इत्यादि पर एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत हो। 

इसी मंच के होम पेज पर देखें दो लिंक दिये हुए हैं जिन पर इतनी जानकारी तो है ही कि आपकी क्षुधा शांत हो सके। 

बिलकुल सही कह रहे है आप कि यहां इतनी जानकारी है कि की किसी नयी विधा के नव उत्साही की क्षुधा शांत कर दे।  सादर। 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अशोक  भाईजी  हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस सार्थक दोहावली के लिए| दोपहर और …"
23 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय लक्ष्मण भाईजी  हार्दिक बधाई इस सार्थक दोहावली के लिए| तन-मन ये मन  से …"
46 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और सुझाव के लिए हार्दिक आभार। अंतिम…"
51 minutes ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहा छंद   ++++++ ग्रीष्म बाद ही मेघ से, रहती सबको आस| लगातार बरसात हो, मिटे धरा की…"
57 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी प्रस्तुति की प्रतीक्षा थी, शिज्जू भाई।  वैसे आज बाहर गया था। सबकी प्रस्तुतियों पर एक-एक…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"किसको लगता है भला, कुदरत का यह रूप। मगर छाँव का मोल क्या, जब ना होगी धूप।। ऊपर तपता सूर्य है, नीचे…"
4 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह वाह अशोक भाई। बहुत ही उत्तम दोहे। // वृक्ष    नहीं    छाया …"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   पीछा करते  हर  तरफ,  सदा  धूप के पाँव।   जल की प्यासी…"
7 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"     दोहे * मेघाच्छादित नभ हुआ, पर मन बहुत अधीर। उमस  सहन  होती …"
7 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. अजय जी.आपकी दाद से हौसला बढ़ा है.  उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो…"
11 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"बहुत उत्तम दोहे हुए हैं लक्ष्मण भाई।। प्रदत्त चित्र के आधार में छिपे विभिन्न भावों को अच्छा छाँदसिक…"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service