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सार्थक प्रयास आदरणीय नीता कसार जी। प्रदत्त विषय को सार्थकता से परिभाषित करती इस प्रभावशाली कथ हेतु शुभकामनाएं।
रिश्तों में जोड़ -तोड़ की चाल, एक हकीकत , अगर रिश्ता दिल को भा गया तो न कोई शह न कोई मात ,लेकिन दोनों पक्ष में से एक भी राज़ी नहीं तो बिछा ली जाती है रिश्तों की बाज़ी लिए एक शतरंजी शाह और मात की बिसात !
बधाई आपको आदरणीया नीता जी इस सार्थक लघुकथा के लिए।
वाह ! बहुत बहुत बधाई आदरणीय नीता कसार जी इस बेहतरीन प्रस्तुति के लिए
आदरणीया नीता जी, एक बेटी का पिता क्यों इस तरह के कुचक्रों में उलझता है ? इसलिए न कि इन्के प्रति समाज ने कुछ मूल्य बना रखे हैं ! लेकिन जिन परम्पराओं की दुहाई दी जाती है उसकी गंभीरता से ही हम खिलवाड़ कर बैठते हैं ! जब इस स्तर पर जा कर गणनाओं को, जो चाहे जैसी हों या इन्हें तार्किक रूप से कितना ही सही क्यों न बताया जाये, मनचाहा रूप देने लगते हैं तो समाज में किसके प्रति श्रद्धा रह जाती है ?
यही कुछ विन्दु हैं जिनको इस लघुकथा में गहन स्वर मिला है. हम आपकी इस प्रस्तुति से प्रभावित हैं. ये अवश्य है कि प्रस्तुतीकरण और सशक्त हो सकता था. अंत थोड़ा अधिक ही नाटकीय हो गया है. नाटकीयता कथात्मकता का अत्यंत ही अभिन्न हिस्सा हुआ करता है. लेकिन इसका अनुपात संयमित ही हो.
हार्दिक बधाइयाँ आदरणीया.
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