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//सफ़ेद साडी पहचान है कटी पतंग की और मुझे ये पहचान नही चाहिए//
बहुत ही सुन्दर और संदेशपरक लघुकथा प्रस्तुत हुई है, साडी = साड़ी कर लें. बधाई इस प्रस्तुति पर.
भारतीय संस्कृति में सदैव ही समय के अनुसार परिवर्तन आये हैं, जिन्हें सुधार की संज्ञा भी कई लोग देते हैं, लेकिन मैं परिवर्तन शब्द को ही उचित समझता हूँ| समाज में छोटे से लेकर क्रन्तिकारी परिवर्तनों में लेखकों और कवियों का बहुत बड़ा हाथ भी हमेशा ही से रहा है| सफ़ेद साड़ी किसी समय में वैधव्य का प्रतीक था, ताकि उस अनुसार व्यवहार किया जा सके, जो बुरा कतई नहीं था, बल्कि उसके पति के बारे में बात न करना आदि बातें थी| धीरे-धीरे कई प्रतीक कुरीति माने जाने लगे क्योंकि समय के अनुसार जो परिवर्तन समाज में हुए, प्रतीकों में नहीं हुए| हालाँकि अब सफ़ेद साड़ी का प्रचलन कई स्थानों पर नहीं है फिर भी इस परिवर्तन की बहुत स्थानों पर अभी भी आवश्यकता है| इस सामयिक आवश्यकता की रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया नीता जी|
बहुत बढ़िया और प्रेरणादायक रचना विषय पर, बहुत बहुत बधाई आपको
फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ब्लैक
"आज मैं तुम्हारा अंत करके दुनिया को हमेशा हमेशा के लिए तुमसे मुक्त कर दूँगा।" धवल-श्वेत वस्त्रधारी ने काले लबादे वाले का गला पकड़ते हुए कहाI
"अरे अरे! यह क्या कर रहे हो? मैंने ऐसा क्या कर दिया कि तुम मेरी जान लेने पर उतारू हो गए?"
"समस्त मानव-जाति तुम्हारे कारण त्राहिमाम त्राहिमाम कर रही है, अत: आज तुम्हें मेरे हाथों मरना ही होगाI" गले पर दबाव बढ़ाते हुए उसने कहाI
"किन्तु इसमें मेरा क्या दोष है? मैं तो केवल वही कर रहा हूँ जो मेरा कर्तव्य हैI"
"पाप को कर्तव्य बताते हो दुष्ट? उसके स्वर की कठोरता बहुगुणित हो रही थीI
"ठीक है भाई! तुम जीते और मैं हारा। बस मेरी एक आखिरी बिनती सुन लो।" उसने याचना भरे स्वर में कहाI
"नहीं ! आज मैं तुम्हारी कोई भी बात नहीं सुनूँगा।"
"मैं तुम्हारा स्वाभाव जानता हूँ, मेरी बिनती सुने बिना तुम मेरा अंत नहीं करोगे।" उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान थीI
‘ठीक है, बताओ क्या कहना चाहते हो?"
"कभी सोचा है कि मेरे बगैर तुम्हारा क्या अस्तित्व है?"
"अर्थात?"
"अर्थात, यदि रावण था तभी राम थे, यदि कंस था तभी तो कृष्ण थे। यदि अंधकार होगा तभी तो प्रकाश की आवश्यकता होगी। यदि तुमने मुझे मार डाला तो तुम भी मेरी ही श्रेणी में ही गिने जाओगेI अत: याद रखो, जब तक मैं हूँ रहूँगा तभी तक इस दुनिया को तुम्हारी आवश्यकता रहेगी।"
सच्चाई सुनकर अच्छाई के हाथों की पकड़ ढीली हो रही थी, किन्तु बुराई की आँखों में विजयी चमक आ रही थीI
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(मौलिक व अप्रकाशित)
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