For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ब्रह्माण्ड में क्या हम अकेले हैं ? -डा0 गोपाल नारायण श्रीवास्तव

      ( प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक डा0 शर्दिदु मुकर्जी और अंतरजाल से प्राप्त जानकारी के आधार पर )   

अमेरिका स्थित सेटी (search for extraterrestrial intelligence (SETI) नामक संस्था  सुदूर ब्रह्माण्ड  में जीवन की खोज करने के सामूहिक क्रिया-कलापों में प्राण-पण से लगी है i उसके समक्ष एक सार्वभौमिक प्रश्न है कि – ‘क्या हम अकेले है ?’ अर्थात ब्रह्माण्ड के अन्य ग्रहों में भी जीवन है या मात्र अकेली पृथ्वी ही जीवनमय है I वैश्विक खोज में कुछ ऐसे चित्र प्राप्त हुए हैं, जो हजारों साल पुराने होने पर भी आधुनिक प्रगति को चुनौती देते लगते है जैसे उन तस्वीरो में हेलमेट जैसे किसी शिरस्त्राण का होना I            

         

 इंग्लॅण्ड में  ऐम्स्बरी (Amesbury) से तीन किमी० पश्चिम  और सेल्स्बरी  ( Salisbury) से तेरह किमी० उत्तर में स्थित विल्टशायर  (Wilrshire) में पाए जाने वाले प्रागैतिहासिक स्मारक स्टोन हेंज (Stone  henge) भी अनुसंधानकर्ताओं के आकर्षण का केंद्र रहे हैं   I   इस क्रम में एरिच ओन डैनकेन (Erich von Daniken) की प्रख्यात पुस्तक Chariots of the Gods अतीत के अनसुलझे रहस्यों का खुलासा करने का प्रयास करती है I इसमें यह समझाने का प्रयास हुआ है कि प्राचीन सभ्यताओं की बहुत सी तकनीक एवं उनके धर्म दूसरे ग्रह से आये अन्तरिक्ष यात्रियो ने बताये, जिनका स्वागत यहाँ के लोगों ने देवता  के रूप में किया I 

अनुसंधान् की इस यात्रा में नाजका रेखाओं का भी बड़ा महत्व है जो  दक्षिण -पश्चिम पेरू मरूस्थल के गरम रेत में  बहुत ही रहस्य मय  ढंग से उकेरी गई ज्यामितीय आकृतियाँ हैं i ये आकृतियाँ बेहद तरतीब-वार हैं और .इन्हें "जियोग्लिफ(geoglyph) कहा जाता है ।

A geoglyph is a large design or motif (generally longer than 4 metres) produced on the ground and typically formed by clastic rocks or similarly durable elements of the landscape, such as stones, stone fragments, live trees, gravel, or earth.


नाजका रेखाएं कुंडली के आकार की भी हैं और पशु-पक्षी विशेषकर बन्दर की आकृतियों से मेल खातीं हैं I इसके अतिरिक्त मानवाकृतियों  के स्वरुप भी प्राप्त हुए हैं I  नाजका रेखाओं में हज़ारों की संख्या में सरल रेखाएं भी हैं जो यहाँ की लाल मिट्टी को खोद कर  बहुत ही करीने से एवं निर्दोषपूर्ण तरीके से उकेरी गयी हैं  ।

  

लोक –विश्वास है यह रेखाएं यहाँ अति अतीत में रहने वाले नाजका इंडियंस की देन हैं .इसीलियें इन्हें "नाजका रेखाएं "कहा जाता है । पहली बार इन रेखाओं को 1920  के दशक में देखा गया I ऐसा माना जाता है कि यह रेखाएं 500 वर्ष ईसा -पूर्व से लेकर 500 ई० के बीच बनाये गए हैं I पृथ्वी-तल से देखने पर यह भले ही बेतरतीब भूल-भुलैयां सी प्रतीत हों लेकिन एरियल -व्यू इन्हें एक व्यवस्था  में गुम्कित दिखलाता है । हो सकता है यह किसी खगोलीय कैलेण्डर की अनुकृति हों या फिर  किसी धार्मिक अनुष्ठान से सम्बंधित कर्म काण्ड का कोई  हिस्सा हों । इस सम्बन्ध में निश्चित तौर परअभी कोई मत स्थिर नहीं हुआ है  और न  कोई  बता पाया है कि 600 से 800 फीट तक लम्बे इन आकारों को ऐसे वीरान स्थान पर बनाने का उद्देश्य क्या रहा होगा I कुछ भी हो पर यह आज भी रहस्य है कि आखिर यह भगीरथ प्रयास किसके द्वारा और क्यों किया गया ?


एरिक फॉन दैनिकेन ने  Chariots of the Gods में इस सम्भावना से इंकार नहीं किया है कि नाज़का के विस्तृत सूखी धरती पर दूसरे ग्रह के प्राणी उतरा करते थे और ये सभी आकार उनके द्वारा छोड़े गए निशान हैं I  सम्भवत: ये निशान पृथ्वी के जीवों के साथ सम्पर्क स्थापित करने के उद्देश्य से अथवा पृथ्वी पर उनके सकुशल उतरने के लिए दिशा निर्देश हेतु बनाए गए थे I जापान के यामागाटा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक नाज़का में 2012 से स्थायी रूप से रह कर इन रहस्यों को उद्घाटित करने नाजका रेखाओ से इतर हमें धरती पर हजारों साल पुराने कतिपय ऐसे चित्र प्राप्त होते है जिनमे हमें हेलीकाप्टर और दूसरे ग्रह से आये अंतरिक्ष-यात्री का आभास मिलता है और ये चित्र अत्यधिक प्रांजल एवं स्पष्ट भी है   I का प्रयास कर रहे हैं I

  

1940  के दशक मे ऐसे अनेक वलयाकार आकृतियों को दर्शाने या बताने के लिए उड़नतश्तरी शब्द का प्रयोग किया गया था जिनके उस दशक में अधिकधिक  देखे जानें के मामले प्रकाश में आए। तब से लेकर अब तक इन अज्ञात वस्तुओं के रंग-रूप में बहुत परिवर्तन महसूस किया गया  है लेकिन उड़न तश्तरी शब्द आज भी प्रयोग में है और ऐसी उड़ती वस्तुओं के लिए प्रयुक्त होता है जो दिखनें में किसी तश्तरी जैसी दिखाई देती हैं और जिन्हें शायद धरती के आधार की आवश्यकता नहीं होती ।  इन   अज्ञात उड़ती उड़नतश्तरियों या वस्तु को यू एफ ओ   unidentified foreign object कहा जाता है । इनका आकार किसी डिस्क या तश्तरी के समान होता है या उनका स्वरुप ऐसा दिखाई देता है ।

कई स्वयंसिद्ध प्रत्यक्षदर्शियों  के अनुसार इन अज्ञात उड़ती वस्तुओं के बाहरी आवरण पर तेज़ प्रकाश होता है और ये या तो अकेले चक्कर लगाते हैं हैं या एक प्रकार से लयबद्ध होकर चलते है I इनमें बहुत अधिक गतिशीलता होती है और  ये बहुत छोटी  से लेकर बहुत विशाल आकार तक की  हो सकतीं हैं I उड़न तश्तरीयों के अस्तित्व को आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त नहीं है i विश्व की अनेक सरकारे इनके अस्तित्व को सिरे से ख़ारिज करती हैं I लेकिन  उड़न तश्तरियों के देखे जाने का दावा करने वालों की संख्या भी  कम नहीं है और  इनके देखे जाने के बहुत से चित्र उपलब्ध हैं तथा  अनेक रिकॉर्ड दर्ज  हैं ऐसा माना जाता है की इन उड़ती वस्तुओं का संबंध परग्रही दुनिया से है क्योंकि इनके संचालन की असाधारण और प्रभावशाली क्षमता मानव संचालित किसी भी उपकरण से कई गुना तेज आभासित होती है I

           

 भारत में भी लद्दाख में भारत-चीन सीमा में  यू.एफ़.ओ. देख जाने के प्रमाण मिले है I  कहा जाता है कि इस क्षेत्र में ज़मीन के अंदर यू.एफ़.ओ. का एक गुप्त अड्डा है और सम्भवत: इस सत्य से दोनों देश की सरकारें वाकिफ भी  हैं I इसके अतिरिक्त कोलकाता, तमिलनाडु, लखनऊ और कानपुर से भी यू.एफ़.ओ. देखे जाने के समाचार मिले हैं I  

           

उक्त सभी प्रमाणों के आधार पर SETI( search for extra- terrestrial intelligence) परग्रही जीवों के अस्तित्व को प्रामाणिक रूप  से सिद्ध करने के प्रयास में जुटी हुयी है और उसके सामने यह प्रश्न एक चुनौती है कि क्या हम विश्व में अकेले हैं I सेटी  के अब तक के इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालने पर हमें पता चलता है कि इटली के दार्शनिक गिओर्डानो ब्रूनो ने 16 वीं शताब्दी में ब्रह्माण्ड को अनंत और असीम बताया जो हमारे भारतीय दर्शन की तर्ज पर है I  उन्होंने यह भी कहा कि हर तारे  का अपना ग्रह और उपग्रह मण्डल है जो उसको चारों ओर से घेरे हुए है I 1896 के अंत में निकोला टेस्ला ने अपने द्वारा बनाए गए बेतार विद्युत तरंग उपकरण से मंगल ग्रह के निवासियों के साथ सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास किया I 21 से 23 अगस्त 1924 को मंगल ग्रह पृथ्वी के बिलकुल नज़दीक आ गया था I  इस दौरान अमरीका में हर घंटे में पाँच मिनट के लिए सभी रेडिओ सिग्नल इस आशा से साईलेंट रखे गए कि शायद दूसरे ग्रह के रेडिओ सिग्नल धरतीवासियों को  सुनाई दें I    

                 

रूस के सुप्रसिद्ध खगोल-शास्त्री आई.एस. शक्लोव्स्की ने Intelligent life in the Universe  नामक एक पुस्तक लिखी i यदि यह पुस्तक प्रकाश में न आती तो शायद तत्वदर्शन का परलोकवाद सिद्धान्त पूरी तरह धूल-धूसरित हो गया होता। अनेक तर्कों और वैज्ञानिक सिद्धान्तों के आधार पर उन्होंने लिखा  कि-”हमारी आकाश गंगा के क्षेत्र में जिसमें कि अपना समस्त सौर मंडल भी आता है लगभग 10 लाख ऐसे ग्रह हैं जहाँ कि धरती के समान ही बुद्धिमान और सभ्य लोग निवास करते हैं। इनमें से कई लोक तो इतने सुन्दर हैं कि उनकी तुलना स्वर्ग के देवताओं से की जा सकती है।”

 

 कार्ल सगान और स्टीफन हॉकिंग जैसे चर्चित खगोलविदों और कॉस्मोलॉजिस्ट ने अपनी पुस्तकों में एक क्रांतिकारी दावा किया  कि कोई भी बाह्य सभ्यता मानव जाति के लिए खतरनाक साबित हो सकती है। उनसे पहले रॉयल एस्ट्रोनॉर्मर मार्टिन रीज यह कह  चुके थे कि संभव है, एलियंस कहीं से हमें घूर रहे हों और हम उन्हें अपने सीमित क्षमता के कारण पहचान न पा रहे हों। स्टीफन हाकिंग ने सावधान करते हुए कहा कि हमें एलिंयंस से संपर्क करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए । 15 अगस्त 1977 के दिन जेरी एहमैन को सबसे पहले अंतरिक्ष से कुछ स्पष्ट और उत्साह्वर्धक सिग्नल मिले और वह भी एक नहीं तीन बार, जिसे सुनकर उसके मुख से  wow निकल पड़ा और इसीसे उस सिग्नल को  WOW signal नाम दिया गया I

 

सेटी का यह अभियान  तमाम सरकारी विरोधों के बावजूद पूरे मनोयोग से चल रहां है I अनेक उत्साही एवं प्रतिबद्ध वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड के लिये अपने कान और दिमाग खोल रखे हैं और और करोड़ों डॉलर के खर्चे से चलने वाला SETI  कार्यक्रम जनता की सहायता से निर्बाध चल रहा है  I इस कार्यक्रम में दुनिया भर के लोग अपना योगदान दे रहे हैं I  देखना यह है कि हम कब पूरी ईमानदारी से सगर्व कह पाते है कि इतने बड़े ब्रह्माण्ड में हम अकेले नहीं हैं I

(मौलिक व् अप्रकाशित )

 

Views: 1434

Reply to This

Replies to This Discussion

आदरणीय गोपाल सर ..आज बहुत दिनों बाद इस मंच पे आना हुआ ..आपके इस रोचक लेख से बहुत से नवीनतम जानकारी मिली ..इस अद्भुत जानकारी को साझा करने के लिए आपको हार्दिक बधाई ..सादर प्रणाम के साथ 

aa0 aashutosh jee  sadar aabhar

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तमन्नाओं को फिर रोका गया है
"धन्यवाद आ. रवि जी ..बस दो -ढाई साल का विलम्ब रहा आप की टिप्पणी तक आने में .क्षमा सहित..आभार "
6 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका…"
8 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी ।  अब हम पर तो पोस्ट…"
10 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
yesterday
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service