For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चढ़ावा - लघुकथा.....

चढ़ावा - लघुकथा

''दादू .... !''
''हूँ .... !''
''हम मंदिर में पैसे क्यों चढ़ाते हैं … ?''
''बेटे , हर आदमी को अपनी नेक कमाई से कुछ न कुछ अपनी श्रद्धानुसार प्रभु के चरणों में अर्पण करना चाहिए। ''
''लेकिन दादू , आप तो कहते हैं कि हमारे पास जो भी है तो प्रभु का दिया है … . । ''
''हाँ तो … । ''
''तो जब सब कुछ प्रभु ही देते हैं तो हम फिर उन्हें पैसे क्यों चढ़ाते हैं ?''
दादू निरुत्तर हो पोते का मुख देखने लगे।

सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on August 9, 2015 at 9:15pm

आदरणीय  pratibha pande  जी लघु कथा पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 9, 2015 at 9:14pm

आदरणीय  JAWAHAR LAL SINGH जी लघु कथा पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by pratibha pande on August 9, 2015 at 8:00pm
बहुत सही बात कह दी आपने रचना के माध्यम से , बधाई आपको इस सशक्त रचना के लिए आ० सुशील सरना जी
Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 9, 2015 at 12:15pm

सुन्दर! बड़े रोचक ढंग से आपने प्रहार किया है सादर!

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 12:48pm

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी मेरे प्रयास आपके आत्मीय अनुमोदन ने जो मान दिया है उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया। 

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 12:45pm

आदरणीय  Sulabh Agnihotri  जी लघु कथा पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 12:45pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker जी लघु कथा पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on August 6, 2015 at 12:43pm

आदरणीया कांता रॉय जी मेरे प्रयास को इतना मान देने का तहे दिल से शुक्रिया। 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on August 6, 2015 at 12:15pm

आदरणीय सुशील सरना सर, जोर का झटका धीरे से वाली इस शानदार और सफल लघुकथा पर हार्दिक बधाई. पोते के यक्ष प्रश्न पर अच्छे अच्छे आज तक निरुत्तर है. सादर 

Comment by Sulabh Agnihotri on August 6, 2015 at 11:15am

सत्स वचन

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
2 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service